Sunday, December 31, 2017

नए साल में काफी बदल जाएगी दुनिया, जानिए छह बड़े बदलाव

साभार: भास्कर समाचार
एेसे सुलझेगी शरणार्थियों की समस्या: 

  • सेबेस्टियन कुर्ज, ऑस्ट्रिया के विदेश मंत्री: 2015 की गर्मियों से 2016 की सर्दियों तक ऑस्ट्रिया शरणार्थियों की समस्या से सबसे ज्यादा प्रभावित यूरोपीय देशों में शामिल था। शरणार्थी कई देश पार कर अपनी पसंद से ऑस्ट्रिया रहे थे। हमने पश्चिमी हिस्से में स्थित बाल्कन रूट को बंद कर दिया और शरणार्थियों की संख्या कम हो गई। यूरोपीय संघ की सीमाओं पर चाक-चौबंद व्यवस्था इसके हल की पहली शर्त है। अवैध अप्रवासियों को रोकना और उन्हें वापस स्वदेश भेजने की व्यवस्था पूरे विश्व में होनी चाहिए।  
  • बाना अलाबेद, 8 साल की शरणार्थी और शांति कार्यकर्ता: मैं सीरिया में पैदा हुई और जन्म के बाद से ही युद्ध को देखा है। मेरे देश में हरेक नागरिक ने इसमें कुछ खोया है, इसीलिए वे सुरक्षा के लिए कहीं भी जाने को तैयार हैं। हमें जिंदा रहने के लिए भागना पड़ता है। मैं परिवार के साथ तुर्की आई तो पहली बार शांति देखी। पूरी दुनिया में शरणार्थियों को घर, शिक्षा, नौकरियों की जरूरत है। इसके लिए युद्ध को रोकना ही होगा। शांति के बिना शरणार्थियों की समस्या कभी नहीं खत्म होगी। 
  • डेविड मिलिबैंड, प्रेसिडेंट और सईओ, इंटरनेशनल रेस्क्यू कमेटी: शरणार्थियों की समस्या का हल संभव है। डील यह होनी चाहिए कि शरणार्थियों को नौकरी के अवसर देने के बदले मेजबान देश को लंबे समय तक चलने वाली आर्थिक मदद मिले। शरणार्थियों के बच्चों के पढ़ाई और रहने की व्यवस्था हो। ऐसी समस्याओं को हल नहीं किया जाए तो वे राजनीतिक अस्थिरता पैदा करती हैं। 

आपदाओं के दौरान जान बचाएंगे रोबोट:
  • एश्ले हॉफमैन: आर्टिफिशियलइंटेलिजेंस के क्षेत्र में नई खोजों की मदद से रोबोट को ज्यादा सक्षम बनाने में मदद मिली है। इससे यह डर भी फैल रहा है कि आने वाले दिनों में रोबोट इंसानों की नौकरियां हथियाने लगेंगे, लेकिन फिलहाल इसकी संभावना नहीं दिखती। 2018 में होंडा और वीरोबोटिक्स जैसी कंपनियां अपने रोबोट बाजार में उतारेंगी जो इंसानों की नौकरियां लेने के बजाय उनकी जान बचाने में मददगार होंगे। उदाहरण के लिए भूकंप या बाढ़ की हालत में जब मकानों के गिरने का डर होता है, जान-माल की तलाश में इंसानों को उसके अंदर भेजना जोखिमभरा होता है। इसमें रोबोट सहायता कर सकते हैं। इजरायली कंपनी रोबोटिकन का रूस्टर रोबोट अत्याधुनिक सेंसर और कम्युनिकेशन तकनीकों की मदद से बेहद कम समय में यह पता लगा सकता है कि मलबे के नीचे कोई इंसान है या नहीं। वह यह जानकारी राहतकर्मियों तक भी पहुंचा सकता है। कंपनी का कहना है कि इससे राहतकर्मियों की जान को खतरा नहीं होगा और राहत कार्यों में समय भी कम लगेगा। 
दूसरे देशों को समझौते के लिए मनाएगा कौन: 


  • जस्टिन वर्लैंड: पृथ्वी पर तापमान के बढ़ते स्तर को नियंत्रित करने के रास्ते में पेरिस समझौते से बाहर निकलने का डोनाल्ड ट्रम्प का फैसला ही अकेली बाधा नहीं है। लगातार कटते जंगल, विकासशील देशों में क्लीन-एनर्जी प्रोजेक्ट के लिए फंड की कमी जैसी मुश्किलें भी बरकरार हैं। पेरिस समझौते में निर्धारित लक्ष्यों को हासिल करने की भी संभावना कम ही दिखती है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि जीवाश्म-आधारित ईंधन के उपयोग की अभ्यस्त दुनिया इसे छोड़ नहीं पा रही है। उम्मीद है कि 2018 के दिसंबर में पोलैंड में होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में इसका कोई रास्ता निकलेगा। कई देशों ने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए कारगर कदम उठाए हैं और 2014 के बाद से कार्बन उत्सर्जन के स्तर में वृद्धि नहीं हुई है लेकिन ये काफी नहीं हैं। संयुक्त राष्ट्र एनवायरनमेंट प्रोग्राम के अनुसार इन प्रयासों के बावजूद तापमान में वृद्धि का स्तर 3.2 डिग्री सेंटीग्रेड होगा। अमेरिका के पेरिस समझौते से बाहर निकलने के बाद बड़ा सवाल यह है कि देशों को नए लक्ष्यों के लिए तैयार करने की जिम्मेदारी कौन निभाएगा। 
नए साल में कई रोगों पर एंटीबायोटिक दवा बेअसर रहने की चिंता एक चमत्कारी पुरानी थैरेपी खत्म कर देगी। ऐसे रोबोट आएंगे जो इंसानों की मदद करेंगे। यूरोप में शरणार्थियों की समस्या के हल की उम्मीद के साथ अलग-अलग क्षेत्रों में आशा और संभावनाएं लेकर रहा है 2018... 
बिटकॉइन टिकाऊ नहीं, बनी रहेगी अस्थिरता:
  • लुसिंडा शेन: बिटकॉइन की कीमत रोजाना नए रिकॉर्ड बना रही है। दिसंबर, 2017 में इसकी कीमत 18 हजार डॉलर से ज्यादा के स्तर पर पहुंच गई जो दिसंबर, 2016 की तुलना में 23 गुना ज्यादा है। इसने पूरी दुनिया में ऐसी हलचल पैदा की कि अमेरिकी सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बैंक के अध्यक्ष जय क्लेटॉन ने भी मान लिया कि यह बदलते समय का संकेत है। करीब दस साल पहले तक सुरक्षित वर्चुअल करेंसी की अवधारणा इंटरनेट पर छोटी-मोटी चर्चाओं तक ही सीमित थी, लेकिन अब इसकी लोकप्रियता बढ़ रही है। कंपनियां निवेश के बदले भविष्य में बिटकॉइन देने का वादा कर रही हैं। फेसबुक से मशहूर हुए विंकलवॉस बंधु बिटकॉइन से कमाई कर अरबपति बन चुके हैं। बिटकॉइन के असर से कई डिजिटल करेंसी की कीमत अचानक एकदम कम हो गई है। आलोचकों का मानना है कि बिटकॉइन एक बुलबुला है और यह ज्यादा टिकाऊ नहीं हो सकता। इसका भविष्य चाहे जो हो, लेकिन इतना तय है कि इसकी कीमतों में उतार-चढ़ाव का माहौल फिलहाल बना रहेगा। 
सुपर बग का इलाज करेगी पुरानी थैरेपी: अमेरिका में हर साल करीब 23 हजार लोगों की मौत ऐसे इंफेक्शन से हो जाती है जिन पर एंटीबायोटिक का असर नहीं होता। अनुमान के अनुसार 2050 तक दवाओं से बेअसर इंफेक्शन के चलते हर साल एक करोड़ मौतें होंगी। इससे फेज थैरेपी में रुचि बढ़ रही है और यह सुपरबग के इलाज में बड़ी भूमिका निभा सकता है। फिलहाल अमेरिका में भी गिने-चुने जगहों पर यह उपलब्ध है। इसे फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन से मंजूरी भी नहीं मिली है। 2018 इस दिशा में महत्वपूर्ण हो सकता है क्योंकि इस साल कई जगहों पर इसका परीक्षण शुरू होने वाला है। हाल के वर्षों तक पश्चिमी चिकित्सा जगत इसे लगभग पूरी तरह छोड़ चुका था। बैक्टीरियोफेजेस का इंफेक्शन केे इलाज में उपयोग 1920 और 1930 के दशक में खूब होता था। 1940 और 50 के दशक में एंटीबायोटिक का बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू हुआ तो इसका उपयोग कम होने लगा।
मंगल पर पर्यटक भेजने में होंगी कई रुकावटें: नए स्पेस पॉलिसी डायरेक्टिव को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की मंजूरी के बाद नासा की गतिविधियां फिर से चंद्रमा और मंगल पर केंद्रित हो सकती हैं। नासा ने ही चंद्रमा और मंगल ग्रहों पर पर्यटकों को भेजने का ब्लूप्रिंट तैयार किया था, लेकिन अभी इस रास्ते में कई मुश्किलें हैं। नासा का बजट देश के कुल बजट के 0.5 फीसदी से भी कम है। भारी स्पेस लॉन्च सिस्टम और ओरिऑन अंतरिक्ष यान का विकास 2004 से ही जारी है। फंड की कमी के चलते इसकी लॉन्चिंग कई बार टल चुकी है। एक खामी नई नीति में भी है। ट्रम्प की नीति पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की अंतरिक्ष नीति के विपरीत है। ओबामा ने भी अपने पूर्ववर्ती जॉर्ज डब्ल्यू बुश की नीति को पलटा था। यह सिलसिला बिल क्लिंटन के जमाने से ही चला रहा है। दूसरी ओर, अपोलो प्रोजेक्ट को लेकर अमेरिका में चार राष्ट्रपतियों- आइजनहावर से निक्सन तक- की नीति एक जैसी थी।