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सुषमा स्वराज ने विदेश मंत्री बनने के बाद हाल ही में पहली बार बांग्लादेश
की विदेश यात्रा की है। मोदी सरकार के आने के बाद भारत-बांग्लादेश संबंध
एक बार फिर नए सिरे से परिभाषित हो सकते हैं। ऐसे में भारत की क्या रणनीति
होगी, यह समझने लायक है।- 6% की दर से बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था विकास कर रही है। मानव विकास सूचकांक भी भारत के मुकाबले बेहतर रहा है। बांग्लादेश की इस कामयाबी ने भारत से रिश्ते मजबूत करने में उसका आत्मविश्वास बढ़ाया है। 100 मेगावॉट बिजली बांग्लादेश को देने का फैसला भारत ने किया है। यह बिजली भारत अपने त्रिपुरा स्थित गैस आधारित पॉवर प्रोजेक्ट के जरिए देगा।
- 2003 में बांग्लादेश भारत विरोधी ताकतों के लिए 'टेरर हब' बन गया था। भारत पर हुए आतंकी हमलों की जिम्मेदारी लेने वाले आतंकी संगठन हरकत उल जिहाद इस्लामी (हूजी) ने यहां अपना ठिकाना बना लिया था।
- 1000 बांग्लादेशी नागरिकों को पिछले एक दशक में बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (बीएसएफ) द्वारा मारे जाने का दावा बांग्लादेशी अधिकारियों ने किया है।
बांग्लादेश के निर्माण से अब तक भारत के साथ उसके
रिश्ते बनते-बिगड़ते रहे हैं। हालांकि, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख
हसीना की भारत समर्थित नीति ने उसके प्रति भारत का रुख उदारवादी बना दिया
है। एक प्रतिष्ठित अखबार और सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज
(सीएसडीएस) द्वारा कराए गए सर्वे में यह बात सामने आई है कि 48 फीसदी लोग
मानते हैं कि इस समय भारत के लिए सबसे भरोसेमंद देश बांग्लादेश है। इससे की
जाने वाली तमाम संधियां विश्वसनीय हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
ने भी सुषमा स्वराज के हाथों शेख हसीना के नाम अपना पत्र भेजकर इस बात के
संकेत दिए हैं कि वे बांग्लादेश के साथ नए सिरे से संबंध बनाने के लिए
तत्पर हैं। मोदी बांग्लादेश से बेहतर संबंधों के लाभ और हानि को अच्छी तरह
जानते हैं।
पिछले एक माह में जिस तरह की उनकी विदेश नीति रही है, उसके आधार पर
कहा जा सकता है कि वे अपने पड़ोसी और छोट-छोटे देशों को साथ लेकर बड़े
देशों के साथ रिश्ते बनाना चाहते हैं। इस कड़ी में बांग्लादेश के साथ
रिश्ते मजबूत करना भी उनके एजेंडे में शामिल हो सकता है। हालांकि, वे यह भी
जानते हैं कि बांग्लादेश से दोस्ती का असर दूसरे देशों और संगठनों पर किस
तरह का होगा।
भारत को यह नहीं भूलना चाहिए: इस समय बांग्लादेश से रिश्तों को लेकर नरेंद्र मोदी उसी स्थिति में हैं, जिस स्थिति में वर्ष 2009 में प्रधानमंत्री बनने के बाद शेख हसीना थीं। उन्होंने प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठते ही भारत को राहत देने वाले कदम उठाए थे। हसीना ने न सिर्फ तत्काल भारत विरोधी संगठन और आतंकी कैम्पों पर कार्रवाई शुरू की थी, बल्कि 24 आतंकियों को भी भारत के हवाले कर दिया था। उन्होंने उन लोगों पर भी अभियोग चलाया, जिन्होंने आतंकियों से साठगांठ की थी। इन सबको देखते हुए कहा जा सकता है कि अब बांग्लादेश के प्रति मित्रतापूर्ण कदम उठाने का समय मोदी सरकार का है।
भारत को यह नहीं भूलना चाहिए: इस समय बांग्लादेश से रिश्तों को लेकर नरेंद्र मोदी उसी स्थिति में हैं, जिस स्थिति में वर्ष 2009 में प्रधानमंत्री बनने के बाद शेख हसीना थीं। उन्होंने प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठते ही भारत को राहत देने वाले कदम उठाए थे। हसीना ने न सिर्फ तत्काल भारत विरोधी संगठन और आतंकी कैम्पों पर कार्रवाई शुरू की थी, बल्कि 24 आतंकियों को भी भारत के हवाले कर दिया था। उन्होंने उन लोगों पर भी अभियोग चलाया, जिन्होंने आतंकियों से साठगांठ की थी। इन सबको देखते हुए कहा जा सकता है कि अब बांग्लादेश के प्रति मित्रतापूर्ण कदम उठाने का समय मोदी सरकार का है।
चीन से लड़ने में मिलेगी मदद: भारत के सभी पड़ोसी मुल्कों से व्यापार बढ़ाकर चीन भारत की हिंद महासागर के
जरिए घेराबंदी करना चाहता है। इसी के तहत उसने पाकिस्तान में ग्वादर,
मालदीव में माराओ, श्रीलंका में हमबनटोटा, म्यांमार में सितवई और
बांग्लादेश में चिटगांव बंदरगाह स्थापित किए हैं। यदि भारत के बांग्लादेश
से रिश्ते और मजबूत हुए तो हम बांग्लादेश के चिटगांव बंदरगाह से चीन के
व्यापार को निष्प्रभावी कर सकते हैं। इससे अन्य देशों के रिश्ते और व्यापार
पर भी असर पड़ेगा।
कैसे असर डाल रहा पाकिस्तान: भारत और बांग्लादेश के रिश्तों पर
पाकिस्तान बराबर अपनी नजर बनाए हुए है। भारत में कथित रूप से डेढ़ से दो
करोड़ अवैध बांग्लादेशी शरणार्थी रह रहे हैं। पाकिस्तान की आईएसआई और अन्य
भारत विरोधी संगठन इन्हें भारत के खिलाफ भड़काकर भारत में आतंकवाद को
बढ़ावा देना चाहते हैं। लंबे समय से इनकी कोशिश शरणार्थी क्षेत्र को
मुस्लिम बहुल बनाकर अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने की रही है। मोदी सरकार
को बांग्लादेशी शरणार्थियों के जरिए भारत को नुकसान पहुंचाने वाले
आतंकियों के मंसूबों को नाकाम करने के बारे में कोशिश करना चाहिए।
इन मुद्दों का होना चाहिए निराकरण:
- तीस्ता नदी जल विवाद: भारत और बांग्लादेश से होकर जाने वाली तीस्ता नदी के पानी का विभाजन दोनों देशों के रिश्तों में खटास की वजह रहा है। यूपीए सरकार ने भी इस मसले को हल करने की कोशिश की थी, लेकिन पं. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बांग्लादेश के लिए उतना जल छोडऩे के लिए राजी नहीं हुईं, जितने पर दोनों देशों में सहमति बनी थी। अंतत: सरकार ने इस मुद्दे को बिना किसी निष्कर्ष के ही छोड़ दिया। अब भारत इस मुद्दे पर उदारवादी रवैया अपनाते हुए इसका समाधान कर बांग्लादेश की नजर में उसका हितैषी बन सकता है।
- टैटूलिया कॉरिडोर विवाद: भारत और बांग्लादेश के व्यापारिक रिश्तों के लिए टैटूलिया कॉरिडोर बहुत महत्वपूर्ण है। यदि इस कॉरिडोर को बांग्लादेश खोलने के लिए राजी हो जाता है तो दोनों देशों की दूरी 85 किमी कम हो जाएगी। साथ ही पूर्वोत्तर राज्यों का आवागमन सुगम होगा। इससे भारत को बांग्लादेश से होने वाले व्यापारिक लाभ में मदद मिलेगी। हालांकि, बांग्लादेश ऐसा तभी करेगा, जब भारत उसे दूसरी सहूलियतें दे। नई सरकार को इस मसले पर जल्द समझौता करना चाहिए।
- लैंड बॉर्डर एग्रीमेंट: वर्षों से चले आ रहे लैंड बॉर्डर एग्रीमेंट के विवाद को सुलझाना राजग सरकार की बड़ी उपलब्धियों में शामिल हो सकता है। दोनों देशों के बीच 4096 किमी लंबी इस सीमा में करीब 162 रहवासी बस्तियां हैं। इसमें से 111 भारत की हैं और बाकी बांग्लादेश की। इन बस्तियों के रहवासियों को न तो मूलभूत सुविधाएं नसीब हैं और न यह स्पष्ट है कि यह किस देश के नागरिक हैं। राजग सरकार को इस दिशा में कोई महत्वपूर्ण कदम उठाना चाहिए।
- ऑन अराइवल वीजा: बांग्लादेश की भारत से पुरानी मांग रही है कि वह उनके देश के रहवासियों को ऑन अराइवल वीजा उपलब्ध कराए, लेकिन इसके विरोधी कहते हैं कि इससे भारत में घुसपैठ बढ़ेगी, जबकि पक्षधरों का कहना है कि जब पाकिस्तानियों को ऑन अराइवल वीजा दिया जा सकता है तो बांग्लादेशियों को क्यों नहीं। सरकार इस मामले में सख्त नियम बनाते हुए इस तरह का वीजा बांग्लादेशियों को दे सकते हैं।
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साभार: भास्कर समाचार
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