Sunday, January 24, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: नए तरीकों से वंचित वर्गों में स्थाई खुशियां लाना संभव

एन रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा)
स्टोरी 1: महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में बीड जिले की अंबेजोगाई तहसील में लगातार तीन साल से पड़ रहे सूखे के कारण 2015 के एक ही साल में 1000 किसानों ने आत्महत्या कर ली। तहसील के सारसा, मलेवाडी, पट्‌टीवडगाव, रक्षकवाडी, चिंचखंडी, चोटेवाडी और धसवाडी जैसे सात गांवों में ज्यादा आबादी नहीं है, लेकिन उसमें ऐसे युवाअों की बड़ी तादाद है, जिनकी अपेक्षाएं बहुत ऊंची हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। एक ऐसी जगह पर जहां भू-स्वामियों को अपनी बुनियादी जरूरतें पूरी करने में संघर्ष करना पड़ रहा हो, वहां तमाशा नर्तक जैसी भूमिहीन जनजातियों उनके परिवारों की क्या हालत होगी, इसे आसानी से समझा जा सकता है। एक से दूसरे स्थान भटकने की बंजारा जीवनशैली के कारण परंपरागत रूप से नर्तकों के इन परिवारों के बच्चों को मुश्किल से ही शिक्षा नसीब होती है। आसपास के गांवों में इस तरह के मनोरंजन के लिए पैसा होने के कारण इनके बच्चों की निजी स्तर पर शिक्षा का तो सवाल ही नहीं उठता और वे बेचारे बाल-श्रम, दुराचार और कुछ मामलों में बाल विवाह के शिकार हो जाते हैं। बच्चियों के साथ ऐसा होने की आशंका ज्यादा होती है। 
इस खतरे का अहसास होने के बाद अंबेजोगाई सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल के महिला डॉक्टरों के एक समूह ने सारसा गांव के दस बच्चों को गोद लेकर उन्हें पूरी शिक्षा दिलाने का बीड़ा उठाया है। इस महासंक्रांति पर इन डॉक्टरों ने एक और बिल्कुल अनूठी बात कर दी। जरूरतमंदों को किताबों और शिक्षा की अन्य आधारभूत सामग्री मुहैया कराने के अलावा इन महिला डॉक्टरों ने इन लोगों के बच्चों को संपूर्ण विकास और प्रतिभा विकास के विभिन्न मंचों तक ले जाने का संकल्प लिया है। इन बच्चों को और खासतौर पर प्रवासी श्रमिकों के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ डॉक्टरों ने ऐसे तरीके खोजे हैं, जिससे इन दूरवर्ती गांवों के हाशिये पर पड़े वर्गों का सशक्तीकरण हो सके। उन्हें लगता है कि उन्हें सक्षम बनाने से लंबे समय में एक ऐसी पीढ़ी तैयार होगी, जिसके युवकों में अपनी जिंदगी को खुद आगे ले जाने का आत्मविश्वास होगा। 

स्टोरी 2: चौतीस वर्ष के 2009 की बेच के डेंटल सर्जन से नौकरशाह बने प्रशांत नारनावरे ने महाराष्ट्र के ही उस्मानाबाद की लगाम अपने हाथ में लेने के बाद से हजारों किसानों के लिए क्लस्टर मार्केटिंग का विचार लाने के लिए एक वेबसाइट निर्मित की। मार्केटिंग की रणनीति के अभाव में इन किसानों को अपनी कृषि उपज के वाजिब दाम नहीं मिल पाते। इसके बाद तो बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी राज्य को प्रभावित करने वाले सूखे से निपटने और किसानों की आत्महत्याएं रोकने के लिए उठाए गए और उठाए जाने वाले कदमों पर नरनावरे के प्रेजेंटेशन को देखा। इसका सीधा परिणाम यह हुआ कि हाईकोर्ट ने 17 जिलों के कलेक्टरों को किसानों की आत्महत्याएं रोकने के लिए उठाए गए कदमों पर रिपोर्ट पेश करने को कहा है। 
नरनावरे ने कृषि उपज के वितरण की समस्या पर गौर करते हुए पाया कि इसका कारण कृषि केंद्रों की एकाधिकारवादी कार्यप्रणाली है। उन्होंने इस एकाधिकार को तोड़ने के लिए उस्मानाबाद में कृषि मॉल का निर्माण किया। यहां तक कि बीज और उर्वरकों के वितरण का काम भी किसानों को ही सौंप दिया, जबकि केंद्र से मिलने वाली आर्थिक मदद शेड और पॉली हाउस बनाने पर खर्च की गई। इससे कृषि उपज कई गुना बढ़ गई और इस प्रकार कृषि प्रणाली के अंतिम व्यक्ति- किसान को आमदनी होने लगी। 
कमजोर मानसून और कभी-कभी आर्थिक सहारा होने से इस जिले पर ही नहीं बल्कि पूरे राज्य पर किसी तलवार की तरह मंडरा रहे खेती के संकट से निपटने के लिए एक तरीके के रूप में उनके काम पर कई लोगों की नज़र पड़ी है। नरनावरे ने किसानों के 14,600 समूह और 39 निजी फर्म बनाई और कृषि उपज को बढ़ावा देने के लिए वेबसाइट निर्मित की। इस वेबसाइट का उपयोग किसानों की शिकायतें दूर करने के लिए भी किया जाता है। 

फंडा यह है कि जरूरतमंदों को मदद देने के अलावा यदि हम ऐसे कदम उठा सकें, जो लोगों की जिंदगी में सुख बोने का स्थायी प्रबंध कर सकें तो यह सभी के सामूहिक विकास की दिशा में दूरगामी कदम होगा। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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