साभार: जागरण समाचार
हरियाणा में एचसीएस (हरियाणा सिविल सर्विस) एक्जीक्यूटिव ब्रांच के लगभग 44 अधिकारियों के आइएएस बनने का रास्ता साफ हो गया है। उनकी आइएएस प्रोन्नति पर घिरे संकट के बादल छट गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने
अधिकारियों की वरिष्ठता तय करने के मामले में हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी है।
जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने मामले में वकीलों की दलीलें सुनने के बाद गत सोमवार को हाई कोर्ट के आदेश में दखल देने से इन्कार करते हुए विशेष अनुमति याचिका खारिज कर दी। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट की खंडपीठ ने गत जनवरी में आदेश देते हुए एकलपीठ का फैसला पलट दिया था और कहा था कि एचसीएस अधिकारियों की वरिष्ठता के लंबे समय से चल रहे विवाद में नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की गणना का रूल 20 नियम लागू नहीं होगा क्योंकि इस मामले में प्रतिपक्षी अधिकारियों की नियुक्ति कोर्ट के आदेश के अनुसार हुई है इसलिए इनकी वरिष्ठता इनके बैच के हिसाब से तय होगी। खंडपीठ के आदेश से प्रभावित हो रहे अधिकारियों ने फैसले को सुप्रीम कोर्ट मे चुनौती दी थी। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील कामिनी जायसवाल ने हाईकोर्ट के आदेश का विरोध करते हुए कहा कि पंजाब सर्विस रूल 1930 का नियम 20 कहता है कि वरिष्ठता की गणना नियुक्ति की तिथि से होगी। इस मामले में प्रतिपक्षी अधिकारियों की एक्जीक्यूटिव ब्रांच में नियुक्ति याचिकाकर्ता अधिकारियों के बाद की है। ऐसे में उन्हें वरिष्ठ माना जाएगा न कि प्रतिपक्षी अधिकारियों को। याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट के आदेश के बाद प्रोन्नति के लिए तैयार डीपीसी पर भी रोक लगाए जाने की मांग की थी। जबकि दूसरी तरफ प्रतिपक्षी अधिकारियों की ओर से पेश वकील जसबीर सिंह मलिक ने हाईकोर्ट के आदेश को सही ठहराते हुए कहा कि उनके मुवक्किल इस मामले में पिछले 25 साल से मुकदमा लड़ रहे हैं। उनका चयन 1992 का है। उनकी एक्जीक्यूटिव ब्रांच में नियुक्ति कोर्ट के आदेश पर हुई है ऐसे में उन्हें उनके बैच के हिसाब से ही वरिष्ठता मिलनी चाहिए। कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद याचिका खारिज कर दी। कोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद पिछले करीब सात साल से एचसीएस अधिकारियों की आइएएस प्रोन्नति का लटका मामला साफ हो गया है।
अधिकारियों के कानूनी झगड़े में लटकी रही पदोन्नति: हरियाणा मे एचसीएस अधिकारियों की वरिष्ठता के आपसी विवाद के चलते कई वर्षो से अधिकारियों की प्रोन्नति लटकी थी। मामले में हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक कई दौर की मुकदमें बाजी हुई। बीच में कानून संशोधन भी हुए। हर बार एक फैसले को दूसरे कोर्ट में चुनौती दी जाती रही। वरिष्ठता के इस झगड़े में 1992 बैच के अधिकारियों से लेकर नीचे तक के अधिकारी फंसे थे।