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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके प्रमुख मोहन भागवत इन दिनों चर्चा
में हैं। संघ की कार्यप्रणाली को लेकर अक्सर विवाद होते हैं, जबकि यह पूर्ण
रूप से हिंदू परंपराओं को बनाए रखने की विचारधारा को पोषित करने वाला
संस्थान हैं। बावजूद इसके गठन से लेकर अब तक संघ पर तमाम सवाल उठाए जाते
हैं। हिंदू राष्ट्रवाद, स्वदेशी विचारधारा वाले इस संगठन को आज विश्व के
सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन के रूप में जाना जाता है। बहुत कम लोग हैं, जो
संघ के बारे में कम जानकारी रखते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना
सन् 27 सितंबर 1925 को विजय दशमी के दिन मोहिते के बाड़े नामक स्थान पर
डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने की थी। संघ के 5 स्वयंसेवकों के साथ शुरू
हुई विश्व की पहली शाखा आज 50 हजार से अधिक शाखाओ में बदल गई और ये 5
स्वयंसेवक आज करोड़ों स्वयंसेवकों के रूप में हमारे सामने है। संघ की
विचार धारा में राष्ट्रवाद, हिंदुत्व, हिंदू राष्ट्र, राम जन्मभूमि, अखंड
भारत, समान नागरिक संहिता जैसे विजय है जो देश की समरसता की ओर ले जाता है। आज हम आपका परिचय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मूल
अवधारण, गठन, कार्यप्रणाली और ढांचे से करवाने जा रहे हैं। कैसे संघ ने
साल-दर-साल देश में जगह बनाई और लाखों स्वयंसेवकों की फौज खड़ी कर ली। संघ
पर प्रतिबंध भी लगा। 1975 में जब आपातकाल की घोषणा हुई तो तत्कालीन जनसंघ
पर भी संघ के साथ प्रतिबंध लगा दिया गया। आपातकाल हटने के बाद जनसंघ का
विलय जनता पार्टी में हुआ और केन्द्र में मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्रित्व
में मिली-जुली सरकार बनी। 1975 के बाद से धीरे-धीरे इस संगठन का राजनीतिक
महत्व बढ़ता गया और इसकी परिणति भाजपा जैसे राजनीतिक दल के रूप में हुई,
जिसे आमतौर पर संघ की राजनीतिक शाखा के रूप में देखा जाता है। संघ की
स्थापना के 75 वर्ष बाद सन् 2000 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के
नेतृत्व में एनडीए गठबंधन की सरकार केंद्र में आई। 2014 में संघ की
छत्रछाया में एक बार फिर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार केंद्र पर काबिज है।
संस्थापक: डॉ॰ केशव बलिराम हेडगेवार
स्थापना वर्ष: विजयदशमी 1925
मुख्यालय: नागपुर (महाराष्ट्र)
वर्तमान प्रमुख: मोहन भागवत, सरसंघचालक
उद्देश्य: हिन्दू राष्ट्रवाद के सहायक और हिंदू परंपराओं को कायम रखना और 'मातृभूमि के लिए नि:स्वार्थ सेवा'
तरीका: समूह चर्चा, बैठकों और अभ्यास के माध्यम से शारीरिक और मानसिक प्रशिक्षण
आधिकारिक वेबसाइट- www.rssonnet.org
मुख्यालय: नागपुर (महाराष्ट्र)
वर्तमान प्रमुख: मोहन भागवत, सरसंघचालक
उद्देश्य: हिन्दू राष्ट्रवाद के सहायक और हिंदू परंपराओं को कायम रखना और 'मातृभूमि के लिए नि:स्वार्थ सेवा'
तरीका: समूह चर्चा, बैठकों और अभ्यास के माध्यम से शारीरिक और मानसिक प्रशिक्षण
आधिकारिक वेबसाइट- www.rssonnet.org
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक
डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार- 1925 से 1940
माधव सदाशिवराव गोलवलकर-1940 से 1973
मधुकर दत्तात्रय देवरस 1973 से 1993
प्रो. राजेंद्र सिंह 1993 से 2000
कृपाहल्ली सीतारमैया सुदर्शन (केएस सुदर्शन)- 2000 से 2009
डॉ. मोहनराव मधुकरराव भागवत- 2009 से अब तक
डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार- 1925 से 1940
माधव सदाशिवराव गोलवलकर-1940 से 1973
मधुकर दत्तात्रय देवरस 1973 से 1993
प्रो. राजेंद्र सिंह 1993 से 2000
कृपाहल्ली सीतारमैया सुदर्शन (केएस सुदर्शन)- 2000 से 2009
डॉ. मोहनराव मधुकरराव भागवत- 2009 से अब तक
- संघ की अवधारणा: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अवधारणा हमेशा रही है कि 'एक देश में दो प्रधान, दो विधान, दो निशान नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगे' जब समूचे राष्ट्र और राष्ट्र के नागरिकों को एक सूत्र में बाधा गया है तो धर्म के नाम पर कानून की बात समझ से परे हो जाती है। संघ द्वारा समान नागरिक संहिता की बात आते ही संघ को सांप्रदायिक होने की संज्ञा दी जाती है। संघ ने हमेशा कई मोर्चों पर खुद को स्थापित किया है। सबसे अच्छी बात यह है कि राष्ट्रीय आपदा के समय संघ कभी यह नहीं देखता कि फंसा हुआ व्यक्ति किस धर्म का है। आपदा के समय संघ केवल और केवल राष्ट्र धर्म का पालन करता है। गुजरात में आए भूकंप और सुनामी जैसी घटनाओ के समय सबसे आगे अगर किसी ने राहत कार्य किया, तो वह संघ का स्वयंसेवक था।
- संघ परिवार की संरचनात्मक व्यवस्था: संघ में संगठनात्मक रूप से सबसे ऊपर सरसंघ चालक का स्थान होता है जो पूरे संघ का दिशा-निर्देशन करते हैं। सरसंघचालक की नियुक्ति मनोनयन द्वारा होती है। प्रत्येक सरसंघचालक अपने उत्तराधिकारी की घोषणा करता है। संघ के ज्यादातर कार्यों का निष्पादन शाखा के माध्यम से ही होता है, जिसमें सार्वजनिक स्थानों पर सुबह या शाम के समय एक घंटे के लिये स्वयंसेवकों का परस्पर मिलन होता है। वर्तमान में पूरे भारत में संघ की लगभग पचास हजार से ज्यादा शाखा लगती हैं। वस्तुत: शाखा ही तो संघ की बुनियाद है जिसके ऊपर आज यह इतना विशाल संगठन खड़ा हुआ है। शाखा की सामान्य गतिविधियों में खेल, योग, वंदना और भारत एवं विश्व के सांस्कृतिक पहलुओं पर बौद्धिक चर्चा-परिचर्चा शामिल है।
- संघ की रचनात्मक व्यवस्था इस प्रकार है: केंद्र, क्षेत्र, प्रांत, विभाग, जिला, तालुका, नगर, मंडल और शाखा।
- संघ के आनुषांगिक संगठन: संघ के विभिन्न अनुषांगिक संगठनों राष्ट्रीय सेविका समिति, विश्व हिंदू परिषद, भारतीय जनता पार्टी, बजरंग दल, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, राष्ट्रीय सिख संगत, भारतीय मज़दूर संघ, हिंदू स्वयंसेवक संघ, हिन्दू विद्यार्थी परिषद, स्वदेशी जागरण मंच, दुर्गा वाहिनी, सेवा भारती, भारतीय किसान संघ, बालगोकुलम, विद्या भारती, भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम सहित ऐसे संगठन कार्यरत है जो करीब 1 लाख से ज्यादा प्रकल्पों को चला रहे हैं।
- दीन दयाल शोध संस्थान: संघ के दीन दयाल शोध संस्थान ने गांवों को स्वावलंबी बनाने की महत्वाकांक्षी योजना बनाई है। संघ के इस संस्थान ने अपनी योजना के अंतगत करीब 80 गांवों में यह लक्ष्य हासिल कर लिया और करीब 500 गांवों तक विस्तार किए जाने हैं। दीन दयाल शोध संस्थान के इस प्रकल्प में संघ के हजारों स्वयंसेवक बिना कोई वेतन लिए मिशन मानकर अपने अभियान में लगे है।
- प्रभात शाखा: सुबह लगने वाली शाखा को 'प्रभात शाखा' कहते है।
- सायं शाखा: शाम को लगने वाली शाखा को 'सायं शाखा' कहते है।
- रात्रि शाखा: रात्रि को लगने वाली शाखा को 'रात्रि शाखा' कहते है।
- मिलन: सप्ताह में एक या दो बार लगने वाली शाखा को 'मिलन' कहते है।
- संघ-मंडली: महीने में एक या दो बार लगने वाली शाखा को 'संघ-मंडली' कहते है। पूरे भारत में अनुमानित रूप से 50,000 शाखाएं लगती हैं। विश्व के अन्य देशों में भी शाखाओं का कार्य चलता है, पर यह कार्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम से नहीं चलता। कहीं पर 'भारतीय स्वयंसेवक संघ' तो कहीं 'हिंदू स्वयंसेवक संघ' के माध्यम से चलता है। शाखा में 'कार्यवाह' का पद सबसे बड़ा होता है। उसके बाद शाखाओं का दैनिक कार्य सुचारू रूप से चलने के लिए 'मुख्य शिक्षक' का पद होता है। शाखा में बौद्धिक व शारीरिक क्रियाओं के साथ स्वयंसेवकों का पूर्ण विकास किया जाता है। जो भी सदस्य शाखा में स्वयं की इच्छा से आता है, वह 'स्वयंसेवक' कहलाता है।
- दीपावली वर्ग: ये वर्ग तीन दिनों का होता है। हर साल दीपावली के आस पास तालुका या नगर स्तर पर आयोजित किए जाते है।
- शीत शिविर या (हेमंत शिविर): ये वर्ग हर साल दिसंबर में तीन दिनों का होता है, जो जिला या विभाग स्तर पर आयोजित किया जाता है।
- निवासी वर्ग: ये वर्ग शाम से सुबह तक होता है। हर महीने होने वाले ये वर्ग शाखा, नगर या तालुका द्वारा आयोजित होता है।
- संघ शिक्षा वर्ग: प्राथमिक वर्ग, प्रथम वर्ष, द्वितीय वर्ष और तृतीय वर्ष- कुल चार प्रकार के संघ शिक्षा वर्ग होते हैं। 'प्राथमिक वर्ग' एक सप्ताह का होता है। 'प्रथम' और 'द्वितीय वर्ग' 20-20 दिन के होते हैं, जबकि 'तृतीय वर्ग' 25 दिनों का होता है। 'प्राथमिक वर्ग' का आयोजन सामान्यतः जिला करता है, 'प्रथम संघ शिक्षा वर्ग' का आयोजन सामान्यत: प्रान्त करता है, 'द्वितीय संघ शिक्षा वर्ग' का आयोजन सामान्यत: क्षेत्र करता है। परंतु 'तृतीय संघ शिक्षा वर्ग' हर साल नागपुर में ही होता है।
- बौद्धिक वर्ग: ये वर्ग हर महीने, दो महीने या तीन महीने में एक बार होता है। ये वर्ग सामान्यत: नगर या तालुका आयोजित करता है।
- शारीरिक वर्ग: ये वर्ग हर महीने, दो महीने या तीन महीने में एक बार होता है। ये वर्ग सामान्यत: नगर या तालुका आयोजित करता है।
राहत और पुनर्वास कार्य: राहत और पुनर्वास संघ कि पुरानी परंपरा रही है। संघ ने 1971 के उड़ीसा चक्रवात और 1977 के आंध्र प्रदेश चक्रवात में राहत कार्यों में महती भूमिका निभाई है। इसके अलावा गुजरात आए भूकंप औऱ दक्षिण में आई सुनामी के वक्त भी संघ ने सक्रिय भूमिका निभाई। संघ से जुड़ी सेवा भारती ने जम्मू-कश्मीर से आतंकवाद से परेशान 57 अनाथ बच्चों को गोद लिया है, जिनमे 38 मुस्लिम और 19 हिंदू है।
आलोचनाएं भी हुईं: महात्मा गांधी की मुस्लिम तुष्टीकरण नीति से क्षुब्ध होकर 1948 में नाथूराम गोडसे ने उन्हें गोली मार दी थी, जिसके बाद संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया। गोडसे संघ और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक भूतपूर्व स्वयंसेवक थे। बाद में एक जांच समिति की रिपोर्ट आ जाने के बाद संघ को इस आरोप से बरी किया गया और प्रतिबंध समाप्त कर दिया गया। संघ के आलोचकों द्वारा संघ को एक अतिवादी दक्षिणपंथी संगठन बताया जाता रहा है एवं हिंदूवादी और फासीवादी संगठन के तौर पर संघ की आलोचना भी की जाती रही है। जबकि संघ के स्वयंसेवकों का यह कहना है कि सरकार एवं देश की अधिकांश पार्टियां अल्पसंख्यक तुष्टीकरण में लिप्त रहती हैं। विवादास्पद शाहबानो प्रकरण एवं हज-यात्रा में दी जाने वाली सब्सिडी इत्यादि की सरकारी नीति इसके प्रमाण हैं। संघ का यह मानना है कि ऐतिहासिक रूप से हिंदू स्वदेश में हमेशा से ही उपेक्षित और उत्पीड़ित रहे हैं और वह सिर्फ हिंदुओं के जायज अधिकारों की ही बात करता है जबकि उसके विपरीत उसके आलोचकों का यह आरोप है कि ऐसे विचारों के प्रचार से भारत की धर्मनिरपेक्ष बुनियाद कमजोर होती है। संघ की इस बारे में मान्यता है कि हिंदुत्व एक जीवन पद्धति का नाम है। हर वह व्यक्ति, जो भारत को अपनी जन्म-भूमि मानता है, मातृ-भूमि व पितृ-भूमि मानता है (यानी जहां उसके पूर्वज रहते आए हैं) तथा उसे पुण्य भूमि भी मानता है, वह हिंदू है। सबसे विवादास्पद और चर्चित मामला अयोध्या विवाद रहा है जिसमें बाबर द्वारा सोलहवीं सदी में निर्मित एक बाबरी मस्जिद के स्थान पर राम मंदिर का निर्माण होना है।
नेहरू ने दिया था संघ को आमंत्रण: संघ की उपस्थिति भारतीय समाज के हर क्षेत्र में महसूस की जा सकती है जिसकी शुरुआत सन् 1925 से होती है। उदाहरण के तौर पर सन् 1962 के भारत-चीन युद्ध में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू संघ की भूमिका से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने संघ को सन 1963 के गणतंत्र दिवस की परेड में सम्मिलित होने का निमंत्रण दिया था। सिर्फ दो दिनों की पूर्व सूचना पर तीन हजार से भी ज्यादा स्वयंसेवक पूर्ण गणवेश में वहां उपस्थित हो गए। वर्तमान समय में संघ के दर्शन का पालन करने वाले कुछ नाम देश के सर्वोच्च पदों तक पहुंचने में भी सफल रहे हैं। ऐसे प्रमुख व्यक्तियों में मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम है, जो बतौर प्रचारक संघ से जुड़े रहे हैं। उनसे पहले उपराष्ट्रपति पद पर भैरोसिंह शेखावत, प्रधानमंत्री पद पर अटल बिहारी वाजपेयी एवं उपप्रधानमंत्री व गृहमंत्री के पद पर लालकृष्ण आडवाणी के नाम शामिल हैं।
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साभार: भास्कर समाचार
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