साभार: जागरण समाचार
परिवर्तन के लिए नजरिया चाहिए और अगर यह परिवर्तन शिक्षा के क्षेत्र में करना हो तो फिर सोच पूरी तरह व्यावहारिक होनी चाहिये। शिक्षा पर हर साल करोड़ों रुपये का बजट होने के बावजूद उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या लगातार घट
रही है। प्राथमिक विद्यालय तेजी से बंद हो रहे हैं। इसके पीछे एक अहम कारण है शिक्षा का व्यावहारिक न होना। शिक्षा का व्यावहारिक स्वरूप कैसा हो, इस बड़े सवाल का छोटा सा लेकिन सटीक जवाब देती है ‘दीवार’।
बच्चों को किताबी ज्ञान तक सीमित न रखकर उनकी रचनात्मकता को अभिव्यक्ति और प्रोत्साहन देना भी बहुत जरूरी है। इसी सोच के साथ करीब 12 साल पहले पिथौरागढ़ जिले के एक प्राथमिक विद्यालय में दीवार पत्रिका की शुरुआत की गई।
मकसद यही था कि बच्चों की सोच को रचनात्मक अभिव्यक्ति दी जाए, ताकि शिक्षा के प्रति उनका रुझान बढ़े। शुरुआत बेहतर थी, नजरिया अलग था और कामयाबी भी उम्मीद से बढ़कर मिली।
आज उत्तराखंड के लगभग एक हजार स्कूलों से यह पत्रिका निकल रही है। बच्चे विभिन्न मुद्दों पर लिखते हैं, चित्र बनाते हैं और जब इस पत्रिका में उनकी रचना का प्रकाशन होता है तो आत्मविश्वास बढ़ता जाता है। किसी विद्यालय में यह पत्रिका पाक्षिक है तो किसी में मासिक। सोशल मीडिया के माध्यम से हुए प्रचार के बाद इस तरह की पत्रिका को विद्यालयों में निकालने की शुरुआत हिमाचल, राजस्थान और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने भी की है।चार्ट पेपर पर बच्चे अपनी रचनाओं को उकेरेते हैं और इन्हें स्कूल की दीवार पर एक साथ जोड़ देते हैं।
इस तरह हुई शुरुआत: पिथौरागढ़ जिले की गंगोलीहाट तहसील के अंतर्गत प्राथमिक विद्यालय कुंजनपुर में कार्यरत शिक्षक महेश पुनेठा ने वर्ष 2000 में सहभागी क्रियाकलाप के उद्देश्य से दीवार पत्रिका शुरू की थी। इसमें बहुत अधिक खर्च नहीं है। आज उत्तराखंड के एक हजार से अधिक सरकारी स्कूलों ने दीवार मॉडल को अपनाया है। इसके अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं। जीआइसी देवलथल में पत्रिका के संपादक मंडल में शामिल बच्चे पिछले साल इंटरमीडिएट में फस्र्ट डिवीजन पास हुए। एक बच्चे ने हाईस्कूल परीक्षा में सामाजिक विज्ञान में 99 अंक हासिल किए। महेश पुनेठा बताते हैं कि अन्य स्कूलों से भी इस तरह का रिजल्ट मिल रहा है।
कुछ ऐसी है दीवार: दीवार पत्रिका चार्ट पेपर पर तैयार होने वाली ऐसी गतिविधि है, जिसमें बच्चों द्वारा तैयार की गई पेंटिंग्स, काटरून, कविता, लेख, कहानी, समाचार आदि हर अभिव्यक्ति को स्थान दिया जाता है। देश-दुनिया के बड़े मुद्दों व जनहित से जुड़ी समस्याओं पर भी बच्चों का फोकस रहता है। इसके लिए उन्हें प्रोत्साहित किया जाता है। विषय वस्तु के संकलन, संपादन का जिम्मा भी बच्चों पर ही होता है। उनका मार्गदर्शन करने के लिए विद्यालयों में संपादक मंडल गठित हैं। हर बच्चा चार्ट पर अपनी रचना उकेरता है और उसके बाद सभी चार्ट आपस में जोड़कर पत्रिका में परिवर्तित कर दिए जाते हैं।