Sunday, June 22, 2014

वे सात कारण जिन्होंने मोदी सरकार को रेल किराया बढ़ाने को मजबूर किया

साभार: दैनिक भास्कर समाचार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार ने रेल यातायात का किराया और माल भाड़ा बढ़ा दिया। यूपीए सरकार ने चुनाव से पहले रेल यात्री कि‍राये और माल भाड़े में बढ़ोत्‍तरी का फैसला लि‍या था लेकि‍न इसका फैसला नई सरकार पर छोड़ दि‍या गया है। रेलवे को यात्री परि‍चालन से भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। यह मोदी और रेल मंत्री की मजबूरी भी हो सकती है। आइए जानते हैं कि‍ मोदी सरकार की ऐसी क्‍या मजबूरी हो सकती है और क्‍या है रेलवे का हाल: 

  1. हर माह 900 करोड़ का नुकसान: अंतरि‍म रेल बजट 2014-15 में कहा गया कि‍ रेलवे को हर माह यात्री भाड़े पर 900 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है। पि‍छली सरकार ने 16 मई को यात्री कि‍राए और माल भाड़े में क्रमश: 14.2 फीसदी और 6.5 फीसदी का इजाफा करने की घोषणा की थी, लेकि‍न बाद में इसे नए रेलवे मंत्री पर छोड़ दि‍या गया। 
  2. ईंधन पर बढ़ता खर्च: बीते अंतरि‍म रेल बजट में संशोधि‍त अनुमान के मुताबि‍क, रेलवे ईंधन पर सालाना करीब 30 हजार करोड़ रुपए ईंधन पर खर्च करता है, जिसमें आधे से ज्यादा खर्च डीजल पर होता है। चूंकि इराक हिंसा के बाद से कच्चे तेल के दाम अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेजी से बढ़ गए हैं, लिहाजा इसका प्रभाव रेलवे पर भी पड़ा है। अगर कमाई की बात करें तो किराये से रेलवे को साल भर में 1,65,770 करोड़ रुपए की कमाई ही होती है।  
  3. कर्मचारि‍यों को वेतन भी देना है: पि‍छले रेल बजट में कहा गया था कि ईंधन का खर्च निकालने के बाद स्टेशनों, ट्रेनों का रख-रखाव, कर्मचारियों की सैलरी और तमाम खर्च करने के बाद रेलवे घाटे में चला जाता है। इस किराये में बढ़ोत्तरी से रेलवे का 6500 करोड़ रुपए का घाटा कम होगा। बेहतर सुविधाओं और सेवा के लिए यह बढ़ोत्तरी जरूरी थी। वहीं, रेलवे पर कर्मचारी पेंशन खर्च 1,500 करोड़ रुपए बढ़ गया है।  
  4. नि‍वेश है बढ़ाना, पैसा है नहीं: साल 2001 में आई राकेश्‍ा मोहन समि‍ति‍ की रि‍पोर्ट में कहा गया है कि‍ सालाना निवेश रेलवे की जरूरत है। रेलवे के आधुनिकीकरण पर राकेश मोहन समिति ने 2001 साल पहले आकलन किया था कि  2002 से 2006 तक 14,000 से 15,000 करोड़ रुपए सालाना का निवेश करना होगा। इसके बाद 2007 से 2011 तक सालाना तकरीबन 12,500 करोड़ रुपए का निवेश होगा। 2012 से 2016 तक सालाना तकरीबन 13,500 करोड़ रुपए का निवेश अनिवार्य है। पिछले कुछ वर्षों में रेलवे में निवेश का सूखा पड़ा है।  
  5. कि‍राये से ज्‍यादा है लागत: रेल यात्री किराए में पिछले कुछ सालों से सालाना 9 फीसदी की वृद्धि की जा रही है, जबकि इस दौरान लागत में 15 फीसदी की वृद्धि हुई है। रेलवे का पैसेंजर ऑपरेशन सब्‍सि‍डी 26,000 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। रेलवे अगर 100 रुपए कमाती है तो इसमें इसे 70 रुपए वह खर्च भी कर देती है। ऐसे में रेलवे के पास वि‍कास और अन्‍य चीजों पर खर्च करने के लि‍ए पैसे ही नहीं है। यह भी रेल कि‍राए और माल भाड़े में इजाफा करने के पीछे बढ़ा कारण रहा है।  
  6. प्रोजेक्ट पूरा करने की चुनौती: कुछ आंकड़ों पर नजर डालें तो रेलवे की दि‍क्कत साफ हो जाती है। रेल मंत्री सदानंद गौडा ने कहा है कि‍ पि‍छली सरकार के दौरान करीब 5 लाख करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट्स की घोषणा की गई थी, लेकि‍न मंत्रालय को केवल 25,000 करोड़ रुपए से 30,000 करोड़ रुपए ही शुद्ध राजस्व मि‍ल रहा है। ज्यादातर नए प्रोजेक्ट्स पैसे की कमी के कारण फंसे हुए हैं। अब रेलवे के सामने यह सबसे बड़ी चुनौती है कि‍ वह प्रोजेक्ट‍ लागत से 20 गुना कम रिटर्न पर कैसे काम करेगी। इसके अलावा, मोदी सरकार ने हाई स्पीड ट्रेन चलाने का सपना दिखााया है।इसके लि‍ए भी रेल मंत्रालय को भारी निवेश की जरूरत है। 
  7. सेफ्टी में भी है पीछे: भारतीय रेलवे सेफ्टी के मामले में भी बहुत कमजोर है। सेफ्टी से जुड़े मामलों में काकोदकर कमेटी की रिपोर्ट लागू करने के लिए भी रेलवे को मोटी रकम चाहिए। ऐसे में वित्त मंत्रालय से अगर रेलवे को मदद के रूप में पैसा बढ़ाया भी जाता है तो भी रेलवे के लिए किराया बढ़ाना मजबूरी होगी। रेलवे के सूत्रों के मुताबिक इस वक्त रेलवे को न सिर्फ ट्रैक मजबूत करने हैं, बल्कि नई सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं के लिए भी उसे पैसे की जरूरत होगी। 


साभार: दैनिक भास्कर समाचार
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