Sunday, December 3, 2017

अभिभावकों के लिए बेहद जरुरी बात: रखो अपनी लाडो पर नजर कोई और है नजरें गड़ाए

साभार: जागरण समाचार 
बच्चों की बेहतर परवरिश के लिए माता-पिता, दोनों का कामकाजी होना उनके ही परिवार का सुख छीन रहा है। बच्चों के प्रति अभिभावकों की अनदेखी स्थिति को बिगाड़ रही है, खास कर लड़कियों के मामले में। घर परिवार
में अकेली लड़कियों को सब्जबाग दिखाकर भ्रमित किया जाता है और वो अपने घरों से गायब हो रही हैं। इन दिनों पुलिस के पास हर रोज करीब दो शिकायतें ऐसी पहुंच रही हैं कि उनकी बेटी दो दिन से गायब है, आसपास और रिश्तेदारी में खूब तलाश कर ली, पर पता नहीं चला। पुलिस शिकायतें लेकर मुकदमे भी दर्ज कर रही है और इनमें से कुछ मुकदमे ट्रेस भी हो रहे हैं, जबकि कुछ का पता नहीं चलता। इसमें लड़कियां नाबालिग भी हैं और बालिग भी।  
इन दिनों बच्चों के पास स्मार्टफोन होना आम है। स्मार्टफोन पर सोशल मीडिया के माध्यम से तमाम वो बातें बच्चों तक आसानी से पहुंच रही हैं, जो कुछ वर्ष पूर्व तक युवा वर्ग सी ग्रेड की फिल्मों में छिपकर देखता था। स्मार्ट फोन हाथ में होने से बच्चा घर में मां-बाप के होते हुए भी उनकी नजरों से दूर है। वहीं ऐसी लड़कियों पर उनके स्कूल-कॉलेजों के साथी नजरें गड़ाए रहते हैं और जब तक पता चलता है तब तक बात बिगड़ चुकी होती है। विभिन्न थानों में दर्ज हो रहे इस तरह के मुकदमों के बारे में जब जांच अधिकारियों से बात की जाती है, तो वह भी इसी तरह के कड़वे सच को सामने लाते हैं।
  • हमारे समक्ष हर महीने में औसतन ऐसे 50 मामले सामने आ रहे हैं। अभिभावक अपने बच्चों की हरकतों पर नजर रखें, देखें कि उनके व्यवहार में किस तरह से बदलाव आ रहा है। बच्चे फोन लेकर एकांत में या बाथरूम में ज्यादा समय व्यतीत कर रहे हैं। हमारी जांच में तो ऐसे भी मामले सामने आए हैं कि लड़कियों के फोन को लड़के रिचार्ज करवाते हैं। इसलिए अभिभावकों का बच्चों के साथ बेहतर समय व्यतीत करना बेहद जरूरी हो गया है। - राजेश चेची, एसीपी क्राइम, फरीदाबाद
  • देखिए, मां-बाप दोनों के कामकाजी होने में बुराई नहीं है, पर गलत वहां हो जाता है जब घर आकर भी बच्चों के साथ संवादहीनता जारी रहे। बच्चों खासकर लड़कियों को आज के जमाने में ऊंच-नीच के बारे में बताना जरूरी है। एक मां अपनी बेटी को ज्यादा अच्छे तरीके से समझा सकती है। बच्चों को अच्छे से शिक्षित व जागरूक करने से ही बात बनेगी। - डॉ. पूनम गुप्ता, मनोविश्लेषक।