सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब में सिखों के अल्पसंख्यक दर्जे के मामले में केंद्र सरकार को पक्षकार बनाते हुए नोटिस जारी किया है। पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी से सुनवाई में कोर्ट की मदद करने का आग्रह किया है। इसके अलावा वरिष्ठ अधिवक्ता टीआर अधिअजरुना को
न्यायमित्र (एमाइकस क्यूरी) बनाया गया है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। सुनवाई के दौरान जब एसजीपीसी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ने बहस शुरू की तो पीठ ने कहा कि यह गंभीर मसला है। केंद्र सरकार मामले में पक्षकार ही नहीं है। कोर्ट ने केंद्र को मामले में पक्षकार बनाते हुए नोटिस जारी किया। पीठ ने कहा कि यह मामला उसी तरह का है जैसे कि नगालैंड और मिजोरम में ईसाई व जम्मू-कश्मीर में मुसलमान हैं। इसके बाद कोर्ट ने मामले की सुनवाई चार सप्ताह के लिए टाल दी।
एसजीपीसी की दलील: पंजाब सरकार और एसजीपीसी ने दलील दी है कि हाई कोर्ट ने सिखों की जनसंख्या आदि के आंकड़ों पर विचार किए बगैर बिना किसी उचित आधार के फैसला दे दिया है। गुरुद्वारा एक्ट 1925 में सिखों की परिभाषा दी गई है। ऐसे में सिर्फ उस परिभाषा के आधार पर ही किसी को सिख माना जा सकता है। उस परिभाषा के मुताबिक 10 गुरुओं में विश्वास करने वाले और गुरुग्रंथ साहिब में आस्था रखने वाले लोग ही सिख हैं।
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साभार: जागरण समाचार
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