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दुनियाभर में लोग छींकते एक जैसे हैं लेकिन आवाजें अलग-अलग निकालते हैं और इसे कहते हैं "स्नीज आनोमैटोपाइया" जिसका सरल सा मतलब है, "छींकने में हुई कुदरती आवाज" जो देश, स्थान और व्यक्ति पर निर्भर कर सकती है। असल में 160 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से आई छींक और कुछ नहीं, नाक में घुसे अवांछित सूक्ष्म कणों को बाहर फेंकने के लिए की गई प्रतिक्रिया है जिस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता। भारत में लोग छींकते हैं तो आवाज निकलती है "आच्छी" जबकि अमरीका में कोई छींके तो आवाज आती है "आच्छू"। आइए देखें छींक के बारे में कुछ रोचक पहलू:
एक बार छींकने में होता है ऎसा: एक बार छींकने में करीब 40 हजार से ज्यादा सूक्ष्म बूंदें या ड्रॉपलेट्स हवा में 160 किलोमीटर से ज्यादा की गति के साथ घुल जाती है। कुछ स्टडीज से पता चला है कि छींकने की गति 960 किलोमीटर प्रति घंटा तक हो सकती है। अमूमन सामान्य और रोगमुक्त अवस्था में दिन में तकरीबन 7 बार छींक आती है। लेकिन श्वसन तंत्र के संक्रमण में यह बढ़कर 100 बार से ज्यादा हो सकती है और सावधानी न बरतने पर आसपास के लोगों को भी बीमार कर सकती है।
छींक का दायरा: यदि कोई व्यक्ति हवा से फैलने वाले संक्रामक रोग से पीडित है और वह बिना कोई एहतियात बरते छींकता है तो आसपास 50 मीटर में सम्पर्क में आने वाले लोगों को प्रभावित कर सकता है। यात्रियों और लोगों से भरी जगहों पर की गई रिसर्च में पता चला है कि छींकने की 161 किमी. प्रति घंटा की तेज गति के कारण 5 सैकंड से भी कम समय में रोगाणु छींकने वाले व्यक्ति से प्रसारित होकर 150 लोगों को प्रभावित या बीमार कर सकते हैं।
बीमारी का हो सकता है संकेत: अगर आपको धूल, धुएं और ठंड के मौसम में लगातार छींके आती हैं तो ये एलर्जिक राइनाइटिस का संकेत हो सकता है। यह समस्या सुबह के समय ज्यादा होती है। इस समस्या से पीडित लोगों को अपने लाइफस्टाइल में बदलाव कर लेना चाहिए। वे घर में सूखी सफाई करने के बजाय गीला पोछा लगाएं, दीवारों पर फंगस ना जमने दें, सॉफ्ट टॉयज से दूर रहें क्योंकि इनमें डस्टमाइट्स ज्यादा इकटे होते हैं। अपने चादर व तकिए आदि को भी साफ-सुथरा रखें।
क्या आप जानते हैं: जानवरों में सबसे ज्यादा छींकने वाली प्राणी इगुआना छिपकली है। वैज्ञानिक कहते हैं कि डायनोसोर की वंशज यह विशालकाय छिपकली छींक-छींक कर अपने शरीर से कुछ विशेष लवण बाहर फेंकती है जो भोजन के पाचन के बाद बॉय प्रॉडक्ट के रूप में बनते हैं। इंसानी नाक की क्षमता इतनी है कि वह प्रतिदिन तकरीबन दो गिलास म्यूकस या लिसलिसा पदार्थ पैदा कर सकती है। महान वैज्ञानिक थॉमस एडिसन ने छींक पर रिसर्च करने के लिए अपने प्रारंभिक मूवी कैमरे का प्रयोग कर फिल्म बनाई थी। "छींक का केंद्र या स्नीज सेंटर" दिमाग के निचले हिस्से ब्रेनस्टेम में होता है। इसमें चोट लगने या गड़बड़ होने से छींकने की क्षमता खत्म हो सकती है।
एक बार छींकने में होता है ऎसा: एक बार छींकने में करीब 40 हजार से ज्यादा सूक्ष्म बूंदें या ड्रॉपलेट्स हवा में 160 किलोमीटर से ज्यादा की गति के साथ घुल जाती है। कुछ स्टडीज से पता चला है कि छींकने की गति 960 किलोमीटर प्रति घंटा तक हो सकती है। अमूमन सामान्य और रोगमुक्त अवस्था में दिन में तकरीबन 7 बार छींक आती है। लेकिन श्वसन तंत्र के संक्रमण में यह बढ़कर 100 बार से ज्यादा हो सकती है और सावधानी न बरतने पर आसपास के लोगों को भी बीमार कर सकती है।
छींक का दायरा: यदि कोई व्यक्ति हवा से फैलने वाले संक्रामक रोग से पीडित है और वह बिना कोई एहतियात बरते छींकता है तो आसपास 50 मीटर में सम्पर्क में आने वाले लोगों को प्रभावित कर सकता है। यात्रियों और लोगों से भरी जगहों पर की गई रिसर्च में पता चला है कि छींकने की 161 किमी. प्रति घंटा की तेज गति के कारण 5 सैकंड से भी कम समय में रोगाणु छींकने वाले व्यक्ति से प्रसारित होकर 150 लोगों को प्रभावित या बीमार कर सकते हैं।
बीमारी का हो सकता है संकेत: अगर आपको धूल, धुएं और ठंड के मौसम में लगातार छींके आती हैं तो ये एलर्जिक राइनाइटिस का संकेत हो सकता है। यह समस्या सुबह के समय ज्यादा होती है। इस समस्या से पीडित लोगों को अपने लाइफस्टाइल में बदलाव कर लेना चाहिए। वे घर में सूखी सफाई करने के बजाय गीला पोछा लगाएं, दीवारों पर फंगस ना जमने दें, सॉफ्ट टॉयज से दूर रहें क्योंकि इनमें डस्टमाइट्स ज्यादा इकटे होते हैं। अपने चादर व तकिए आदि को भी साफ-सुथरा रखें।
क्या आप जानते हैं: जानवरों में सबसे ज्यादा छींकने वाली प्राणी इगुआना छिपकली है। वैज्ञानिक कहते हैं कि डायनोसोर की वंशज यह विशालकाय छिपकली छींक-छींक कर अपने शरीर से कुछ विशेष लवण बाहर फेंकती है जो भोजन के पाचन के बाद बॉय प्रॉडक्ट के रूप में बनते हैं। इंसानी नाक की क्षमता इतनी है कि वह प्रतिदिन तकरीबन दो गिलास म्यूकस या लिसलिसा पदार्थ पैदा कर सकती है। महान वैज्ञानिक थॉमस एडिसन ने छींक पर रिसर्च करने के लिए अपने प्रारंभिक मूवी कैमरे का प्रयोग कर फिल्म बनाई थी। "छींक का केंद्र या स्नीज सेंटर" दिमाग के निचले हिस्से ब्रेनस्टेम में होता है। इसमें चोट लगने या गड़बड़ होने से छींकने की क्षमता खत्म हो सकती है।
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साभार: राजस्थान पत्रिका
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