Sunday, June 29, 2014

एक प्रेरक कहानी: पत्ता और ढेला



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एक खेत के किनारे एक हरा-भरा पेड़ था। पत्ते जब हवा के झोंकों से हिलते तो वातावरण में अत्यंत मधुर स्वर सुनाई देता। उस पेड़ के नीचे मिट्टी के कुछ ढेले पड़े हुए थे। ढेले सदैव पत्तों की ओर देखते रहते थे। एक दिन एक पत्ते ने एक ढेले से पूछा, 'तुम हमारी तरफ एकटक क्या देखते हो?' ढेले ने उत्तर दिया, 'मैं तुम्हारे सुखी जीवन को देखता हूं। तुम लोग आपस में मिल-जुलकर रहते हो, यह बहुत सराहनीय है। तुम्हारी हंसी, प्रसन्नता और अपनापन देखकर मुझे भी खुशी होती है।' पत्ते ने कहा, 'तुम्हारी भावना बहुत अच्छी है। आज के समय में तो लोगों को अपनों की खुशी ही बर्दाश्त नहीं होती और तुम दूसरों की प्रसन्नता में प्रसन्न होते हो।'
उस दिन से उस पत्ते और ढेले में मित्रता हो गई। समय व्यतीत होता गया और बारिश का मौसम आ गया। एक दिन जोर की आंधी आई। कई पत्ते पेड़ की डाली से टूटकर अलग हो गए। पेड़ की जड़ें हिल गईं। ऐसे भीषण माहौल में पत्ता घबराया। तब ढेले ने उसे कहा, 'घबराओ नहीं, मेरे पास आ जाओ।' पत्ता पेड़ से तो अलग हो ही गया था। ढेले ने उसे अपनी बांहों में भर लिया। पत्ते को आश्वस्ति मिली। उसने ढेले से पूछा, 'अब हमारा क्या होगा?'
ढेले ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, 'तुम तनिक भी चिंता मत करो। जब तक मैं हूं, तब तक तुम्हारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।' आंधी के साथ अब जोरदार वर्षा भी होने लगी। कड़कती बिजली, गरजते बादल और मूसलधार बारिश के प्रहारों को ढेला स्वयं पर तब तक लेता रहा, जब तक कि वह पानी में गलकर बह नहीं गया। बारिश समाप्त होने पर ढेला नहीं था, किंतु पत्ते का जीवन वह बचा गया था।
सार यह है कि सच्चा मित्र वही होता है, जो संकट में साथ देता है। अत: मित्रता समर्पित व उदार हृदय वालों के साथ करनी चाहिए।


साभार: भास्कर समाचार
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