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वाराणसी काशी के युवक ने एक ऐसी ऑनलाइन तकनीक ईजाद की है,
जिसका इस्तेमाल कर हमारे जवान दुश्मनों के सामने आए बिना ही उन्हें
ढेर कर सकते हैं। यह सब फेसबुक
और जीमेल जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स की मदद से संभव हो सकेगा। चौंकिए
मत, यह सच है। जिस साइट का इस्तेमाल हम सभी चैटिंग और अपनी नेटवर्किंग
बढ़ाने के लिए करते हैं, अब उससे देश की सुरक्षा भी की जा सकती है। वाराणसी में रहने वाले हाई स्कूल फेल श्याम चौरसिया ने गाड़ियों के
कबाड़ से इस तकनीक को विकसित किया है। अब फेसबुक, जीमेल और अन्य सोशल साइट के जरिए बंदूक चलाई जा सकती है। यहीं नहीं, इंटरनेट काम नहीं करने की स्थिति में भी इससे गन ऑपरेट किया जा सकेगा। उसके इस रिसर्च को अंतरराष्ट्रीय मीडिया सहित फ्रांस, रूस और अमेरिका में खूब सराहा जा रहा है।
कैसे काम करेगा सोशल नेटवर्किंग साइट गन: यह मॉडल बनाने वाले श्याम चौरसिया ने बताया कि सोशल नेटवर्किंग साइट के किसी भी सिस्टम से यह गन ऑपरेट किया जा सकता है। इसके लिए दो डेस्कटॉप या लैपटॉप की आवश्यकता होती है। सिस्टम में गन के ऊपर लगे वेब कैम के जरिए जवान दुश्मनों पर नजर रख सकेंगे। जो जवान इसे ऑपरेट करेगा, उसके पास फायरिंग के लिए गुप्त कोड होगा, जिसकी पहचान फिंगर प्रिंट से होगी। फिंगर प्रिंट मैच नहीं करने की स्थिति में गन ऑपरेट नहीं होगा। जिस जवान का फिंगर प्रिंट कोड के साथ सेट होगा, गन वही ऑपरेट कर सकेगा।
देश के जवानों की सुरक्षा हो सकती है: श्याम ने बताया कि मॉडल से जुड़े मास्टर लैपटॉप पर आए सोशल साइट मैसेज, दूसरे लैपटॉप पर ऑटोमैटिक पहुंच जाते हैं। दुश्मन सामने होने का आभास होने पर जवान फायर कर सकता है। इस तकनीक को ईजाद करने के पीछे श्याम का मकसद देश की रक्षा करने वाले जवानों की सुरक्षा है। हमला होने की स्थिति में उन्हें आमने-सामने की लड़ाई नहीं लड़नी होगी। किसी सुरक्षित जगह पर रहकर वे दुश्मनों पर फायरिंग कर सकते हैं।
जानिए कबाड़ के किस पार्ट्स को जोड़कर तैयार हुआ है गन और क्या है इसकी कीमत:
- मोटरसाइकिल के चार शॉकर (कीमत 400/- रूपए): गन की जर्किंग को रोकेगा।
- चार बाइक क्लच प्लेट कटोरा (400/- रुपए): गन के बैरल को चलाने के लिए इस्तेमाल किया गया है।
- बैरल के लिए चार आधा इंच का पाइप (200 रुपए): फायरिंग के लिए पाइप का इस्तेमाल
- डीवीडी से लिया गया एक गेयर पुली (15 रुपए): ये ट्रिगर का काम करता है।
- चार डीसी मोटर कूलर (300 रुपए): बैरल को रोटेट करने का काम करता है, मूविंग कराता है।
- एम्पलीफायर सर्किट (650 रुपए): करेंट को हाई करने के लिए इसका इस्तेमाल किया गया है। गन को दिए मैसेज को ट्रिगर तक पहुंचाता है।
- छह लोहे का स्क्वायर पाइप (400 रुपए): पूरा डिजाइन इसी पर किया गया है।
- एक दरवाजे का डोर स्टॉपर (40 रुपए): बैरल को ऊपर-नीचे करने के काम में आता है।
- एक वेबकैम (300 रुपए): देखने के लिए।
- पंद्रह डीवीडी सॉकेट पिन (250 रुपए): कनेक्शन को एक दूसरे से जोड़ने के लिए।
- एक ह्यूमन बॉडी सेंसर (300 रुपए): नेट नहीं होने की सूचना पर सामने आने वाले व्यक्ति की सूचना देता है।
- एक हूटर (200 रुपए) और एक मोबाइल फोन सिम सहित
- एक फिंगर प्रिंट मशीन: कीमत एक लाख रुपए तक
- दो लैपटॉप या कम्प्यूटर
नेटवर्क नहीं मिलने पर ऐसे करेगा काम: श्याम ने बताया कि इसमें ह्यूमन बॉडी सेंसर भी लगाया गया है। इसका
फायदा नेटवर्क के काम नहीं करने की स्थिति में मिलेगा। गन के सामने जैसे ही
कोई आएगा, उसमें लगा ऑनलाइन सिस्टम ऑपरेट कर रहे जवान के पास लगा हूटर
बजने लगेगा। पूरा सिस्टम वायरलेस है। इस तकनीक में कंप्यूटर या लैपटॉप से
दर्जनों बंदूकों को जोड़ा जा सकता है और कहीं दूर बैठकर लैपटॉप से उन्हें
चलाया जा सकता है। जब जिस बंदूक की जरूरत हो उसे फेसबुक या दूसरे सोशल साइट से चुनकर फिर फायर किया जा सकता है।
ह्यूमन बॉडी सेंसर से करेगा काम: अब एक समस्या और भी है, दूरदराज के इलाकों में अकसर इंटरनेट काम नहीं करता। ऐसी स्थिति में क्या होगा? बंदूक के इस मॉडल के पास से कोई आता है तो सेंसर रीड करके फायर कर सकता है। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए इसमें एक ह्यूमन बॉडी सेंसर भी लगाया गया है। यह किसी भी सोशल नेटवर्क साइट और मोबाइल पर संदेश देकर भी चलाया जा सकता है।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट: BHU स्थित मालवीया सेंटर फॉर INNOVATION INCUMBATION एंड ENTERPRENURSHIP IIT BHU और टेप OUTREACH CENTER INNOVATION CLUSTER. के हेड प्रदीप श्रीवास्तव का कहना है कि श्याम के इस 'गन टेक्नोलॉजी' के बारे में DRDO (Defence Research and Development Organisation) को भेजेंगे। उन्होंने बताया कि गन का मिसयूज भी हो सकता है। इसलिए इसके हर पहलू पर एक्सपर्ट्स की राय लेनी होगी। जवानों के कुछ खास जगहों के लिए इसका इस्तेमाल महत्वपूर्ण है। इंटरनेट के साथ ये गन नेटवर्क नहीं होने की स्थिति में ह्यूमन बॉडी सेंसर और मोबाइल से भी ऑपरेट होंगे। पूरा सिस्टम ऑटोमेटिक और मैनुअली दोनों प्रकार से बनाया गया है। यह इस तकनीक का मजबूत पहलु है।
ह्यूमन बॉडी सेंसर से करेगा काम: अब एक समस्या और भी है, दूरदराज के इलाकों में अकसर इंटरनेट काम नहीं करता। ऐसी स्थिति में क्या होगा? बंदूक के इस मॉडल के पास से कोई आता है तो सेंसर रीड करके फायर कर सकता है। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए इसमें एक ह्यूमन बॉडी सेंसर भी लगाया गया है। यह किसी भी सोशल नेटवर्क साइट और मोबाइल पर संदेश देकर भी चलाया जा सकता है।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट: BHU स्थित मालवीया सेंटर फॉर INNOVATION INCUMBATION एंड ENTERPRENURSHIP IIT BHU और टेप OUTREACH CENTER INNOVATION CLUSTER. के हेड प्रदीप श्रीवास्तव का कहना है कि श्याम के इस 'गन टेक्नोलॉजी' के बारे में DRDO (Defence Research and Development Organisation) को भेजेंगे। उन्होंने बताया कि गन का मिसयूज भी हो सकता है। इसलिए इसके हर पहलू पर एक्सपर्ट्स की राय लेनी होगी। जवानों के कुछ खास जगहों के लिए इसका इस्तेमाल महत्वपूर्ण है। इंटरनेट के साथ ये गन नेटवर्क नहीं होने की स्थिति में ह्यूमन बॉडी सेंसर और मोबाइल से भी ऑपरेट होंगे। पूरा सिस्टम ऑटोमेटिक और मैनुअली दोनों प्रकार से बनाया गया है। यह इस तकनीक का मजबूत पहलु है।
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साभार: भास्कर समाचार
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