Saturday, January 16, 2016

गुरु गोबिंद सिंह जयंती पर विशेष: जानिए सिख धर्म के दस गुरुओं के बारे में

आज सिख धर्म के दशमेश गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती मनाई जा रही है। इसी पावन अवसर पर आइए जानते हैं कि उनसे पहले और उनके बाद कौन कौन गुरु हुए। सिख धर्म की स्थापना लगभग 500 साल पहले श्री गुरु नानक देव जी ने की थी। यह पोस्ट
आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। उनके निर्वाण के बाद सिख धर्म की बागडोर किन किन गुरुओं के पास रही। 
  1. गुरु नानक देव जी ने सिख धर्म की स्थापना की जो सिखों के पहले गुरु के रूप में जाने जाते हैं। 
  2. गुरु नानक देव जी का देहावसान 22 सितम्बर 1539 को 69 वर्ष की आयु में हुआ। इससे पहले उन्होंने 7 सितम्बर 1539 को गुरु अंगद देव जी जो उनके शिष्य थे, को अपना उत्तराधिकारी बना कर उन्हें दूसरे सिख गुरु के रूप में स्थापित किया। वे लगभग 13 वर्ष गुरु के रूप में गद्दीनशीन रहे। 
  3. प्रथम गुरु नानक देव जी के पद चिह्नों पर चलते हुए ही गुरु अंगद देव जी ने अपनी मृत्यु से 3 दिन पहले 26 मार्च 1552 के दिन गुरु अमर दास जी को उत्तराधिकार प्रदान किया। 22 वर्ष तक गुरु अमर दास जी ने गुरु पद का निर्वहन किया। 
  4. 1 सितम्बर 1574 को गुरु अमर दास जी के निधनोपरांत उनके दामाद गुरु राम दास जी चौथे गुरु के रूप में गद्दीनशीन हुए और उन्होंने यह कर्तव्य 7 वर्ष तक निभाया। उन्होंने स्वर्ण मंदिर की रूपरेखा तैयार करने के इलावा अमृतसर (रामदासपुर) को बसाने का कार्य भी किया। 
  5. गुरु राम दास जी के निधन के बाद उनके सबसे छोटे पुत्र गुरु अर्जन देव जी 1 सितम्बर 1581 को पांचवें सिख गुरु के रूप में स्थापित हुए और 25 वर्ष के लगभग गुरु पद पर रहे। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इन्होंने 1588 में स्वर्ण मंदिर (हरिमंदिर साहिब) की नींव रखी। 30 मई 1606 को इनका देहावसान हुआ। 
  6. 25 मई 1606 को गुरु राम दास जी के उत्तराधिकारी गुरु हरगोबिन्द सिंह जी केवल 11 वर्ष की आयु में ही छठे सिख गुरु के रूप में सामने आए। इन्होंने सर्वाधिक समय (38 साल) तक गुरु पद का निर्वहन किया। 
  7. गुरु हरगोबिन्द सिंह जी के निधन के बाद 3 मार्च 1644 को गुरु हर राय जी सातवें गुरु हुए और लगभग 17 वर्ष पर गुरु पद की गरिमा बढ़ाई। 
  8. 6 अक्टूबर 1661 को गुरु हर राय जी के निधन के बाद उनके सबसे पुत्र गुरु हरकिशन सिंह जी, जो उस समय केवल 5 वर्ष के थे, सिख धर्म के आठवें गुरु के रूप में जाने जाने लगे। वे सबसे कम आयु में गुरु बने, परन्तु दुर्भाग्यवश केवल 7 वर्ष की आयु में उनका चेचक के कारण देहांत हो गया। 
  9. देहांत से पूर्व गुरु हरकिशन सिंह जी ने अपने परदादा के छोटे पुत्र गुरु तेग बहादुर जी को गुरुगद्दी के लिए नामित किया और 20 मार्च 1665 को गुरु तेग बहादुर जी गद्दीनशीन हुए। वे 11 नवम्बर 1675 को लाखों हिन्दुओं और सिखों के धर्म की रक्षा करते हुए औरंगज़ेब के कहर के आगे शहादत को प्राप्त हुए थे। 
  10. गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी के बाद 11 नवंबर 1675 को 9 वर्ष की आयु में गुरु गोबिंद सिंह जी सिखों के दसवें गुरु के रूप में प्रकट हुए। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। 1699 में इन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की। केवल 40 सैनिकों के साथ इन्होंने औरंगज़ेब और वज़ीर खान की बड़ी सेनाओं के साथ बड़ी बहादुरी से युद्ध लड़ा। अक्टूबर 1708 में वजीर खान के सिपाहियों ने घात लगा कर हमला करके गुरु गोबिंद सिंह जी की हत्या का प्रयास किया और जख्मी होने के बावजूद इन्होंने हमलावरों को मौत के घाट उतार दिया, परन्तु स्वयं भी अधिक समय जीवित न रह सके और 7 अक्टूबर 1708 को इनका देहावसान हो गया। 
  11. गुरु गोबिंद सिंह जी के बाद विभिन्न गुरुओं, कवियों और विचारकों द्वारा संकलित सिख धर्म के धार्मिक ग्रन्थ "गुरु ग्रन्थ साहिब जी" को अनंत काल के लिए गुरु का दर्जा दे दिया गया। 
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