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एक बार ईरान के बादशाह ने अकबर को पत्र लिखकर 15 दिनों के लिए बीरबल
को ईरान बुला लिया। वहां बीरबल ने अपनी चतुराई व ज्ञान से जल्दी ही बादशाह
को प्रभावित कर लिया। इससे उनके कई दरबारियों को ईर्ष्या हुई, क्योंकि
बीरबल के आने से उनका महत्व घट गया। एक दिन बादशाह ने बीरबल से कहा, 'तुम दुनिया के अनेक देशों का भ्रमण
कर चुके हो और वहां के राजाओं से मिले हो। क्या तुमने कहीं मेरे जैसा
दयालु, सहृदय, उदार और न्यायशील राजा देखा है?' बीरबल ने उत्तर दिया,
'बादशाह! आप तो पूनम के चांद के समान हैं। अन्य किसी राजा की तुलना आपके
साथ नहीं की जा सकती।' बादशाह ने खुश होकर बीरबल को पुरस्कृत किया। फिर
उसने पूछा, 'बादशाह अकबर के बारे में तुम्हारी क्या राय है?' बीरबल ने कहा, 'हमारे बादशाह दूज के चांद के जैसे हैं।' यह सुनकर
ईरानी बादशाह ने सोचा कि दूज के चांद से बड़ा पूनम का चांद होता है अर्थात
मैं अकबर से ज्यादा महान हूं। उसने बीरबल को फिर पुरस्कृत किया। ईर्ष्यालु
दरबारियों ने यह वाकया अकबर तक पहुंचा दिया। बीरबल के लौटने पर अकबर ने
नाराजी जताते हुए कहा, 'तुमने ईरानी बादशाह की तुलना में मेरी प्रतिष्ठा कम
कर दी।' तब बीरबल ने कहा, 'बादशाह सलामत! मैंने तो आपकी प्रतिष्ठा बढ़ाई
है। पूनम का चांद पूनम के दिन ही बड़ा दिखाई देता है। अगले दिन से वह छोटा
होता जाता है और अमावस्या के दिन गायब हो जाता है। ईरानी बादशाह की ख्याति
आज पूनम के चांद जैसी है, किंतु वह क्रमश: कम होती जाएगी, जबकि दूज के
चांद की तरह आपका यश और समृद्धि दिन-प्रतिदिन बढ़ते जाएंगे। अत: ऐसा कहकर
मैंने आपकी ही श्रेष्ठता दर्शाई है।' अकबर अब बीरबल से अति प्रसन्न था। दो
समान ओहदेदारों को खुश रखने के लिए चतुराईभरी समझ-बूझ जरूरी होती है।
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साभार: डीबी समाचार
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