Tuesday, June 24, 2014

भारत की एक और इमारत विश्व विरासत में शामिल, जानिए इस अनोखी विरासत के बारे में

उत्तर गुजरात के पाटण की प्राचीन-नक्काशीदार ‘रानी की वाव’ (Stepwell) वर्ल्ड हेरिटेज की सूची में शामिल हो गई है। कतर की राजधानी दोहा में जारी संयुक्त राष्ट्र, शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) की विश्व विरासत समिति के 38वें सत्र में रविवार को इसकी घोषणा की गई। गौरतलब है कि इससे पहले वर्ष 2004 में पंचमहल जिले में स्थित चांपानेर-पावागढ़ किले को भी यूनेस्को विश्व विरासत सूची में शामिल किया जा चुका है।
कब बनी रानी की वाव: इस 7 मंजिला बावड़ी का निर्माण 1022 से 1063 ई. की अवधि में हुआ। तत्कालीन राजवंश की रानी उदयमति ने पति भीमदेव की याद में इसका निर्माण करवाया था। यह बहुमूल्य धरोहर सात शताब्दियों तक गाद में दबी रही। इसके बाद भारतीय सर्वेक्षण विभाग ने इसे अनूठे ढंग से
संरक्षित किया है। 
विश्व विरासत में क्यों हुई शामिल: यूनेस्को ने इस वाव को तकनीकी विकास का एक ऐसा उत्कृष्ट उदाहरण माना है, जिसमें भूमिगत जल के उपयोग तथा जल प्रबंधन की बेहतरीन व्यवस्था है। रानी की वाव के अलावा दक्षिण कोरिया की नामहंसानसियोंग, चीन की ग्रांड कैनाल और सिल्क रोड को भी विश्व धरोहर में शामिल किया गया है।
और क्या खास है: रानी की वाव स्मारक वास्तुकला का वह बेजोड़ नमूना है, जो आधुनिक इंजीनियरिंग की दुनिया को भी आश्चर्यचकित कर सकता है। इसका निर्माण 10-11वीं सदी में सोलंकी राजवंश की रानी उदयमति ने पति भीमदेव की याद में करवाया था। यह प्रेम का प्रतीक कहलाती है। राजा भीमदेव सोलंकी वंश के संस्थापक और शासक थे। उन्होंने वडनगर (गुजरात) पर 1021-1063 ई. तक शासन किया। करीब 64 मीटर लंबी और 20 मीटर चौड़ी यह बावड़ी 27 मीटर गहरी है। ज्यादातर सीढ़ी युक्त कुओं में सरस्वती नदी के जल के कारण कीचड़ भर गया है। निर्माण कार्य में नक्काशीदार पत्थरों का प्रयोग किया गया है। अभी भी वाव के खंभे और उन पर उकेरी गईं कलाकृतियां सोलंकी वंश और उनके वास्तुकला के चमत्कार के समय में ले जाती हैं।
भगवान विष्णु को समर्पित है नक्काशियां: वाव की दीवारों और स्तंभों पर अधिकांश नक्काशियां, राम, वामन, महिषासुरमर्दिनी, कल्कि आदि जैसे अवतारों के विभिन्न रूपों में भगवान विष्णु को समर्पित हैं। मूल रूप से बावड़ी सात मंजिल की थी, किन्तु इसकी पांच मंजिलों को ही संरक्षित रखा जा सका है। रानी वाव की बनावट विशिष्ट श्रेणी की है। इसकी सीढ़ियां सीधी हैं, लेकिन इस पर बनी कलाकृतियां अपने-आप में अनूठी हैं। सीढ़ियों पर बने आलिए तथा मेहराब हालांकि अब टूट-फूट चुके हैं, लेकिन फिर भी वे तत्कालीन समय की समृद्ध कारीगरी के दर्शन करवाते हैं। वाव की दीवारों पर लगी कलात्मक खूटियां भी दिलकश हैं।
30 किलोमीटर लम्बी सुरंग भी थी: इस वाव में एक छोटा द्वार भी है, जहां से 30 किलोमीटर लम्बी सुरंग निकलती है। हालांकि अब यह अब पत्थरों व कीचड़ से अवरोधित हो गई है। इसके बारे में ऐसा भी कहा जाता है कि इसे रानी उदयमती ने ही बंद करवा दिया था। यह सुरंग पाटण के सिद्धपुर शहर को निकलती है। सुरंग का निर्माण पराजय के दौरान भागने के लिए करवाया गया था। सुरंग का निर्माण भी इस तरह किया गया था कि इसकी जानकारी सिर्फ रानी और उनके विश्वस्त सैनिकों को ही थी। यानी की महल पर कब्जा होने के बाद भी दुश्मन उनकी तलाश कर पाने में असमर्थ थे।
गुजरात की प्राचीन राजधानी थी पाटण: महेसाणा जिले से 25 मील दूर स्थित पाटण प्राचीन समय में गुजरात की राजधानी हुआ करती थी। भीमदेव प्रथम और सिद्धराज जयसिंह जैसे प्रतापी शासकों की वजह से पाटण का न सिर्फ वैभव बढ़ा, बल्कि ऐतिहासिक पुस्तकों में इसका नाम बार-बार आता है। मौजूदा वक्त में पाटण अपनी पटोला साड़ियों, सहस्रलिंग तालाब और रानी की वाव स्मारक की वजह से मशहूर है, जो वास्तुकला का अनूठा नमूना है। इस जिले में कई और ऐतिहासिक स्थान हैं, मसलन सिद्धपुर, जहां मातृ तर्पण के लिए पूरे देश से लोग आते हैं।
पाटण का उल्लेख महाभारत में भी: पाटण का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। महाभारत के अनुसार भीम ने यहीं पर हिडिंब राक्षस को मारकर उसकी बहन हिडिंबा से विवाह किया था। पाटण में एक सहस्त्रलिंग झील है, जिसके किनारे दर्जनों खंडहर आज भी मौजूद हैं। यहां खुदाई में अब तक कई बहुमूल्य स्मारक मिल चुके हैं। मसलन, पार्श्वनाथ मंदिर, रानी महल और ‘रानी वाव’। 
यूनेस्को की टीम ने गत वर्ष किया था दौरा: गुजरात टुरिज्म के विज्ञापन ‘खुशबू गुजरात की’ एड फिल्म में भी ‘रानी की वाव’ का प्रमुखता से उल्लेख किया गया है। बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन यहां पर लगभग 4 घंटे की शूटिंग कर चुके हैं। शूटिंग के बाद अमिताभ ने कहा था कि मैं खुद भी इस प्राचीन स्मारक की अद्भुत कलाकारी को देखकर आश्चर्यचकित हूं। यूनेस्को की टीम ने गत वर्ष ‘रानी की वाव’ का दौरा किया था। इस दौरे से वाव के विश्व विरासत सूची में शामिल किए जाने की संभावना बढ़ गई थी। इससे पहले (2004 में) गुजरात के पंचमहाल जिले के चांपानेर-पावागढ़ किले को भी विश्व विरासत स्थल की सूची में शामिल किया जा चुका है।
कौन थे राजा भीमदेव सोलंकी: राजा भीमदेव ही सोलंकी राजवंश के संस्थापक व गुजरात के शासक थे। उन्होंने वडनगर (गुजरात) पर 1021-1063 ई. तक शासन किया। लेकिन 1025-1026 ई. में सोमनाथ और उसके आसपास के क्षेत्रों को विदेशी आक्रमणकारी महमूद गजनी ने अपने कब्जे में कर लिया था। गजनी के आक्रमण के प्रभाव के अधीन होकर सोलंकियों ने अपनी शक्ति और वैभव को गंवा दिया था। सोलंकी साम्राज्य की राजधानी कही जाने वाली ‘अहिलवाड़ पाटण’ भी अपनी महिमा, गौरव और वैभव को गंवाती जा रही थी, जिसे बहाल करने के लिए सोलंकी राज परिवार और व्यापारी एकजुट हुए और उन्होंने गुजरात में संयुक्त रूप से भव्य और खंडित मंदिरों के निर्माण के लिए अपना योगदान देना शुरू किया। 
सूर्य मंदिर का निर्माण भी भीमदेव सोलंकी ने ही करवाया था: मोढ़ेरा का विश्व प्रसिद्ध सूर्य मंदिर अहमदाबाद से तकरीबन सौ किलोमीटर की दूरी पर पुष्पावती नदी के तट पर स्थित है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण सम्राट भीमदेव सोलंकी प्रथम (ईसा पूर्व 1022-1063 में) ने ही करवाया था। इसकी पुष्टि एक शिलालेख से होती है, जो मंदिर के गर्भगृह की दीवार पर लगा है। इसमें मंदिर के निर्माण की तिथि लिखी है.. ‘विक्रम संवत् 1083 अर्थात् (1025-1026 ईसा पूर्व)।’ यह वही समय था, जब इस राज्य पर भीमदेव का शासन था। सोलंकी ‘सूर्यवंशी’ थे। वे सूर्य को कुलदेवता के रूप में पूजते थे। इसीलिए उन्होंने अपने आद्य देवता की आराधना के लिए एक भव्य सूर्य मंदिर बनाने का निश्चय किया और इस प्रकार मोढ़ेरा के सूर्य मंदिर ने आकार लिया। भारत में तीन सूर्य मंदिर हैं, जिसमें पहला उड़ीसा का कोणार्क मंदिर, दूसरा जम्मू में स्थित मार्तंड मंदिर और तीसरा गुजरात के मोढ़ेरा का सूर्य मंदिर है।


साभार: डीबी समाचार
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