Saturday, January 16, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: कोई मिशन हो तो जीवन अर्थपूर्ण हो जाता है

स्टोरी 1: इस सप्ताह गुरुवार को मुंबई विश्वविद्यालय में सालाना दीक्षांत समारोह था, जैसा कि अन्य विश्वविद्यालयों में भी होता है। करीब 271 लोग पीएचडी की डिग्री ग्रहण करने के लिए नामांकित थे। इनमें से एक थीं कोकिला बेन शाह। जब वे वेदांत फिलॉसफी में अपनी पीएचडी स्वीकार करने पहुंचीं तो तालियों की
गड़गड़ाहट काफी ऊंची थीं। इसलिए नहीं कि डॉक्टरेट की उपाधि मिल रही थी या विषय अनोखा था बल्कि इसलिए कि कोकिल बेन कैंसर की जंग जीतकर वहां पहुंची थीं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। वे जिंदगी के 8वें दशक में हैं - उम्र सिर्फ 78 साल! 22 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई थी और पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण पढ़ाई जारी नहीं रख सकीं। शिक्षा के लिए बरसों तक लगातार भीतर ज्योति जलती रही और जब कभी बच्चे एसएससी या कॉलेज की परीक्षा में बैठते, वे भी पढ़ती रहीं। 1996 में जब उन्हें कैंसर होने का पता चला तो वह भी शिक्षा की उनकी भूख को खत्म नहीं कर सका। उन्होंने अपने बच्चों के साथ डबल पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा किया और फिर पीएचडी की तैयारी की। अब वे कहती हैं कि यह तो शुरुआत है। यह खास मिशन उन्हें चिरायु बनाता है। 
स्टोरी 2: वे ब्रेन और स्पाइन सर्जन हैं। साइकिल चलाना उन्हें पसंद है। 14 नवंबर 2015 को एक साइकल अभियान में ठाणे में एक टैंकर ने डॉ. विश्वनाथन अय्यर को टक्कर मार दी। तीन सप्ताह तक वे बिस्तर से हिलडुल भी नहीं सके। उसके बाद भी व्हीलचेयर सहारा बनी। तब रैम्प, व्हीलचेयर का महत्व पता चला। और यह भी कि उनकी स्मार्ट सिटी ठाणे उन विकलांग लोगों के लिए हितकर नहीं है, जो आत्म सम्मान से जीना चाहते हैं, बिना किसी की मदद लिए। वे रेस्तरां, थियेटर, मॉल और इनके अलावा कई सार्वजनिक स्थानों पर व्हीलचेयर से गए। पाया कि नगर प्रशासन का विकलांगों की ओर कोई ध्यान नहीं है। इस माह के शुरू में काम पर लौटे डॉ. अय्यर ने विकलांगों के लिए काम करने को अपना मिशन बना लिया है। उन्होंने हर बिल्डिंग, सार्वजनिक स्थान जहां लोग घूमना चाहते हैं, वहां रैम्प अनिवार्य रूप से बनाने के लिए नगर प्रशासन को पत्र लिखा है। साथ ही व्हीलचेयर भी असानी से चल सके ऐसे फुटपाथ बनाने और जापान की तरह व्हीलचेयर वाले वरिष्ठ नागरिकों के लिए बसों में आने-जाने की व्यवस्था की भी मांग की है। इस दिशा में जागरूकता पैदा करने के लिए उन्होंने खुद संकल्प किया है कि जब भी अपने शहर ठाणे में बाहर निकलेंगे व्हीलचेयर के लिए बाधा बनने वाली चीजों को रास्ते से हटाते जाएंगे। ठाणे स्मार्ट सिटी बन चुका है और अब उसे खुद को विशेष योग्यता वाले एेसे लोगों के प्रति संवेदनशील बनाना है। डॉ. अय्यर ने अपने जीवन को विकलांगों के लिए काम करने के लिए समर्पित कर दिया है। 
स्टोरी 3: आठ डिग्री सेल्सियस की कड़कड़ाती ठंड में एक 'चाय वाला' हाथ में फ्लास्क और डिस्पोजेबल ग्लास लिए इंदौर की सड़कों पर सफाई कर्मचारियों को चाय देते हुए आगे बढ़ता है और वह भी बिना पैसे लिए। जब शहर ठंड के कारण रजाई में दुबका रहता है तब वे सुबह बहुत जल्दी उठ जाते हैं और खुद चाय बनाते हैं और जरूरतमंदों को चाय पिलाने की अपनी यात्रा पर निकल जाते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि यह 'चाय वाला' अपनी लंबी कार लिमोजिन से आता है उस चाय वाले की तरह नहीं, जिसे हम जानते हैं, जो साइकिल पर आता है और चाय बेचता है। मिलिए इंदौर के न्यूरो सर्जन दीपक कुलकर्णी से। बहुत ही व्यस्त डॉक्टर, जो प्रतिदिन कई अस्पतालों में जाते हैं। तीन वर्ष पहले उन्होंने यह सेवा कार्य शुरू किया था। तब वे और उनकी पत्नी ज्योति सुबह की सैर पर थे और उन्होंने देखा कि सफाई कर्मचारी कड़कड़ाती ठंड के बावजूद समय पर अपना कार्य कर्मठता से कर रहे हैं। उन्होंने सोचा हम ज्यादा कुछ नहीं तो कम से कम उन्हें इस ठंड में गरम चाय तो पिला ही सकते हैं। 
फंडा यह है कि जीवनका कोई भी मिशन चाहे वह खुद के लिए हो या दूसरों के लिए, आपके पूरे जीवन को मूल्यवान और अर्थपूर्ण बनाता है। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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