नोट: इस पोस्ट को अपने मित्रों के साथ सोशल साइट्स पर शेयर या ईमेल करने के लिए इस पोस्ट के नीचे दिए गए बटन प्रयोग करें या फेसबुक पर EMPLOYMENT BULLETIN ग्रुप से लिंक लेकर शेयर करें।
Post
published at www.nareshjangra.blogspot.comएक दिन उस गांव के एक धनी जमींदार मलिक ने बड़े भोज का आयोजन किया और उसमें सभी जातियों के
लोगों को खाने पर बुलाया। गुरु नानक का एक ब्राह्मण मित्र उनके पास आया और उन्हें भोज के बारे में बताया।
उसने नानक से भोज में चलने का आग्रह किया। लेकिन नानक जातिव्यवस्था में विश्वास नहीं करते थे इसलिए उन्होंने भोज में जाने को मना कर दिया। उनकी दृष्टि में सभी मानव समान थे। वे बोले कि मैं तो किसी भी जाति में नहीं आता, मुझे क्यों आमंत्रित किया गया है?
ब्राह्मण बोला अब मैं समझा कि लोग आपको अधर्मी क्यों कहते हैं। लेकिन यदि आप भोज में नहीं जाएंगे तो मलिक जमींदार को अच्छा नहीं लगेगा। नानक भोज में नहीं गए।
बाद में मलिक ने उनसे मिलने पर पूछा कि आपने मेरे भोज के निमंत्रण को किसलिए ठुकरा दिया?
तब गुरू नानक ने उत्तर दिया कि मुझे स्वादिष्ट भोजन की कोई लालसा नहीं है, यदि तुम्हारे भोज में मेरे न आने के कारण तुम्हें दुःख पहुंचा है तो मैं तुम्हारे घर में भोजन करूंगा।
लेकिन मलिक फिर भी खुश न हुआ। उसने नानक की जातिव्यवस्था न मानने और दलित के घर में रुकने की निंदा की।
नानक शांत खड़े यह सुन रहे थे। उनहोंने मलिक से कहा कि अपने भोज में यदि कुछ बच गया हो तो ले आओ, मैं उसे खाने के लिए तैयार हूं।
नानक ने मलिक द्वारा लगाई गई थाली से एक-एक रोटी उठा ली। उन्होंने सबसे पहले दलित की रोटी को अपनी मुठ्ठी में रखकर दबाई तो उनकी मुठ्ठी से दूध की धार बह निकली। फ़िर नानक ने मलिक की रोटी को मुठ्ठी में दबाया तो खून की धार बह निकली। यह देखकर धनी व्यक्ति भावविभोर हो गया और वह यह सीख ताउम्र नहीं भूल सका।
यह प्रेरक प्रसंग सभी को एक समान दर्जा देने की कवायद करता है। आशय यह है कि मेहनत की कमाई में जो सुख है वो गलत तरीके से कमाए गए धन में नहीं। यह धन कुछ समय के लिए भले ही आपको सुख दे सकता है। आखिर में आपको इस धन से हानि उठानी पड़ सकती है।
Post
published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: जागरण समाचार
For getting Job-alerts and Education News, join our
Facebook Group “EMPLOYMENT BULLETIN” by clicking HERE