Sunday, June 22, 2014

हिंदी पर सरकार का यू-टर्न, आदेश सिर्फ हिंदी भाषी राज्यों के लिए

साभार: दैनिक भास्कर समाचार
सोशल मीडिया पर हिंदी में पोस्ट करने के केंद्र के निर्देश पर गैर-हिंदी भाषी राज्य विरोध में खड़े हो गए हैं। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक विरोध हुआ। यह देख केंद्र को शुक्रवार को भी सफाई देनी पड़ी कि यह आदेश हिंदी भाषी राज्यों के लिए है। गैर-हिंदी भाषी राज्यों के लिए नहीं। विरोध शुरू हुआ था तमिलनाडु से। गुरुवार को डीएमके प्रमुख एम. करुणानिधि ने केंद्र पर हिंदी थोपने का आरोप लगाया। शुक्रवार को एआईएडीएमके नेता और तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता ने विरोध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी। भाजपा के तमिलनाडु में सहयोगी पीएमके-एमडीएमके के अलावा माकपा, नेशनल कॉन्फ्रेंस आदि ने भी आवाज बुलंद की। माकपा की वृंदा करात ने निर्देश में 'सिर्फ हिंदी' जैसे शब्द के इस्तेमाल पर ही आपत्ति उठाई। दो दिन तक चली बयानबाजी के बाद शुक्रवार को प्रधानमंत्री कार्यालय ने सफाई दी, 'यह कोई नई नीति नहीं है। न ही किसी गैर हिंदीभाषी राज्य पर हिंदी थोपने की कोई कोशिश है। आदेश 10 मार्च 2014 को जारी किया गया था। राजभाषा विभाग ने 27 मई को इसे सिर्फ दोहराया है।' 
पुरानी सरकार का है हिंदी वाला फरमान:
हिंदी का इस्तेमाल करने के गृह मंत्रालय के निर्देश पर नया दावा सामने आया है। एक स्वतंत्र पत्रकार कंचन गुप्ता ने सर्कुलर की कॉपी ट्विटर पर पोस्ट की है। साथ ही दावा किया कि यह राजनाथ सिंह के गृहमंत्री बनने से पहले जारी कर दिया गया था। गुप्ता ने लिखा, 'मीडिया हमें किस तरह से बेवकूफ बनाता है। सोशल मीडिया में हिंदी यूज करने का फैसला 10 मार्च 2014 को लिया गया था। सर्कुलर 27 मई 2014 को जारी हुआ। नए गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने 29 मई को अपना ऑफिस संभाला था।' 
क्या है विवाद:
गृह मंत्रालय ने 27 मई को सभी विभागों और मंत्रालयों के लिए आदेश जारी किया था। कहा था कि फेसबुक, ट्विटर जैसी सोशल मीडिया साइट्स पर सरकारी अकाउंट्स से हिंदी में पोस्ट को प्राथमिकता दी जाए। गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग ने गुरुवार को कहा था कि नई सरकार सभी विभागों एवं सार्वजनिक जीवन में हिंदी मे कामकाज को बढ़ावा देगी। 
विरोध और समर्थन में बंटे नेता:
  • 'गैर-हिंदीभाषी राज्यों पर हिंदी थोपना भारत की अखंडता के लिए खतरनाक है। इससे देश में अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। सरकार सोए शेर को न जगाए।' -वाइको, एमडीएमके प्रमुख
  • 'विवाद खत्म करने को सरकार को पहल करनी चाहिए। संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल सभी 22 भाषाओं को आधिकारिक भाषा का दर्जा देना चाहिए।' -एस रामदास, पीएमके 
  • 'नेताजी (मुलायम सिंह) ने हाल में लोकसभा में कहा था कि सदन में बातें हिंदी और उर्दू में हो। इससे भाषाओं की गरिमा बढ़ेगी। गृह मंत्रालय का कदम स्वागत योग्य है।' -अखिलेश यादव, मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश 
  • 'हिंदी को बढ़ावा देने का मतलब अंग्रेजी या क्षेत्रीय भाषाओं का विरोध तथा उपेक्षा नहीं है। लोकतंत्र में विरोध करने का सबको अधिकार है। लेकिन बेवजह की सियासत नहीं होनी चाहिए।' -मुख्तार अब्बास नकवी, भाजपा
  • 'केंद्र सरकार हिंदी पर जोर दे रही है, यह अच्छी बात है। उसे अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को भी बढ़ावा देने की दिशा में पहल करनी चाहिए।' - मायावती, बसपा 
  • 'भारत अलग-अलग धर्म और भाषाओं का देश है। यहां किसी भी राज्य या लोगों पर भाषा को थोपने की कोशिश करना संभव नहीं है।' - उमर अब्दुल्ला, सीएम, जम्मू कश्मीर 
साभार: दैनिक भास्कर समाचार
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