Sunday, June 29, 2014

प्रेरणा: क्रोध में धैर्य जरुरी है

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एक दिन बादशाह अकबर जब दरबार में आए तो बहुत क्रोध में थे। सभी बादशाह के गर्म मिजाज को भांपकर चुप ही रहे। दरबार समाप्त होने पर बीरबल ने अकबर से गुस्से की वजह जाननी चाही तो वे बोले, 'मेरा दामाद बहुत दुष्ट है। मुझे अपनी बेटी से मिले एक साल हो गया, किंतु वह उसे भेजता ही नहीं है।' बीरबल ने कहा, 'जहांपनाह! इसमें गुस्से की क्या बात है? मैं आज ही आपकी बेटी को लाने के लिए आदमी भेज देता हूं।' अकबर बोले, 'आदमी तो मैंने भी भेजा था, किंतु दामाद ने उसे खाली हाथ लौटा दिया। वास्तव में दामाद की जात ही बहुत दुष्ट होती है। हम अपने राज्य के सभी दामादों को सूली पर चढ़ा देंगे। तुम मैदान में सूलियां तैयार करवाओ।' बीरबल ने अकबर को बहुत समझाया, किंतु उनका गुस्सा शांत नहीं हुआ। अंतत: बीरबल ने एक मैदान में कुछ सूलियां तैयार करा दीं। फिर वह बादशाह को दिखाने लाया। बादशाह बोले, 'बहुत बढ़िया। अब मैं अपने राज्य से दामादों का नामोनिशान मिटा दूंगा।' तभी बादशाह की निगाह एक सोने और एक चांदी की सूलियों पर पड़ी। उन्होंने इन कीमती सूलियों के विषय में बीरबल से पूछा, तो उसने कहा, 'जहांपनाह! आपने राज्य के सभी दामादों को सूली पर चढ़ाने का आदेश दिया है। आप और मैं भी तो किसी के दामाद हैं। तो हमें भी सूली पर चढऩा होगा। बादशाह होने के नाते आपके लिए सोने की सूली और आपका खास आदमी होने के कारण मेरे लिए चांदी की सूली बनवाई।' बीरबल की बात सुनकर अकबर को अपनी भूल समझ में आ गई और उन्होंने तत्काल अपना आदेश रद्द कर दिया।
सारांश: क्रोध का प्रतिकार धैर्यपूर्ण शांति से ही संभव है, क्योंकि धैर्य रखने पर ही बुद्धि समस्या का समाधान खोज पाती है।
साभार: भास्कर समाचार
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