साभार: भास्कर समाचार
तीन तलाक बिल गुरुवार को लोकसभा में पारित हो गया। इसमें 1400 साल पुरानी एक साथ तीन तलाक देने की प्रथा को अपराध करार देते हुए तीन साल तक की सजा का प्रावधान है। साढ़े 4 घंटे की बहस के बाद विपक्ष के
सभी संशोधन प्रस्ताव गिर गए। बिल का शुरू से अंत तक विरोध करने वाले एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने 3 प्रस्ताव रखे, पहले दूसरे में उन्हें 2-2 और तीसरे प्रस्ताव में सिर्फ खुद का वोट मिला। कांग्रेस की सुष्मिता देव, बीजद के भर्तृहरी माहताब सीपीआईएम के संपथ के भी प्रस्ताव खारिज हो गए। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने विधेयक पारित होने को ऐतिहासिक पल करार देते हुए कहा कि मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक महिलाओं की गरिमा सम्मान की हिफाजत करेगा। कई दलों ने सजा वाले प्रावधान का विरोध किया। बिल को स्टैंडिंग कमेटी के पास भेजने की मांग की, जो सरकार ने नहीं मानी।
बिल में चार अहम् व्यवस्थाएं:
- पीड़िता अपने नाबालिग बच्चों के लिए भरण-पोषण और गुजारा भत्ता मांग सकेगी। नाबालिग बच्चों की कस्टडी की गुहार भी लगा सकेगी।
- तलाक देने वाले के खिलाफ मुकदमा दर्ज होगा। उसे 3 साल तक की सजा के साथ जुर्माना भी होगा। राशि मजिस्ट्रेट तय करेंगे।
- यह मौखिक, वॉट्स एप, ई-मेल, फेसबुक, एसएमएस या किसी भी माध्यम से दिए जाने वाले तीन तलाक पर लागू होगा।
- कानून सिर्फ एक बार में तीन तलाक यानी तलाक-ए-बिद्दत पर लागू होगा। यह गैरकानूनी एवं संज्ञेय अपराध होगा।
जमानत का अधिकार मजिस्ट्रेट के पास: बहस का जवाब देते हुए कानून मंत्री बोले, 'गरीब मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में खड़ा रहना अपराध है तो हम यह अपराध 10 बार करने को तैयार हैं। पति को पुलिस से बेल नहीं मिलेगी, पर मजिस्ट्रेट के पास तो पावर है।
आगे क्या: बिल राज्यसभा में पेश होगा। वहां एनडीए के 80, यूपीए के 95 और अन्य दलों और निर्दलीय की संख्या 63 है। ऐसे में बिल पारित कराने को सरकार को 57 सदस्यों वाली कांग्रेस पर निर्भर रहना पड़ेगा।
किसने क्या कहा बिल के बारे में:
- रविशंकर प्रसाद, कानून मंत्री: सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त को तीन तलाक को गैर कानूनी घोषित किया है। उसके बाद भी ये चलता है। महिलाओं के साथ नाइंसाफी पर क्या सदन खामोश रहेगा? इस्लामिक देशों में तीन तलाक पर रेगुलेशन है तो धर्मनिरपेक्ष देश में क्यों नहीं? इसे सियासत, दल, मजहब और वोट बैंक की आंखों से देखें।
- मीनाक्षी लेखी, भाजपा सांसद: शाहबानो प्रकरण के बाद 1986 में बना कांग्रेस का कानून महिला को मिलने वाले भत्ते के खिलाफ था। अगर तीन तलाक हो ही गया तो दोनों पक्षों में समझौता कैसा? लोगों को गुमराह करने वाले मुल्ला-मौलवियों के खिलाफ भी कानून बने।
- एमजेअकबर, विदेश राज्य मंत्री: मैं 40 साल से मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की आवाज सुन रहा हूं, लेकिन जानना चाहता हूं कि सही वक्त कब आएगा। बिल से इस्लाम नहीं, मुस्लिम मर्दों की जबरदस्ती खतरे में है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की विश्वसनीयता ही क्या है?
- असदुद्दीन ओवैसी,एआईएमआईएम प्रमुख: बिल संविधान के खिलाफ है। मुस्लिमों को जेल में डालने की साजिश हो रही है। किसी भी देश में 3 तलाक आपराधिक नहीं है। यह महिलाओं के साथ नाइंसाफी होगी। मुस्लिमों से चर्चा नहीं की गई। बिल स्टैंडिंग कमेटी को भेजें।
- मल्लिकार्जुन खड़गे, कांग्रेस: हम सरकार के साथ हैं, लेकिन कमियां दूर हों। आम सहमति के लिए बिल को स्टैंडिंग कमेटी के पास भेजा जाए।
- सुष्मिता देव, कांग्रेस: दंगे में 3 साल जेल होती है, लकिन तलाक पर क्यों? पति जेल में होगा, बेल नहीं होगी तो भत्ता देने पर राजी कैसे होगा?
- सुप्रिया सुले, एनसीपी: बिलका समर्थन करते हैं, लेकिन सभी पारिवारिक विवादों को अपराध की श्रेणी में नहीं लाया जा सकता है।
- धर्मेंद्र यादव, सपा: महत्वपूर्ण कानून को बनाने में जल्दबाजी क्यों? इसे स्टैंडिंग कमेटी को भेजा जाए।
- मौलाना खलील-उर-रहमान सज्जाद नोमानी, प्रवक्ता, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड: बिल जल्दबाजी में लाया गया है। इसके खिलाफ लाेकतांत्रिक तरीके से लड़ेंगे। फिलहाल कोर्ट में अपील नहीं करेंगे।
- शाइस्ताअम्बर, अध्यक्ष, ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड: यह कानून पति-पत्नी के संबंध को और मजबूत करेगा। विरोध करने वाले महिलाओं की मदद करें, जिससे परिवार में तरक्की हो।