Friday, August 1, 2014

कहीं आपका बच्चा बुलीइंग का शिकार तो नहीं?



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स्कूलों में बुलीइंग के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। ये बच्चों के लिए बड़ा खतरा है, इसलिए कहीं आपका बच्चा भी इसका शिकार तो नहीं, ये चेक करना आपकी जिम्मेदारी है।
क्या है बुलीइंग: हिंदी में इसका मतलब है किसी कमजोर व्यक्ति पर धौंस जमाना। बुलीइंग यानी किसी ऐसे व्यक्ति को डराना, मारना, धमकाना या किसी भी प्रकार का नुकसान पहुंचाना, जो खुद का डिफेंस करने में सक्षम न हो। बच्चों के मामले में इसे चाइल्ड बुलीइंग कहते हैं और ऐसे मामले अगर स्कूलों में हों तो स्कूल बुलीइंग कहा जाता है। आमतौर पर बच्चे अक्सर बुलीइंग का शिकार अपने स्कूलों में ही होते हैं। यह एक ऐसा वर्बल, फिजीकल, सोशल
और साइकोलॉजिकल एग्रेसिव बिहेवियर होता है, जिसे कमजोर व्यक्ति या बच्चे के साथ बार-बार दोहराया जाता है।  
कितने तरह की होती है बुलीइंग:
  • फिजीकल: इस तरह की बुलीइंग में बच्चों से मारपीट करना, उनकी प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया जाता है। फिजीकल बुलीइंग बच्चों के लिए बेहद खतरनाक होती है। 
  • साइकोलॉजिकल और सोशल: इस तरह की बुलीइंग में बच्चे के बारे में अफवाह उड़ाई जाती है, उसे नीचा दिखाया जाता है और उसे अपने ग्रुप से अलग कर दिया जाता है। 
  • वर्बल और रिटेन: इसमें बच्चों को उनके नाम को बिगाड़कर बुलाना, उन पर चुटकुले करना, टॉन्ट करना या फिर उन्हें किसी तस्वीर या पोस्टर आदि दिखाकर खिंचाई करना शामिल होता है।
  • इलेक्ट्रॉनिक: साइबर बुलीइंग में बच्चे को परेशान करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें उसे फोन कर धमकाने से लेकर ई-मेल और सोशल नेटवर्किंग साइट्स का गलत इस्तेमाल करना तक शामिल है। 
बुलीइंग का शिकार बच्चों को होती हैं ये परेशानियां:
  • बुलीइंग के शिकार बच्चे डिप्रेशन में जा सकते हैं। वे चिड़चिड़े हो जाते हैं और स्लीपिंग डिसऑर्डर का शिकार भी हो सकते हैं।
  • ऐसे बच्चे स्कूल जाने में घबराते हैं और इसका असर उनकी पढ़ाई पर पड़ता है। इनकी ग्रेड्स खराब आती है, क्योंकि ये डरे रहते हैं।
  • जो बच्चे बुलीइंग का शिकार होते रहते हैं, उन्हें नशे की आदत का भी खतरा हो जाता है। वे अल्कोहल या अन्य ड्रग्स का सेवन करते हैं।
  • ऐसे बच्चे लंबे समय तक बर्दाश्त करते हैं, लेकिन वे हिंसा पर भी उतर सकते हैं। आत्महत्या जैसे कदम भी कई बच्चे उठा लेते हैं।
जीवन भर रहता है असर: किंग्स कॉलेज लंदन ने अपनी एक स्टडी में कहा कि जो बच्चे बचपन में बार-बार बुलीइंग का शिकार होते हैं, वे जीवन भर कहीं न कहीं तनाव और घुटन महसूस करते हैं। स्टडी में कहा गया कि ऐसे पीडि़त लोवर क्वालिटी ऑफ लाइफ बिताते हैं। इसी तरह वारविक यूनिवर्सिटी ने भी अपने शोध में कहा कि बुलीइंग के शिकार बच्चों की नौकरी, स्वास्थ्य और रिलेशनशिप पर भी नकारात्मक असर पड़ता है।  
क्या हैं वार्निंग साइन: यदि यह आशंका है कि आपका बच्चा कहीं अपने स्कूल में बुलीइंग का शिकार तो नहीं हो रहा है तो इन छोटी-छोटी बातों पर जरूर ध्यान दें:
  • कहीं उसके कपड़े फटे तो नहीं या फिर कोई पर्सनल चीज उसकी किसी ने छीन तो नहीं ली।
  • अचानक उसकी दोस्ती खत्म हो गई हो या फिर वह सोशल सिचुएशन को अवॉयड कर रहा हो।
  • परीक्षाओं में उसके नंबर खराब आ रहे हों या फिर बच्चा स्कूल जाने से कतराता हो और बहाना करता हो।
  • उसको सोने में परेशानी हो रही हो या फिर उसके सिर या पेट में दर्द रहता हो और कोई फिजीकल कम्प्लेन हो।
  • उसकी खाने की आदत अचानक बदल गई हो। फोन या इंटरनेट के इस्तेमाल के बाद तनाव में आ जाता हो।
  • उसके आत्म- सम्मान में कमी आ गई हो और वह दिन भर बुझा-बुझा सा रहता हो। घर के लोगों से भी ठीक से बात न करता हो।
  • उसका बिहेवियर अचानक से सेल्फ डिस्ट्रक्टिव हो गया हो। वह घर से दूर जाना चाहता हो।  
यदि आपका बच्चा बुलीइंग का शिकार है तो ये करें:
  • किस समय, किसके द्वारा और क्यों बच्चा बुलीइंग का शिकार हुआ है, जैसी डिटेल नोट कर रिकॉर्ड बनाएं। बच्चे से खुलकर और समझदारी से सभी बातें पूछें।
  • इसके बाद स्कूल के प्रिंसीपल या टीचर्स से बातें करें। कोई आपराधिक मामला हो तो पुलिस से बात करने में बिलकुल न हिचकें।
  • बुलीइंग का कोई छोटा मामला हो, तब भी नजरअंदाज न करें। समय-समय पर चेक करें कि यह दोबारा न हो।
  • स्कूल से बुलीइंग पॉलिसी पर चर्चा करें। इन सब के बीच यह ध्यान रहे कि गलती से किसी दूसरे बच्चे पर जबर्दस्ती ब्लेम न करें। 


साभार: भास्कर समाचार
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