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कमजोर मानसून ने सबकी चिंताएं बढ़ा दी है। मौसम विभाग के मुताबिक
पिछले एक हफ्ते में मानसून की रफ्तार ठहर गई है। मौसम विभाग के आंकड़े के
मुताबिक एक जून से अब तक देश में सामान्य से 41 फीसदी कम बारिश हुई है। वहीं
स्काईमेट का आंकड़ा कह रहा है कि पिछले 10 सालों में जून में इतनी कम
बारिश नहीं हुई है और देश के कई राज्य सूखे की चपेट में है। आइए जानते हैं पिछले 10 सालों में कब कितनी बारिश हुई और वह अनुमान के
मुकाबले कैसी रही। साथ ही जानते हैं कि इससे खाद्यान के उत्पादन में कितना
बदलाव आया और जीडीपी पर इसका क्या असर पड़ा।मानसून का खाद्यान के उत्पादन और जीडीपी ग्रोथ पर असर:
वर्ष
|
वास्तविक वर्षा (मिमी में)
|
अनुमान से कम/ज्यादा(%)
|
खाद्यानों के उत्पादन में बदलाव(%)
|
जीडीपी ग्रोथ (अप्रैल-मार्च)
|
2004
|
774.2
|
(-) 14
|
(-) 7.0
|
7.1
|
2005
|
874.3
|
(-) 1
|
5.2
|
9.5
|
2006
|
889.3
|
0
|
4.2
|
9.6
|
2007
|
943.0
|
6
|
6.2
|
9.3
|
2008
|
877.7
|
(-) 2
|
1.6
|
6.7
|
2009
|
698.2
|
(-) 22
|
(-) 7.0
|
8.6
|
2010
|
911.1
|
2
|
12.1
|
8.9
|
2011
|
901.3
|
2
|
6.1
|
6.7
|
2012
|
823.9
|
(-) 7
|
(-) 1.5
|
4.5
|
2013
|
936.7
|
6
|
2.8
|
4.7
|
मानसून की वजह से खाद्यान के उत्पादन में बदलाव को देखा जाए तो यह 2004 में सबसे कम -7 रहा, जबकि 2010 में सबसे अधिक 12.1 प्रतिशत रहा। वहीं दूसरी ओर, 2006 में जीडीपी ग्रोथ सबस अधिक 9.6 प्रतिशत और 2012 में सबसे कम 4.5 प्रतिशत रही।
जब 2009 में पड़ा था सूखा: इससे पहले 2009 में अलनीनो के असर से सूखा पड़ा था। मौसम विभाग की ओर से इस
बार भी 70 फीसदी इस बात की आशंका जताई गई है कि देश में अलनीनो का असर रह
सकता है। मौसम विभाग के हवाले से, साल 2009 में 698.2 मिमी बारिश हुई थी जो कि
सामान्य से 22 फीसदी कम था। उस वक्त देश की जीडीपी 8.6 फीसदी थी।
सूखा पड़ने से हुआ था ये:
- कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 2009 में चावल और तिलहन के उत्पादन में 10 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई थी। वहीं देश में कुल खाद्यानों का उत्पादन 7 फीसदी घट गया था।
- 2009 में चावल का उत्पादन करीब 89.9 लाख टन घट गया था।
- इस दौरान 759.2 उत्पादन लाख टन हुआ था।
- मक्के के उत्पादन में 18.3 लाख टन की गिरावट दर्ज की गई थी।
- 2009 में मक्के का उत्पादन 122.9 लाख टन हुआ था।
- 2009 के खरीफ सीजन में 4.9 लाख टन दाल कम पैदा हुआ था।
- 2009 में तिलहन का उत्पादन 208 लाख टन घटकर 1572.8 लाख टन रहा था।
राजस्थान में सूखे का मतलब: राजस्थान सबसे ज्यादा सूखे की चपेट में आता है। राजस्थान में बारिश कम होने
से बाजरा, ग्वार, दाल और कपास की फसलें सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। इस
फसलों की बुआई जून-जुलाई में होती है ऐसे में बारिश न होने से इस फसलों की
बुआई में देरी होगी और रकबा घटेगा, जिससे उत्पादन प्रभावित होगा। जानकारों
के मुताबिक ग्वार की कीमतें 8000 रुपए प्रति क्विंटल तक हुच सकता है।
पंजाब और हरियाणा के लिए सूखे का मतलब: खरीफ सीजन में इन दोनो राज्यों में चावल ग्वार औऱ मक्के की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। देश का 30 फीसदी चावल का उत्पादन अकेले पंजाब करता है ऐसे में अगर पंजाब में बारिश नहीं हुई या फिर सूखे जैसे हालात पैदा हुए तो चावल का उत्पादन कम होगा और कीमतों में उछाल आना तय है। वहीं हरियाणा में खरीफ सीजन में ग्वार की खेती बड़े क्षेत्र में की जाती है।
गुजरात में सूखा: खरीफ सीजन में गुजरात में कपास, कैस्टर सीड, सोयाबीन, ग्वार और मूंगफली की केती होती है। मुख्य रुप से कपास और कैस्टर सीड का उत्पादन होता है। गुजरात कपास उत्पादन के मामले मे सबसे बड़ा राज्य है। अगर यहा सूखा पड़ा तो कपास की कीमतों में भारी उछाल देखने को मिल सकता है। वहीं पिछले दो सालों से लगातार कैस्टर के उत्पादन में कमी आई है, और इस साल भी घटने का अनुमान है।
मध्य प्रदेश में सूखा आया तो क्या होगा: मध्य प्रदेश सोयाबीन का सबसे बड़ा उत्पादन राज्य है। यहा सूखा पड़ने से सोयाबीन का उत्पादन घट सकता है जिसके कारण रिफाइंड ऑयल की कीमतों में उछाल देखने को मिलेगा। इसके अलावा चावल, अरहर, कपास और गन्ने की खेती होती है।
बिहार और उत्तर प्रदेश में सूखे का क्या मतलब: बिहार में मक्का और चावल और सूर्यमुखी की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। वहीं खरीफ सीजन में उत्तर प्रदेश में चावल और गन्ने की खेती होती है। अगर इन दोनो राज्यों में सूखा आया तो चावल, मक्के और चीनी की कीमतों में इजाफा होगा। इसके अलावा बिहार में अरहर, उरड़ औऱ मूंग पैदा होता है।
पंजाब और हरियाणा के लिए सूखे का मतलब: खरीफ सीजन में इन दोनो राज्यों में चावल ग्वार औऱ मक्के की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। देश का 30 फीसदी चावल का उत्पादन अकेले पंजाब करता है ऐसे में अगर पंजाब में बारिश नहीं हुई या फिर सूखे जैसे हालात पैदा हुए तो चावल का उत्पादन कम होगा और कीमतों में उछाल आना तय है। वहीं हरियाणा में खरीफ सीजन में ग्वार की खेती बड़े क्षेत्र में की जाती है।
गुजरात में सूखा: खरीफ सीजन में गुजरात में कपास, कैस्टर सीड, सोयाबीन, ग्वार और मूंगफली की केती होती है। मुख्य रुप से कपास और कैस्टर सीड का उत्पादन होता है। गुजरात कपास उत्पादन के मामले मे सबसे बड़ा राज्य है। अगर यहा सूखा पड़ा तो कपास की कीमतों में भारी उछाल देखने को मिल सकता है। वहीं पिछले दो सालों से लगातार कैस्टर के उत्पादन में कमी आई है, और इस साल भी घटने का अनुमान है।
मध्य प्रदेश में सूखा आया तो क्या होगा: मध्य प्रदेश सोयाबीन का सबसे बड़ा उत्पादन राज्य है। यहा सूखा पड़ने से सोयाबीन का उत्पादन घट सकता है जिसके कारण रिफाइंड ऑयल की कीमतों में उछाल देखने को मिलेगा। इसके अलावा चावल, अरहर, कपास और गन्ने की खेती होती है।
बिहार और उत्तर प्रदेश में सूखे का क्या मतलब: बिहार में मक्का और चावल और सूर्यमुखी की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। वहीं खरीफ सीजन में उत्तर प्रदेश में चावल और गन्ने की खेती होती है। अगर इन दोनो राज्यों में सूखा आया तो चावल, मक्के और चीनी की कीमतों में इजाफा होगा। इसके अलावा बिहार में अरहर, उरड़ औऱ मूंग पैदा होता है।
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साभार: भास्कर समाचार
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