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Tuesday, June 27, 2017
Saturday, January 28, 2017
जानिए 'पद्मावती' के सेट पर डायरेक्टर संजय लीला भंसाली के साथ क्या हुआ और क्यों?
शुक्रवार को जयपुर के जयगढ़ फोर्ट में बॉलीवुड डायरेक्टर संजय लीला भंसाली अपनी टीम के साथ अपनी नई फिल्म "पद्मावती" की शूटिंग कर रहे थे और इसी दौरान राजस्थान के राजपूत संगठन "करणी सेना" के पदाधिकारी सदस्यों ने सेट पर तोड़-फोड़ और भंसाली के साथ मार-पीट की। खबर आप पहले ही पढ़ चुके होंगे। लेकिन बात आती है कि करणी सेना ने आखिर क्यों इतने "मशहूर डायरेक्टर साहब" की धुनाई की। मामला दरअसल यह था कि फिल्म में चित्तौड़गढ़ और वहां
जानिए विवादित फिल्म 'पद्मावती' की नायिका चित्तौड़ की रानी पद्मिनी की असली कहानी
रानी पद्मिनी 13वीं शताब्दी में चित्तौड़ के राजा रावल रतन सिंह की पत्नी थीं। राजा रतन सिंह के दरबार में एक संगीतकार राघव चेतन हुआ करता था, जिसके संगीत के अद्भुत हुनर के कारण उसे दरबार में विशेष दर्जा प्राप्त था। परंतु यह संगीतकार चोरी छिपे तंत्रविद्या, टोने-टोटके और जादूगरी जैसे कार्य किया करता था। एक बार उसे बुरी आत्माओं को बुलाने का कुकृत्य करते हुए रंगे हाथ पकड़ लिया गया और उसके बाद उसे मुंह काला कर गधे पर बैठा कर सजा दी गई और राज्य से बाहर निकाल दिया गया। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। उसके बाद वह संगीतकार दिल्ली के आसपास रहने लगा। उसके मन में एक विचार आया कि
Monday, December 26, 2016
शहीद उधम सिंह: एक महान योद्धा (117वीं जयन्ती पर विशेष श्रद्धांजलि)
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1919 का जलियांवाला काण्ड - सुनते ही अंग्रेजी हुकूमत की सबसे अधिक अमानवीय तस्वीर उभर कर सामने आ खड़ी होती है। 13 अप्रैल, 1919 की वह दुर्भाग्यशाली शाम जिसे सैंकड़ों हिन्दुस्तानियों के खून से लाल होते हुए उसने अपनी आँखों से देखा था। बीस हजार लोग जमा हुए थे अमृतसर के जलियांवाला बाग़ में, बिलकुल शान्तिपूर्ण तरीके से सब लोग अपने नेताओं के विचार सुनने के लिए इकट्ठे हुए थे। "रोलेट एक्ट" और डॉo सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के विरोध-स्वरुप आयोजित इस सभा में सब कुछ ठीक-ठाक
Sunday, August 21, 2016
विडम्बना: 14 सेकंड घूरने पर सजा देने वाला क़ानून 12 साल की माँ के बेटे से मांगता है 'दुष्कर्म' का 'सर्टिफिकेट'
नरेश जांगड़ा (फतेहाबाद)
आज दो ख़बरें पढ़ीं। दोनों खबरों में इतना विरोधाभास कि सोचने पर मजबूर कर दिया कि हमारे देश का क़ानून इतना अजीब क्यों है। एक तरफ क़ानून 14 सेकंड में अच्छे भले आदमी को 'दोषी' बना रहा है, दूसरी तरफ वही क़ानून अपनी ही लाचारी जता कर पीड़ित से कहता है कि अपराधी का अपराध तू खुद साबित कर।
आज दो ख़बरें पढ़ीं। दोनों खबरों में इतना विरोधाभास कि सोचने पर मजबूर कर दिया कि हमारे देश का क़ानून इतना अजीब क्यों है। एक तरफ क़ानून 14 सेकंड में अच्छे भले आदमी को 'दोषी' बना रहा है, दूसरी तरफ वही क़ानून अपनी ही लाचारी जता कर पीड़ित से कहता है कि अपराधी का अपराध तू खुद साबित कर।
पहली खबर: 14 सेकंड तक लगातार किसी महिला को देखने
Tuesday, June 7, 2016
धर्म और भगवान के नाम पर ठगी का मायाजाल और लुटता हुआ बेवकूफ भारत
Naresh Jangra (Lecturer in Maths, Fatehabad)
छुट्टियों के दौरान कुछ खाली समय का उपयोग टीवी देखकर कर रहा हूँ। चैनल बदलते बदलते एक चैनल लग जाता है, जिस पर टेलीशॉपिंग के जरिये हनुमान जी के कुछ मंत्र हजारों रुपए में बेचे जा रहे हैं। 2-4 मिनट देखा, सुना। कुछ फ़िल्मी और टीवी की हस्तियां हनुमत्कवच की महिमा का बखान कर रही हैं। बीच में ही एक मरियल
छुट्टियों के दौरान कुछ खाली समय का उपयोग टीवी देखकर कर रहा हूँ। चैनल बदलते बदलते एक चैनल लग जाता है, जिस पर टेलीशॉपिंग के जरिये हनुमान जी के कुछ मंत्र हजारों रुपए में बेचे जा रहे हैं। 2-4 मिनट देखा, सुना। कुछ फ़िल्मी और टीवी की हस्तियां हनुमत्कवच की महिमा का बखान कर रही हैं। बीच में ही एक मरियल
Wednesday, March 23, 2016
कैसे हो शहीदों का सम्मान??
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निवेदन: इस आर्टिकल को पढने वाले सभी पाठकों से मेरा अनुरोध है की कृपया 5 मिनट का समय निकाल कर इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।
अनुरोध: जो लोग भी इस आर्टिकल को पढ़ें, कृपया अपने मित्रों के साथ भी सांझा करें।
आज भारत के सबसे बहादुर और सबसे सच्चे देशभक्तों में गिने जाने वाले माँ भारती के वीर सपूतों शहीद-ए-आज़म सरदार भगत सिंह संधू, शहीद शिवराम राजगुरु और शहीद सुखदेव थापर का बलिदान दिवस है। बहुत सी जगहों पर, सरकारी दफ्तरों में और मंत्रालयों में इन तीनों की प्रतिमाओं पर पुष्प चढ़ाए जा रहे हैं। इन औपचारिकताओं को बाकायदा कैमरों में कैद किया जा रहा है, एक रिकॉर्ड के तौर पर। परन्तु सोचने की बात यह है कि पुष्प चढाने वाले कितने लोगों की भावनाएं इन पुष्पों से जुडी हैं। फेसबुक, ट्विटर आदि पर आज
Saturday, January 16, 2016
Friday, March 6, 2015
प्रसंगवश: नक़ल की बढ़ती प्रवृत्ति के लिए दोषी कौन?
नोट: इस पोस्ट को सोशल साइट्स पर शेयर/ ईमेल करने के लिए इस पोस्ट के नीचे दिए गए बटन प्रयोग करें।
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दो दिन से हरियाणा में चल रही बोर्ड परीक्षाओं को लेकर मन में कई तरह के विचारों की उधेड़-बुन चल रही थी। बोर्ड ने इस बार "नक़ल रहित" परीक्षा के संचालन हेतु पूरी व्यवस्था की। बोर्ड ने बच्चों के परीक्षा केंद्र बदलने से लेकर "नक़ल उन्मूलन अभियान" तक हर प्रयास इस दिशा में सकारात्मक तरीके से करने का प्रयास किया। लेकिन ऐसा भी क्या हुआ कि इतना प्रबंध होने के बावजूद परीक्षा के पहले ही दिन परीक्षा प्रणाली कलंकित हो गई। बात कर रहा हूँ 4 मार्च को लीक हुए बारहवीं कक्षा के अंग्रेजी के पर्चे की।
नक़ल रोकने के इतने प्रयासों के चलते पेपर लीक हो जाना क्या संकेत देता है? इसी सवाल का जवाब ढूँढ़ते-ढूँढ़ते कानों में एक टीवी चैनल की आवाज भी पड़ गई जिस पर इसी विषय पर एक कार्यक्रम चल रहा था। दर्शकों के फ़ोन चैनल वालों के पास आ रहे थे, और हर कॉल पर मेरे मन में बड़ी विचित्र सी भावनाएं उत्पन्न हो रही थीं। विचित्र सा कष्ट अनुभव हो रहा था। एक अध्यापक होते हुए अध्यापक समाज को ही नक़ल जैसे "कुकर्म" का दोषी पाकर और हो भी क्या सकता था? लेकिन स्वयं को गर्वित भी अनुभव कर रहा था कि कम से कम मैं स्वयं इस दोष से मुक्त हूँ।
अब मेरे अध्यापक मित्र चाहे कुछ भी कहें, कुछ भी सोचें,परन्तु सत्य यही है कि कहीं न कहीं समाज द्वारा अध्यापक समाज पर आरोपित दोष उचित ही है। Post published at www.nareshjangra.blogspot.com नक़ल की प्रवृत्ति मेहनत न करने वाले विद्यार्थियों में अवश्य होती है, यह बात निस्संदेह सत्य है,परन्तु इस प्रवृत्ति को रोकना या बढ़ावा देना केवल अध्यापक के हाथ में है। बहुत से अध्यापक इस बात पर कहेंगे कि अध्यापक नक़ल को बढ़ावा देने में संलिप्त नहीं हैं। लेकिन भाई, ये "पब्लिक" है ना ये सब जानती है।
बारहवीं वाले लीक हुए पर्चे पर ही आ जाइए। वॉटसएप पर या किसी अन्य साधन के माध्यम से पेपर परीक्षा केंद्र से बाहर जाना और वह भी परीक्षा शुरू होने से घंटों पहले। Post published at www.nareshjangra.blogspot.com हालांकि एक व्यक्ति को पुलिस ने पकड़ा है और जांच चल रही है। इस मामले में मूल रूप से दोषी कौन पाया जाएगा ये तो जांच के बाद ही पता लगेगा। परन्तु जैसा मुझे और आप सबको लगता है कि जिस तरीके से परीक्षा से डेढ़ घंटा पहले परचा लीक हुआ तो ये पेपर किसी परीक्षा केंद्र से चला है और परीक्षा केंद्र का नाम आते ही दोषारोपण वाली सुई सीधी केंद्राधीक्षक, ड्यूटी स्टाफ और विद्यालय स्टाफ की तरफ अनायास ही घूम जाती है। अब ये लोग कौन हैं? अध्यापक, अध्यापक और अध्यापक।
बारहवीं वाले लीक हुए पर्चे पर ही आ जाइए। वॉटसएप पर या किसी अन्य साधन के माध्यम से पेपर परीक्षा केंद्र से बाहर जाना और वह भी परीक्षा शुरू होने से घंटों पहले। Post published at www.nareshjangra.blogspot.com हालांकि एक व्यक्ति को पुलिस ने पकड़ा है और जांच चल रही है। इस मामले में मूल रूप से दोषी कौन पाया जाएगा ये तो जांच के बाद ही पता लगेगा। परन्तु जैसा मुझे और आप सबको लगता है कि जिस तरीके से परीक्षा से डेढ़ घंटा पहले परचा लीक हुआ तो ये पेपर किसी परीक्षा केंद्र से चला है और परीक्षा केंद्र का नाम आते ही दोषारोपण वाली सुई सीधी केंद्राधीक्षक, ड्यूटी स्टाफ और विद्यालय स्टाफ की तरफ अनायास ही घूम जाती है। अब ये लोग कौन हैं? अध्यापक, अध्यापक और अध्यापक।
चलिए छोड़िए, हो सकता है ये पेपर केंद्र अधीक्षक के पास आने से पहले किसी ने स्कैन करके रख लिया हो। लेकिन परीक्षा केन्द्रों में क्या चलता है? ये हम अध्यापक भी जानते हैं, और हमसे ज्यादा लोग जानते हैं। लेकिन सब चुप क्यों रहते हैं? क्योंकि उनके बच्चे पास हो जाते हैं और हमारा परिणाम प्रतिशत सुधर जाता है। लेकिन देश की उत्पादकता तो गई न पानी में!
अब एक और "बीमारी" की बात आ जाती है। ये बीमारी है सरकारी स्कूलों में "आधी अधूरी व्यवस्था"। दसवीं या बारहवीं कक्षा को पढ़ाने वाले अध्यापक कहते हैं कि हमारे पास जो बच्चे प्राथमिक विद्यालयों से आते हैं उन्हें कुछ नहीं आता, अगर नक़ल नहीं हुई तो वे फेल हो जाएंगे और हमारा रिकॉर्ड ख़राब हो जाएगा। प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षक कहते हैं कि हमें शिक्षण के अतिरिक्त अन्य कार्य ज्यादा करने होते हैं और ऊपर से शिक्षाधिकार अधिनियम का डंडा कि किसी बच्चे को उसी कक्षा में नहीं रखना। तो अब इस बीमारी का इलाज क्या? Post published at www.nareshjangra.blogspot.com इलाज हमारे पास ही है मित्रो, आप जानते हैं कि कक्षा आठ तक प्रत्येक बच्चे को "सतत समग्र मूल्यांकन (CCE)" करते हुए अगली कक्षा में भेजना है। तो यदि कोई बच्चा सही ढंग से विद्यालय में नहीं आ रहा है और उसके माता-पिता के असहयोग के कारण वह पढाई में कमजोर है तो आप उसे 'A' या 'B' क्यों दे रहे हैं? आप उसे उसके स्तरानुसार ग्रेड देकर नौंवीं कक्षा में भेज दें। अब नौंवीं कक्षा के बारे में "घर की क्लास" वाली धारणा को बदलने की भी जरूरत होगी। अर्थात जो बच्चा जैसा है उसी अनुसार उसे दसवीं कक्षा में भेजें या नौंवीं में रखें।
ऐसा किया तो क्या होगा? दसवीं कक्षा का नामांकन घट जाएगा, घटने दें। परन्तु ये ध्यान रखें कि आपको अगले साल किसी परीक्षा केंद्र पर जाकर ये कहने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी कि 'ये हमारे बच्चे हैं, थोड़ा ध्यान रखना'
अध्यापक साथियो, केवल थोड़ा सा स्वयं के साथ कठोर होने की आवश्यकता है। लेकिन हम लोग ईमानदारी से शिक्षण और मूल्यांकन करके इस "नक़ल के कलंक" को मिटा कर अच्छे नागरिकों की पौध तैयार कर सकते हैं।
अब एक और "बीमारी" की बात आ जाती है। ये बीमारी है सरकारी स्कूलों में "आधी अधूरी व्यवस्था"। दसवीं या बारहवीं कक्षा को पढ़ाने वाले अध्यापक कहते हैं कि हमारे पास जो बच्चे प्राथमिक विद्यालयों से आते हैं उन्हें कुछ नहीं आता, अगर नक़ल नहीं हुई तो वे फेल हो जाएंगे और हमारा रिकॉर्ड ख़राब हो जाएगा। प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षक कहते हैं कि हमें शिक्षण के अतिरिक्त अन्य कार्य ज्यादा करने होते हैं और ऊपर से शिक्षाधिकार अधिनियम का डंडा कि किसी बच्चे को उसी कक्षा में नहीं रखना। तो अब इस बीमारी का इलाज क्या? Post published at www.nareshjangra.blogspot.com इलाज हमारे पास ही है मित्रो, आप जानते हैं कि कक्षा आठ तक प्रत्येक बच्चे को "सतत समग्र मूल्यांकन (CCE)" करते हुए अगली कक्षा में भेजना है। तो यदि कोई बच्चा सही ढंग से विद्यालय में नहीं आ रहा है और उसके माता-पिता के असहयोग के कारण वह पढाई में कमजोर है तो आप उसे 'A' या 'B' क्यों दे रहे हैं? आप उसे उसके स्तरानुसार ग्रेड देकर नौंवीं कक्षा में भेज दें। अब नौंवीं कक्षा के बारे में "घर की क्लास" वाली धारणा को बदलने की भी जरूरत होगी। अर्थात जो बच्चा जैसा है उसी अनुसार उसे दसवीं कक्षा में भेजें या नौंवीं में रखें।
ऐसा किया तो क्या होगा? दसवीं कक्षा का नामांकन घट जाएगा, घटने दें। परन्तु ये ध्यान रखें कि आपको अगले साल किसी परीक्षा केंद्र पर जाकर ये कहने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी कि 'ये हमारे बच्चे हैं, थोड़ा ध्यान रखना'
अध्यापक साथियो, केवल थोड़ा सा स्वयं के साथ कठोर होने की आवश्यकता है। लेकिन हम लोग ईमानदारी से शिक्षण और मूल्यांकन करके इस "नक़ल के कलंक" को मिटा कर अच्छे नागरिकों की पौध तैयार कर सकते हैं।
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Friday, December 19, 2014
अमर शहीद राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्लाह खान की पुण्य तिथि पर विशेष
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आज
19 दिसंबर को भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अहम् भूमिका निभाने वाले माँ
भारती के वीर सपूत पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खान और शहीद
रोशन सिंह की 87वीं पुण्य तिथि पर हम उन्हें कोटि-कोटि प्रणाम और
श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और हमारे पाठकों को इन तीनों के सज्जीवन के
बारे में बताने का प्रयास करते हैं। सबसे पहले आपको बता दें कि ये तीनों
देशभक्त आज के ही दिन 1927 में भारत की आज़ादी की लड़ाई लड़ते हुए अंग्रेजों
के हाथों शहीद हुए थे। इन पर लखनऊ के निकट काकोरी स्टेशन के पास ट्रेन
लूटने का आरोप था और इसी के चलते बिस्मिल, अशफाक उल्ला, रोशन सिंह और राजेंद्रनाथ लाहिड़ी को फांसी की सजा दी गयी थी। तो आइये हम इन तीनों के जीवन पर थोडा प्रकाश
डालते हैं।Wednesday, November 19, 2014
महा वीरांगना "रानी लक्ष्मी बाई" की 186वीं जयंती पर जानिये उनके जीवन के बारे में
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आज भारत के स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखने वाली और केवल 30 वर्ष की आयु
में देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर देने वाली "महा वीरांगना" झाँसी की
रानी लक्ष्मीबाई जी की 186वीं जयंती है। आइये हम सब मिलकर उन्हें नमन
करें और जानें कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य एक वीर नारी के जीवन के बारे में:
रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवम्बर, 1828 को उत्तर प्रदेश के पवित्र नगर
काशी (वाराणसी) में हुआ। इनके पिता श्री मोरोपंत ताम्बे और माता श्रीमती
भागीरथीबाई ताम्बे थे, जो मूलतः महाराष्ट्र के थे। इनका जन्म के समय नाम रखा गया "मणिकर्णिका" जो बाद में "मनु" हो गया। चार वर्ष की आयु में माता
के देहांत के बाद इनका लालन-पालन इनके नाना जी ने किया जो
Monday, August 11, 2014
खुदीराम बोस: भारत माँ का एक बहादुर सपूत (106 वीं पुण्यतिथि पर विशेष)
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आज ग्यारह अगस्त है। हम में से बहुत कम लोग जानते हैं
कि आज भारत की आजादी की लड़ाई के उस सूरमा की पुण्यतिथि है जिसने शायद
सबसे कम उम्र में भारत माँ के लिए अपना जीवन न्योछावर कर दिया था। जी हाँ, केवल 18 साल की उम्र में जिस जांबाज ने हम लोगों की आजादी के लिए फांसी के फंदे को चूमा, उसी शहीद खुदी राम बोस की पुण्य तिथि है आज। इस बात से शायद 90% से भी अधिक भारतीय परिचित नहीं होंगे, क्योंकि आज 14 नवम्बर या 2 अक्टूबर की तरह हमारे स्कूलों, कालेजों और
Saturday, August 2, 2014
विज्ञान की नजर से: सोते वक्त क्यों न करें उत्तर या पश्चिम में सिर
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भारतीय समाज में विशेषकर बड़े बुज़ुर्गों से कुछ नसीहतें सुनने को मिलती रहती हैं, जिनके बारे में आज की युवा पीढ़ी और आधुनिक सोच वाले लोग कहते नज़र आते हैं की ये सब अन्धविश्वास हैं। लेकिन असल में ऐसा नहीं है। पिछले दिनों मैंने ब्लॉग पर एक पोस्ट डाली जिसमें "आपका घर या ऑफिस कैसा हो, ताकि आपको लाभ ही लाभ हो" विषय पर वास्तुशास्त्र के सन्दर्भ में कुछ नियम दिए गए थे। कुछ मित्रों ने टिप्पणी की कि ये मुझ जैसे व्यक्तियों के स्तर से काफी नीचे की पोस्ट थी। उनका कहने का तात्पर्य था कि मैं भी कहीं न कहीं अंधविश्वास और रूढ़िवादिता से
Wednesday, July 30, 2014
शहीद उधम सिंह: एक महान योद्धा (74वीं पुण्य तिथि पर विशेष श्रद्धांजलि)
1919
का जलियांवाला काण्ड - सुनते ही अंग्रेजी हुकूमत की सबसे अधिक अमानवीय
तस्वीर उभर कर सामने आ खड़ी होती है। 13 अप्रैल, 1919 की वह
दुर्भाग्यशाली शाम जिसे सैंकड़ों हिन्दुस्तानियों के खून से लाल होते
हुए उसने अपनी आँखों से देखा था। बीस हजार लोग जमा हुए थे अमृतसर के
जलियांवाला बाग़ में, बिलकुल शान्तिपूर्ण तरीके से सब लोग अपने नेताओं के
विचार सुनने के लिए इकट्ठे हुए थे। "रोलेट एक्ट" और डॉo सत्यपाल और
सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के विरोध-स्वरुप आयोजित इस सभा में सब कुछ
ठीक-ठाक
Wednesday, July 23, 2014
लोकमान्य तिलक: एक बहुमुखी व्यक्तित्त्व (158वीं जयंती पर विशेष)
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बाल गंगाधर तिलक भारत के एक प्रमुख नेता, समाज सुधारक और स्वतन्त्रता सेनानी थे। वे भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता थे। इन्होंने सबसे पहले ब्रिटिश राज के दौरान पूर्ण स्वराज्य की माँग उठायी। इनका नारा "स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा" बहुत प्रसिद्ध हुआ। इन्हें आदर से "लोकमान्य" कहा जाता था, जिसका अर्थ है 'पूरे संसार में सम्मानित'। इन्हें हिन्दू राष्ट्रवाद का पिता भी कहा जाता है। आइए इनके जीवन के विषय में थोड़ी सी चर्चा कर लें।
प्रारम्भिक जीवन एवं शिक्षा: तिलक का जन्म 23 जुलाई, 1956 को वर्तमान महाराष्ट्र स्थित रत्नागिरी जिले के
अमर शहीद पंडित चंद्रशेखर आज़ाद की 108वीं जयंती पर विशेष
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पण्डित चन्द्रशेखर 'आजाद' भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अत्यन्त सम्मानित और लोकप्रिय स्वतंत्रता सेनानी थे। वे पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल व सरदार भगत सिंह सरीखे महान क्रान्तिकारियों के अनन्य साथियों में से थे। आज उनकी 108वीं जयंती पर उन्हें प्रणाम, कोटि कोटि वंदन करते हुए आइए जानते हैं उनके जीवन के विषय में कुछ विशेष बातें।
प्रारम्भिक जीवन: चन्द्रशेखर आजाद का जन्म मध्य प्रदेश के भाँवरा गाँव जो वर्तमान में अलीराजपुर जिला में है, में 23 जुलाई 1906 को हुआ था। आजाद के पिता पण्डित सीताराम तिवारी अलीराजपुर रियासत में नौकरी करते थे। फिर जाकर भावरा गाँव में बस गये। यहीं बालक चन्द्रशेखर का बचपन बीता। उनकी माता का नाम जगरानी देवी था। आजाद का प्रारम्भिक जीवन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में
Wednesday, March 12, 2014
असेसमेंट टेस्ट कितने सही, कितने गलत
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हरियाणा के स्कूलों में पिछले कुछ दिनों से एक मुद्दा बड़ा चर्चा का विषय बना हुआ है। शिक्षा विभाग ने इस बार फैसला किया है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे तीसरी और पांचवीं कक्षा के बच्चों का अधिगम स्तर मापने के उद्देश्य से असेसमेंट टेस्ट लिया जाएगा। इस पर अधिकतर प्राथमिक शिक्षक विरोध जताते हुए नजर आ रहे हैं। शिक्षक संघ भी इसे विभाग का बिना सोचे समझे उठाया गया कदम बता कर इसके विपक्ष में खड़ा होSaturday, October 5, 2013
पहनावा (एक लघु कथा)
यह लघु कथा हमारे एक मित्र सुमित मान जी ने अपनी फेसबुक की वाल पर पोस्ट की हुई थी, अच्छी लगी इसलिए अपने ब्लॉग के माध्यम से आप तक पहुंचा रहे हैं। कृपया पूरी लघुकथा अवश्य पढ़ें, केवल तीन मिनट लगेंगे।
तन्वी को सब्जी मंडी जाना था। तन्वी ने जूट का बैग लिया और सड़क के किनारे-किनारे सब्जी मंडी की ओर चल दी। तभी पीछे से एक ऑटो वाले ने आवाज़ दी -''कहाँ जायेंगी माता जी?'' तन्वी ने "नहीं भैय्या'' कहा तो
Tuesday, July 23, 2013
तिलक की 157वीं जयंती पर विशेष
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प्रिय पाठको, आज हमारे स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता एवं समाज सुधारक बाल गंगाधर तिलक की 157वीं जयंती है। इस अवसर पर उन्हें शत शत नमन करते हुए आइये हम उनके जीवन पर कुछ प्रकाश डालते हैं। तिलक जी का जन्म 23 जुलाई, 1856 को वर्तमान महाराष्ट्र स्थित रत्नागिरी जिले के एक गाँव चिखली में हुआ
था। ये आधुनिक कालेज शिक्षा पाने वाली पहली भारतीय पीढ़ी में थे। इन्होंने
कुछ समय तक
Tuesday, June 18, 2013
हमारी श्रद्धांजलि - रानी लक्ष्मीबाई के चरणों में
आज महा वीरांगना झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की पुण्य तिथि पर महान लेखिका सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित इस कविता के माध्यम से हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं:
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
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