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आज ग्यारह अगस्त है। हम में से बहुत कम लोग जानते हैं
कि आज भारत की आजादी की लड़ाई के उस सूरमा की पुण्यतिथि है जिसने शायद
सबसे कम उम्र में भारत माँ के लिए अपना जीवन न्योछावर कर दिया था। जी हाँ, केवल 18 साल की उम्र में जिस जांबाज ने हम लोगों की आजादी के लिए फांसी के फंदे को चूमा, उसी शहीद खुदी राम बोस की पुण्य तिथि है आज। इस बात से शायद 90% से भी अधिक भारतीय परिचित नहीं होंगे, क्योंकि आज 14 नवम्बर या 2 अक्टूबर की तरह हमारे स्कूलों, कालेजों और
दफ्तरों में छुट्टी नहीं है। खैर छोड़िये, आज के दिन भारत की पवित्र भूमि पर जन्म लेने वाले इस वीर के जीवन के बारे में कुछ बातें जानते हैं, आप और हम:
दफ्तरों में छुट्टी नहीं है। खैर छोड़िये, आज के दिन भारत की पवित्र भूमि पर जन्म लेने वाले इस वीर के जीवन के बारे में कुछ बातें जानते हैं, आप और हम:
खुदी राम बोस का जन्म बंगाल में मिदनापुर के हबीबपुर गाँव में 3 दिसम्बर 1889 को हुआ। इनके पिता श्री त्रैलोक्यनाथ बोस नादाजोल रियासत के रेवेन्यू एजेंट थे। माता लक्ष्मीप्रिया देवी ने खुदी राम से पहले तीन बेटियों और दो बेटों को जन्म दिया था, परन्तु दोनों बेटों की शैशव-अवस्था में ही मृत्यु
हो गयी थी। इसलिए अन्धविश्वास के चलते इनकी माता ने इन्हें अपनी बड़ी बेटी
अपरूपा को 'तीन मुट्ठी खुद' (खुद का स्थानीय भाषा में अर्थ है-अनाज) के
बदले बेच दिया, और इसीलिए इनका नाम 'खुदीराम' रख दिया गया।
खुदीराम बोस बचपन से ही बड़े क्रांतिकारी और उग्र विचारों के थे। 12-13 वर्ष
की आयु में ही भारत के स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए थे। अपने
शिक्षक सत्येन्द्र नाथ बोस और 'भागवत गीता' से प्रेरित खुदीराम ने ठान लिया
था कि भारत माता के लिए अपने प्राणों से कम कोई बलिदान नहीं देना है।
इन्होंने 15 साल की उम्र में पुलिस थानों के पास बम लगाना और सरकारी
अधिकारियों को निशाना बनाने जैसे हैरतंगेज कारनामे करने शुरू कर दिए थे। 30
अप्रैल 1908 को अरबिंदो घोष के छोटे भाई बिरेन्द्र घोष के नेतृत्त्व में
इन्होंने अपने एक साथी प्रफुल्ल चाकी के साथ मिल कर अंग्रेज मजिस्ट्रेट
किंग्स्फोर्ड को निशाना बनाया। पूरी योजना के साथ इन्होंने मुज्ज़फ्फरपुर
(बिहार) में किंग्स्फोर्ड की गाड़ी पर बम फेंका और हमला सफल रहा। बम फेंकते
ही दोनों भाग गए, परन्तु वास्तव में उस गाड़ी में किंग्स्फोर्ड नहीं बल्कि
किसी अंग्रेज वकील केनेडी की पत्नी और बेटी सवार थीं। उसके बाद खुदीराम और
प्रफुल्ल पर ब्रिटिश पुलिस ने 1000 रुपये का इनाम रखा और अगले ही दिन
ओयायिनी रेलवे स्टेशन पर चाय पीते खुदीराम को दो सिपाहियों ने पकड़ लिया।
उधर प्रफुल्ल को जब पुलिस ने घेर लिया तो उसने यह सोच कर आत्महत्या कर ली
कि अंग्रेजों के हाथों नहीं मरना। खुदीराम को फांसी की सजा सुना दी गई। 11
अगस्त, 1908 को सुबह 6 बजे खुदीराम को फांसी दी जानी थी। अमृत बाजार
पत्रिका समाचार पत्र में 12 अगस्त को छपी खबर "Khudiram's End: Died
cheerful and smiling" में लिखा गया कि "खुदीराम 11 अगस्त की सुबह बहुत खुश
था। फांसी के तख्ते पर चढ़ते हुए और जब उसे काली टोपी पहनाई गई तब भी वह
मुस्कुरा रहा था।" भारत माँ के इस वीर सपूत ने 11 अगस्त, 1908 की सुबह 6.00
बजे अपने प्राण माँ भारती को समर्पित कर दिए।
आइये हम सब मिल कर आज उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करें, और उन सभी क्रांतिकारियों को भी, जिन्होंने हम लोगों को आजाद देखने के लिए खुद के प्राणों का बलिदान हँसते-2 दे दिया।
आइये हम सब मिल कर आज उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करें, और उन सभी क्रांतिकारियों को भी, जिन्होंने हम लोगों को आजाद देखने के लिए खुद के प्राणों का बलिदान हँसते-2 दे दिया।
वन्दे मातरम