एन रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा)
स्टोरी 1: मुंबई के मलाड के मड-आइलैंड क्षेत्र में वे कई वर्षों से रह रहे हैं। बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री में सक्रिय भूमिका से दूर आने के कई वर्षों बाद वे दक्षिण मुंबई के एक पांच सितारा होटल में पहुंचे थे। अपने परिवार के साथ दो दिन वीकएंड मनाने के लिए उन्होंने एक प्रेसिडेंशियल सूट बुक किया था। होटेल पहुंचे तो अंदर से कहीं
आवाज आई कि इस जगह को पहले भी देखा है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। शायद इस स्थान को दूसरों के मुकाबले बेहतर जानता हूं, इसलिए देर रात को जब शहर सो गया, वे यूं ही घूमने निकले और होटल के पार्किंग लॉट में उन्हें खयाल आया कि यह तो वही स्थान है, जहां कभी वे काले-पीले रंग की टैक्सियों पर बॉलीवुड फिल्मों के स्टीकर लगाया करते थे। उन्होंने अपने बेटे को आवाज दी और पूछा, 'मीमो, किसी को भी इस कार पार्क से जहां हम ठहरे हैं उस सूट तक पहुंचने में कितना समय लगेगा? बेटे ने जवाब दिया, 'अगर कोई पैदल चलकर जाए तो करीब सात मिनट और दौड़कर जाए तो चार मिनट।' फिर पिता ने अपना हाथ बेटे के कंधे पर रखा और नम आंखों से कहा, 'लेकिन बेटा मुझे इस काम में 33 साल लग गए।' मीमो इस बात को समझ नहीं पाया। फिर पिता ने बेटे को अपने आगे बढ़ने की कहानी सुनाई कि कैसे एक स्ट्रगलिंग पोस्टर बॉय, जिसे आज हम मिथुन चक्रवर्ती के नाम से जानते हैं, फिल्मों का सफल अभिनेता बना। इसके बाद बेटा जब अपने बिस्तर पर पहुंचा तो वह यह जानता था कि तपस्या क्या होती है।
स्टोरी 2: वे किसी ऐसे परिवार में नहीं पले थे, जो किसी हॉलीवुड एक्टर को जानता हो। असल में वे एक होटल में दरबान थे और लियोनार्डो डिकेप्रियो को ले जाते थे, इसलिए एक्टिंग उनके साथ पूरी तरह जुड़ी हुई थी और 12 साल की उम्र में ही अभिनेता बनने का विचार दिमाग में घर कर गया था। उन्होंने इस दिशा में काम शुरू किया। वे कॉलेज गए और थियेटर और लिटरेचर की पढ़ाई की। पढ़ाई पूरी करने के लिए 75 हजार डॉलर का लोन लिया और अगर वे इसे नहीं चुका पाते तो उनके पिता को इसे चुकाना पड़ता। यह बात पिता भी जानते थे। फिर भी वे उसके सपने और मंजिल के बीच नहीं आना चाहते थे। लगातार अपने सपने को पूरा करने के लिए वे प्रयास करते रहे। और फिर आखिर 18 साल में वे अभिनेता बन गए, वह भी हॉलीवुड में। हम बात कर रहे हैं, ब्रेडली कूपर की। जो सबसे ज्यादा चर्चित और नई अग्रेजी फिल्म 'जॉय' में स्टार हैं। यह ऐसी सिंगल मदर (यह भूमिका जैनिफर लॉरेंस ने निभाई है) की मल्टी जनरेशनल कहानी है, जिसकी कल्पनाएं स्वच्छंद हैं और सपने सामान्य से जुदा। जब उनसे पूछा गया कि वे हॉलीवुड कैसे पहुंचे तो उन्होंने मीडिया को बताया कि लक उन लोगों का साथ देता है जो बहुत कड़ा परिश्रम करते हैं। आम तौर पर कड़ा परिश्रम करना आसान होता है, जब करने वाला अपने काम से प्यार करता हो। कूपर ने आज तक कोई छुट्टी नहीं ली है। इस 5 जनवरी को वे 41 साल के हो गए हैं।
स्टोरी 3: वे गरीब परिवार से थे, इसलिए उनका फोकस सिर्फ टिके रहने पर था और उन्होंने कभी भी अपना कॅरिअर प्लान नहीं किया। अपना वजूद बनाए रखना ही बहुत बड़ी चुनौती थी। ओडिशा के छोटे गांव सोनीपुर में 1973 में उनका जन्म हुआ था। नीला मधाब पांडा 15 साल में 'आईएम कलाम', 'जलपरी', 'बबलु हैप्पी है' और 'कितने पानी' में जैसी सामाजिक सरोकार वाली डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाने जाते हैं। वे पर्यावरण परिवर्तन, जल संरक्षण, प्रदूषण और स्वच्छता जैसे विषयों पर फिल्म बना चुके हैं और उनकी ताजा फिल्म है 'नाबाकालेबारा।' यह अभी रिलीज नहीं हुई है और भगवान जगन्नाथ पर आधारित है। उनके ग्लोबल ऑडियंस फिल्म का इंतजार कर रहे हैं। अपनी फिल्मों में विषय की चमत्कारिक विविधता ने उन्हें इस साल पद्मश्री अलंकरण से सम्मानित किए जाने की घोषणा हुई है।
फंडा यह है कि ज़िद और कड़ी मेहनत आपको सपनों से मंजिल की ओर ले जाते हैं।
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साभार: भास्कर समाचार
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