साभार: जागरण समाचार
पिछले कई वर्षो से देश की अदालतों में इस बात को लेकर मामले चल रहे थे कि जो ग्राहक जान-बूझकर बैंकों का कर्ज नहीं चुकाते हैं उनके नाम सार्वजनिक किए जाए या नहीं। अभी तक भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) व
वाणिज्यिक बैंक विभिन्न कायदा-कानूनों का हवाला देकर इन ग्राहकों के नाम जाहिर करने से बचते रहे हैं।
अब शुक्रवार को एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा आदेश दिया है जिससे आने वाले दिनों में जान-बूझकर कर्ज नहीं चुकाने वाले ग्राहकों यानी विलफुल डिफॉल्टर्स के नाम के जगजाहिर होने का रास्ता खुल जाएगा। कोर्ट ने कहा है कि आरबीआइ की तरफ से बैंकों को लेकर जो सालाना जांच रिपोर्ट तैयार की जाती है, उसे सूचना का अधिकार (आरटीआइ) कानून के तहत सार्वजनिक करना होगा।
इस जांच रिपोर्ट में बैंकों के एनपीए ग्राहकों समेत उनकी तरफ से की जाने वाली तमाम गड़बड़ियां अब सार्वजनिक होंगी। कोर्ट ने आरबीआइ को इस बारे में कड़ी फटकार भी लगाई है कि उसके तरह से पूर्व में दिए गए एक आदेश को उसने सही संदर्भ में लागू नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट ने बेहद तल्ख भाषा में कहा कि वह आरबीआइ को पारदर्शिता लाने का अंतिम मौका दे रहा है। अगर आगे उसके आदेश का उल्लंघन होता है तो उसे बेहद गंभीरता से लिया जाएगा। इसके साथ ही आरबीआइ की उस नीति को निरस्त करने को कहा गया है जिसके तहत वह बैंकों से जुड़ी कई तरह की सूचनाओं को सार्वजनिक नहीं करता। एक याचिकाकर्ता ने आरबीआइ से आरटीआइ के तहत अप्रैल, 2011 से दिसंबर, 2015 के दौरान आइसीआइसीआइ बैंक, एक्सिस बैंक, एसबीआइ और एचडीएफसी बैंक की सालाना जांच रिपोर्ट की मांग की थी। याचिककर्ता ने आरबीआइ की तरफ से सहारा समूह में पाई गई गड़बड़ियों के बारे में भी सूचना मांगी थी। आरबीआइ ने यह कहते हुए मना कर दिया था कि इस तरह की सूचनाओं को वह आरबीआइ कानून और आरटीआइ की धारा 8(1)ई के तहत देने को बाध्य नहीं है। याचिककर्ता का कहना है कि इस तरह की सूचना आरबीआइ को देनी होगी और इस बारे में सुप्रीम कोर्ट पहले ही आदेश दे चुका है। इसके बावजूद जब आरबीआइ के रुख में कोई बदलाव नहीं आया याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट में चला गया। सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका था कि आरबीआइ का ध्यान पारदर्शिता पर होना चाहिए।