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आज ज्यादातर लोग ऐसे हैं जो स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रख पाते हैं और
समय से पहले ही बुढ़ापे के रोगों की गिरफ्त में आ जाते हैं। बुढ़ापे के रोग
यानी जल्दी बाल सफेद होना, शरीर कमजोर हो जाना, जल्दी थकान हो जाना, चेहरा
निस्तेज हो जाना, पाचन तंत्र बिगड़ जाना, आंखें कमजोर हो जाना आदि।
सामान्यत: ये सभी रोग बुढ़ापे की अवस्था में होते हैं, लेकिन अब ऐसा नहीं
है। जवानी के दिनों में ही काफी युवा इन रोगों से पीड़ित हो रहे हैं। इनसे बचने के लिए स्वास्थ्य संबंधी सावधानी बरतनी चाहिए। यदि कोई
व्यक्ति भोजन करने के बाद तुरंत नहा लेता है तो इससे कफ बढ़ता है। भोजन के
तुरंत बाद पैदल चलना, दौड़ना, आग तापना आदि से वात रोग बढ़ते हैं। इन रोगों
से शरीर कमजोर होता है और वृद्धावस्था जल्दी आती है। ब्रह्मवैवर्त पुराण
के अनुसार, यहां बताया जा रहा है कि इन रोगों से कैसे बचा जाना चाहिए, ताकि
असमय वृद्धावस्था का सामना न करना पड़े:
64 प्रकार के होते हैं रोग, जिनसे आता है बुढ़ापा और अस्वस्थ होता है शरीर: वात, पित्त और कफ ये रोगों के तीन प्रकार हैं। इनके अतिरिक्त एक और
ज्वर भी बताया गया है, वह है त्रिदोषज। ये रोगों के मुख्य भेद (प्रकार)
हैं। इनके प्रभेद इस प्रकार है- कुष्ठ, घेंघा, खांसी, फोड़ा, मूत्र संबंधी
रोग, रक्त विकार, कब्ज, गोद, हैजा, अतिसार, ज्वर आदि। इन सभी भेदों और
प्रभेदों को मिलाकर कुल 64 प्रकार के रोग बताए गए हैं।
- कफ बढ़ाने वाले सामान्य काम: यदि कोई व्यक्ति भोजन के बाद तुरंत नहा लेता है तो इससे कफ बढ़ता है। बिना प्यास के जल पीना, बासी भोजन करना, शरीर पर तिल के तेल से मालिश करना, बहुत अधिक पके हुए केले खाना, रात को सोने से पहले दही का सेवन करना, वर्षा के जल में भीगना, अत्यधिक मूली खाना आदि से कफ की वृद्धि होती है। कफ के कारण पौरुष शक्ति कम होती है और व्यक्ति जल्दी बुढ़ा होता है। अत: इन सभी कामों से बचना चाहिए।
- पित्त बढ़ाने वाले काम: यदि कोई व्यक्ति अधिक समय तक भूखा रहता है, समय पर संतुलित भोजन नहीं करता है, दूषित खाना खाता है, तो पित्त का प्रकोप हो सकता है। अत: खान-पान के समय को लेकर सावधानी रखनी चाहिए।
- वात बढ़ाने वाले काम: भोजन के तुरंत बाद पैदल चलना, दौड़ना, आग तापना, लगातार दुखी रहना, सदैव चिंता करना, बहुत अधिक रूखा भोजन करना, अधिक उपवास करना, अत्यधिक डर-डरकर जीवन व्यतीत करना आदि से वात यानी वायु रोगों की उत्पत्ति होती है। तीन प्रकार के वात रोग बताए गए हैं। पहला है शारीरिक क्लेश से उत्पन्न होने वाला वात रोग। दूसरा है मानसिक संताप से उत्पन्न होने वाला वात रोग। तीसरा है कामजनित वात रोग।
सामान्य काम जो वृद्धावस्था को दूर रखते हैं:
- भोजन के तुरंत बाद कुछ देर वज्रासन में बैठना चाहिए। ऐसा करने पर वात रोग नहीं होते हैं।
- वृद्धावस्था से बचने के लिए नेत्रों को साफ जल से धोते रहना चाहिए।
- प्रतिदिन कुछ समय व्यायाम करें।
- समय-समय पर पैरों के तलवों पर तेल मालिश करना चाहिए।
- समय-समय पर दोनों कानों में तेल डालना चाहिए।
- बालों की तेल से मालिश करना चाहिए।
- भोजन भूख लगने पर ही ग्रहण करना चाहिए।
- भोजन के बाद पान का सेवन फायदेमंद होता है।
- नियम-संयम से जीवन व्यतीत करना चाहिए।
- ताजा मक्खन और मिश्री का सेवन करते रहना चाहिए।
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साभार: भास्कर समाचार
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