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अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन अपनी युवावस्था में थे। मन में
बहुत कुछ करने की ललक थी, आगे बढऩे का हौसला भी था और कठिनाइयों से जूझने
का साहस भी भरपूर था, किंतु निर्धनता बार-बार राह रोकती थी। लिंकन को कानून
संबंधी साहित्य के अध्ययन में विशेष रुचि थी, लेकिन अर्थाभाव आड़े आता था।
एक बार उन्हें पता चला कि नदी के दूसरी ओर ओगमोन गांव में एक अवकाश
प्राप्त न्यायाधीश रहते थे, जिनके पास कानून की पुस्तकों का अच्छा संग्रह
है। लिंकन ने तय किया कि वे न्यायाधीश महोदय के पास जाएंगे और उनसे विनती
करेंगे कि वे अपने संग्रह को उन्हें भी उपयोग करने दें। उन दिनों कड़ाके की
ठंड पड़ रही थी। लिंकन ने कोई परवाह नहीं की और बर्फीली नदी में नाव उतार
दी। नाव वे स्वयं चला रहे थे। आधी नदी उन्होंने पार की होगी कि नाव एक बड़े
हिमखंड से टकराकर चूर-चूर हो गई। फिर भी लिंकन ने हार नहीं मानी। तैरते
हुए नदी पार कर न्यायाधीश महोदय के घर पहुंच गए और उनके समक्ष अपनी इच्छा
रखी। न्यायाधीश महोदय ने उनकी ललक देखकर उन्हें अपनी सारी पुस्तकें पढऩे की
अनुमति दे दी, किंतु उस समय उनका घरेलू नौकर छुट्टी पर था। अत: उन्होंने
लिंकन को अपने घरेलू काम करने के लिए कहा, जिसे लिंकन ने सहर्ष स्वीकार कर
लिया। वे न्यायाधीश के घर के लिए जंगल से लकडिय़ां बटोरकर लाते, उनकी
आवश्यकता का पानी भरते और पारिश्रमिक के नाम पर उन्हें मात्र पुस्तकें पढऩे
की छूट थी, लेकिन लिंकन प्रसन्न थे। संकल्प के धनी लिंकन ने आगे चलकर जो
ऊंचाइयां हासिल कीं, वे सर्वविदित हैं। संकल्पशीलता सभी कठिनाइयों पर विजय
प्राप्त कर उपलब्धि की राह के कांटे चुन लेती है और अंतत: लक्ष्य की
प्राप्ति करा ही देती है।
साभार: डीबी समाचार
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