Sunday, January 17, 2016

विशेष बच्चों (CWSN) की जरूरतों को जल्दी समझेंगे तो हो पाएगी बेहतर परवरिश

एन रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा)
वर्ष 2000 में 20 फरवरी को डिलीवरी के सिर्फ दो घंटे पहले सोनोग्राफी में पता चला कि गर्भ नाल बच्ची की गर्दन में लिपट गई है यानी तत्काल सिजेरियन ऑपरेशन की आवश्यकता। किंतु सर्जन को आने में देर हो गई और तब तक कल्पना तिवारी ने सामान्य डिलीवरी के तहत बच्ची को जन्म दे दिया। उन्हें और मध्यप्रदेश के
उज्जैन शहर के कॉलेज में प्रोफेसर उनके पति- डॉ. मनोज तिवारी को चिंता हुई, क्योंकि शुरुआती कुछ मिनटों तक बच्चे ने क्रंदन नहीं किया। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं।डॉक्टरों को भी संदेह हुआ कि कहीं बच्ची के दिमाग को ऑक्सीजन अापूर्ति में रुकावट तो नहीं गई। बाद में उस दिन के लिए सबकुछ सामान्य हो गया। किंतु 36 घंटों बाद बच्ची को आए फिट के पहले दौर से पुष्टि हो गई कि बच्ची 'बर्थ एस्पायक्जिया' से पीड़ित है। 
इसके बाद तो इस युगल के लिए लंबी लड़ाई शुरू हो गई। बच्ची की गर्दन 3 साल बाद सीधी खड़ी हो पाई अौर बच्ची खुद 42 माह बाद किसी सहारे के साथ खड़ी हो पाई। बच्ची की जिंदगी में हर चीज धीमी गति की थी, जिसका जन्म बहुत तेज रफ्तार सहस्राब्दी में हुआ था। कुछ थेरैपिस्ट ने वॉटर थेरैपी का सुझाव दिया, जिसके कारण दोनों को बरसों तक नगर निगम द्वारा संचालित स्विमिंग पुल जाना पड़ा। चूंकि बच्ची सेरेब्रल पाल्सी से पीड़ित थी, इसलिए उसके शरीर में कड़ापन था और तैरने के लिए आवश्यक लचीलापन दूर की कौड़ी थी। उन्होंने शुरुआत में उसे पानी में उतारा ताकि उसे पानी की आदत हो जाए। यह कड़ा प्रशिक्षण रेन कोट पहनकर बरसाती दिनों में भी चलता। 
पालकों ने यह सुनिश्चित किया कि इस विशेष बच्ची को वह सारी कोचिंग मिले, जिसकी उसे जरूरत है। उसे 14 माह में ही तैरना गया। फिर किसी ने सुझाव दिया कि बच्ची की स्थिति में और सुधार के लिए फिजियोथैरेपी के साथ सैंड थैरेपी की जरूरत है। किंतु पालकों के लिए बच्ची को इलाज के लिए हर सेंटर पर ले जाना बहुत कठिन था। इसलिए उन्होंने सारी सुझाई गई उपचार पद्धतियों में खुद को प्रशिक्षित करने का निर्णय लिया ताकि वे खुद बच्ची का इलाज कर सकें। अंतत: दोनों विशेषज्ञ फिजियोथैरेपिस्ट, सैंड थेरैपिस्ट और वॉटर थेरैपिस्ट हो गए। उन्होंने घर में ही पूरी व्यवस्था कायम की ताकि वर्षभर वे उसका इलाज कर सके। 
इस बीच, कल्पना बीमार पड़ गईं और किसी की सलाह पर नैचरोपैथी से इलाज हुआ और वे ठीक हो गईं। इससे उनमें उम्मीद जागी कि इसी थेरैपी से शायद उनकी बच्ची भी ठीक हो जाए और कुछ समय बाद उन्होंने नैचरोपैथी और योग विज्ञान में डिप्लोमा कर लिया। बच्ची की आंख ठीक करने और वस्तुअों के साथ तालमेल बिठाना सिखाने के लिए उन्होंने उसे साइकिल सिखाई। स्टैंड पर खड़ी साइकिल को पैडल मारना सीखने मेंं ही सालभर लग गया, क्योंकि उसके पैर पैडल के मुताबिक मुड़ नहीं पा रहे थे। वे उसके पैरों को दुपट्‌टे से पैडल से बांध देते ताकि पैडल के घुमाव के साथ पैर मुड़ सके। 
इसी के साथ पालकों ने बच्ची की शिक्षा के लिए साहसी फैसला किया। उन्होंनेे उसे सामान्य स्कूल में भेजने का निर्णय लिया, लेकिन साथ में यह तय किया कि घर पर शिक्षण की वे सारी पद्धतियां अपनाई जाएंगी, जो किसी विशेष बच्चे के लिए उपयोग में लाई जाती हैं। उज्जैन पब्लिक स्कूल ने उन्हें मदद देने का फैसला किया और उनकी जरूरतों के लिए एक समर्पित व्यक्ति नियुक्त कर दिया। गणित के शिक्षक विजय भावसर रोज बहुत-सा वक्त देते। बच्ची में इसका नतीजा दिखाई देने लगा। 
अब तेजी से बढ़कर 2015 में आते हैं। 2010 में अपने पिता को खोने की त्रासदी के बावजूद मनस्विता तिवारी पिछले तीन वर्षों में राष्ट्रीय पेरा ओलिंपिक्स स्विमिंग चैंपियनशिप में आठ स्वर्ण पदक और दो कांस्य पदक जीत चुकी हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि अगले माह हजारों अन्य बच्चों की तरह मनस्विता मध्यप्रदेश माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की 10वीं की परीक्षा में बैठेगी। 
फंडा यह है कि जितनी जल्दी आप ऐसे विशेष बच्चों की आवश्यकता को समझेंगे, उतनी जल्दी आप असरदार तरीके से उससे लड़ पाएंगे। तिवारी परिवार इस मामले में चमकता उदाहरण है।

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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