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भारतीय समाज में विशेषकर बड़े बुज़ुर्गों से कुछ नसीहतें सुनने को मिलती रहती हैं, जिनके बारे में आज की युवा पीढ़ी और आधुनिक सोच वाले लोग कहते नज़र आते हैं की ये सब अन्धविश्वास हैं। लेकिन असल में ऐसा नहीं है। पिछले दिनों मैंने ब्लॉग पर एक पोस्ट डाली जिसमें "आपका घर या ऑफिस कैसा हो, ताकि आपको लाभ ही लाभ हो" विषय पर वास्तुशास्त्र के सन्दर्भ में कुछ नियम दिए गए थे। कुछ मित्रों ने टिप्पणी की कि ये मुझ जैसे व्यक्तियों के स्तर से काफी नीचे की पोस्ट थी। उनका कहने का तात्पर्य था कि मैं भी कहीं न कहीं अंधविश्वास और रूढ़िवादिता से
ग्रस्त हूँ। लेकिन ऐसा मानने के लिए मैं तैयार नहीं हूँ। क्योंकि वास्तुशास्त्र के नियम विज्ञान की कसौटी पर बिलकुल खरे उतरते हैं। ऐसा ही एक विषय आज हम लेकर उस पर थोड़ी सी चर्चा पाठकों से करने जा रहे हैं। विषय है: हमारे सोने की दिशा क्या हो?
ग्रस्त हूँ। लेकिन ऐसा मानने के लिए मैं तैयार नहीं हूँ। क्योंकि वास्तुशास्त्र के नियम विज्ञान की कसौटी पर बिलकुल खरे उतरते हैं। ऐसा ही एक विषय आज हम लेकर उस पर थोड़ी सी चर्चा पाठकों से करने जा रहे हैं। विषय है: हमारे सोने की दिशा क्या हो?
क्या है धारणा और इसके पीछे तर्क: आपने सुना होगा कि बड़े बुज़ुर्ग उत्तर या पश्चिम की ओर सर करके न सोने की बात करते हैं। कई लोगों का इसके पीछे तर्क होता है कि उत्तर में सिर और दक्षिण की तरफ पैर श्मसान में मुर्दे के शव के किये जाते हैं, इसलिए ऐसा करने से उम्र घटती है। अथवा पूर्व की ओर पैर करने से सुबह सवेरे ही सूर्य देवता की ओर पैर हो जाते हैं जो अपशकुन है। जी हाँ, अगर आप इन तर्कों को लेकर चलते हैं तो ये निश्चित रूप से ही अन्धविश्वास है। परन्तु इसका अर्थ ये नहीं कि आप सोने की दिशा को नज़र अंदाज ही कर देंगे। वास्तव में जो नियम बुज़ुर्ग बताते हैं वे नियम तो पूरी तरह सही हैं, परन्तु उनके पीछे जो तर्क दिए जाते हैं वे सर्वथा गलत हैं।
वैज्ञानिक तर्क क्या है: दरअसल सोने की दिशा को लेकर बनाये गए नियम बिलकुल सही हैं। आइए विज्ञान की कसौटी पर परख कर देखते हैं:
तर्क-1: हम सब जानते हैं की पृथ्वी एक बहुत बड़ा चुम्बक है, जिसके दो ध्रुव (Poles) हैं: उत्तरी ध्रुव (+ve) और दक्षिणी ध्रुव (-ve)। चुम्बकत्त्व का प्रवाह हमेशा उत्तर से दक्षिण की ओर रहता है। इसी प्रकार मानव शरीर में भी चुम्बकीयता का प्रवाह सर से पैरों की ओर रहता है। इसके इलावा आप यह भी जानते होंगे कि दो समान आवेश वाले ध्रुव एक दूसरे को प्रतिकर्षित (Repel) करते हैं जबकि विपरीत आवेश वाले ध्रुव एक दूसरे को आकर्षित (Attract) करते हैं।
अब मान लीजिये आप उत्तर की तरफ सिर करके सोते हैं, तो आपका सिर भी धन आवेशित (Positive Charged) है और उत्तरी ध्रुव भी। अब दोनों में प्रतिकर्षण होगा और सीधी सी बात है कि एक शक्तिशाली चुम्बक और एक साधारण से मानव में परस्पर युद्ध होगा तो कौन जीतेगा। जी हाँ, पूरी रात चलने वाले इस प्रतिकर्षण में हमारा शरीर बिलकुल थक जाता है और हम अनिद्रा, सिरदर्द और तनाव व अवसाद के शिकार बने रहते हैं।
दूसरी ओर, अगर आप दक्षिण दिशा में सर करके सोते हैं तो विपरीत आवेश होने के कारण आपके शरीर में रक्त का प्रवाह बिलकुल सही बना रहेगा और आप अच्छी नींद ली के बाद सुबह उठेंगे तो आपको आलस्य या थकावट महसूस नहीं होगी।
दूसरी ओर, अगर आप दक्षिण दिशा में सर करके सोते हैं तो विपरीत आवेश होने के कारण आपके शरीर में रक्त का प्रवाह बिलकुल सही बना रहेगा और आप अच्छी नींद ली के बाद सुबह उठेंगे तो आपको आलस्य या थकावट महसूस नहीं होगी।
तर्क-2: इसी प्रकार दूसरा नियम ये है कि पश्चिम में सिर और पूर्व की ओर पैर करके न सोएं। इसके पीछे पृथ्वी की गति का सिद्धांत काम करता है। हम जानते हैं कि पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है और सूर्य का चुम्बकीय क्षेत्र पृथ्वी में पूर्व की ओर से प्रवेश करता है। अगर हम पूर्व की ओर सिर करके सोएं तो सूर्य की ऊर्जा हमारे सिर की ओर से शरीर में प्रवेश करके पैरों की ओर गति करेगी। विद्युत और चुम्बकीयता के नियमानुसार ऐसा होने से हमारा मस्तिष्क ठंडा और पैर गरम रहेंगे जो अच्छे स्वास्थ्य को इंगित करते हैं। इसके विपरीत पश्चिम में सिर करके सोने से ऊर्जा का प्रवाह उल्टा हो जायेगा जो हमें मानसिक और शारीरिक रूप से बीमार कर सकता है।
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लेखक: नरेश जांगड़ा
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