जयप्रकाश चौकसे (फिल्म समीक्षक)
महिलाओं के अपमान के एजेन्डा को हास्य के मुखौटे में छुपाकर टेलीविज़न पर फूहड़ता रचने वाले कपिल शर्मा बीमार हैं और अफवाह यह है कि वे नैराश्य से घिरे हैं। हास्य के नाम पर फूहड़ता परोसना एक व्यवसाय हो गया
हैैं। आख्यानों से लेकर संविधान तक में उसे देवी और पूजनीय बताया गया है परन्तु यथार्थ में वह दोयम दरजे की नागरिक की तरह रहती है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। साहित्य का क्षेत्र तो पढ़े-लिखे संवेदनशील लोगों का माना जाता है परन्तु जब भी किसी महिला कथाकार ने साहस से कुछ लिखा है तब उसे भी कटघरे में खड़ा कर दिया गया है।
एक दौर में सफलतम हास्य अभिनेता मेहमूद भी नैराश्य के शिकार हुए थे। वे जगाए रखने की दवा का सेवन करके दिन-रात शूटिंग करते थे। सफलता के घोड़े पर सवारी करना कठिन काम है। सदैव जागते रहना संभव नहीं है। हमारी तो व्यवस्था ही सदैव सोई रहती है। साधनहीन कष्ट से घिरे अवाम के लिए वह कभी नहीं जागती। चाटुकारिता के नए कीर्तिमान बनाने के इस दौर में एक सरकारी उच्च अधिकारी ने यह फूहड़ बयान दे दिया कि घर में शौचालय बनाने के लिए धन नहीं है तो अपनी पत्नी को बेच दो। किस तरह डर का साम्राज्य रच दिया गया है। क्या इस अभद्रता के लिए अधिकारी को दंडित किया जायेगा? संभावना कम ही है।
कपिल शर्मा के तमाशे में कुछ पुरुष महिला की पोषाख पहने प्रस्तुत होते हैं और सारी मर्यादा भंग हो जाती है। क्या लंबे समय तक पुरुष नारी का परिधान पहने कार्य करता रहे तो उसकी विचार प्रक्रिया पर इसका प्रभाव पड़ता है? दिलीप कुमार को तो लगातार त्रासदी अभिनीत करते रहने के कारण मनोचिकित्सक से इलाज कराना पड़ा था। कपिल शर्मा तमाशे में भावना की वह तीव्रता नहीं है कि इन पुरुष कलाकारों पर कोई प्रभाव पड़े। भारतीय कथा फिल्मों के जनक दादा फाल्के को भी नारी की भूमिका के लिए एक पुरुष को ही लेना पड़ा था जिसका नाम सोलंके था। बाद की कुछ फिल्मों में उनकी सुपुत्री मंदाकिनी ने काम किया। यह भी एक प्रचलित कहावत है कि हर पुरुष में आधी स्त्री, आधा पुरुष और आधा शैतान होता है गोयाकि वह तीन भूमिकाओं में प्रस्तुत होता है। निदा फाज़ली ने कहा है कि हर एक आदमी के पीछे दस आदमी छुपे होते हैं। रावण का आकल्पन भी दस के रूप में किया गया है परन्तु यह संभवत: उसके ज्ञान के कारण भी कहा गया हो। हरिवंश राय बच्चन ने भी कहा था कि उनसे इतना कुछ लिखवाया है, उनकी भीतर बैठी एक स्त्री ने। ग्वालियर के कवि पवन करण का भी एक काव्य संकलन 'स्त्री मेरे भीतर' के नाम से प्रकाशित हुआ है।
हजारों वर्ष के मानव इतिहास में नारियों के प्रति बदलते हुए रुख का विशद विवरण सिमॉन ब्वू की पुस्तक 'सेकण्ड सेक्स' में उपलब्ध है और इस विषय पर उसे सर्वोत्तम किताब भी माना जाता है। इस किताब का सम्बन्ध सेक्स से नहीं है। इस बात पर भी विचार करें कि 'कामसूत्र' के रचनाकार वात्सायन की पत्नी भी अपने प्रेमी के साथ भाग गई थी। वेदव्यास की महाभारत में इस तरह का विवरण है कि अपने अज्ञातवास के समय अर्जुन नारी स्वरूप में आकर राजकुमारी उत्तरा को नृत्य शास्त्र की शिक्षा देते थे और उन्हें आभास हुआ कि उत्तरा उनसे प्रेम करने लगी है। अत: अज्ञातवास समाप्त होने पर वे अपने पुरुष स्वरूप में लौटे और उन्होंने राजकुमारी उत्तरा से विवाह का प्रस्ताव रखा जो अस्वीकृत किया गया। अनेक संस्करणों में यह लिखा है कि उत्तरा के पिता यह सम्बन्ध चाहते थे। राजकुमारी उत्तरा तो उनके नारी स्वरूप पर मंत्रमुग्ध थी। कालांतर में राजकुमारी उत्तरा ने अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु से विवाह किया। क्या अभिमन्यु में उन्हें अर्जुन के स्त्री स्वरूप की कोई झलक देखने को मिली। इन महान पात्रों के मनोविज्ञान पर भी शोध की बहुत गुंजाइश है।
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हजारों वर्ष के मानव इतिहास में नारियों के प्रति बदलते हुए रुख का विशद विवरण सिमॉन ब्वू की पुस्तक 'सेकण्ड सेक्स' में उपलब्ध है और इस विषय पर उसे सर्वोत्तम किताब भी माना जाता है। इस किताब का सम्बन्ध सेक्स से नहीं है। इस बात पर भी विचार करें कि 'कामसूत्र' के रचनाकार वात्सायन की पत्नी भी अपने प्रेमी के साथ भाग गई थी। वेदव्यास की महाभारत में इस तरह का विवरण है कि अपने अज्ञातवास के समय अर्जुन नारी स्वरूप में आकर राजकुमारी उत्तरा को नृत्य शास्त्र की शिक्षा देते थे और उन्हें आभास हुआ कि उत्तरा उनसे प्रेम करने लगी है। अत: अज्ञातवास समाप्त होने पर वे अपने पुरुष स्वरूप में लौटे और उन्होंने राजकुमारी उत्तरा से विवाह का प्रस्ताव रखा जो अस्वीकृत किया गया। अनेक संस्करणों में यह लिखा है कि उत्तरा के पिता यह सम्बन्ध चाहते थे। राजकुमारी उत्तरा तो उनके नारी स्वरूप पर मंत्रमुग्ध थी। कालांतर में राजकुमारी उत्तरा ने अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु से विवाह किया। क्या अभिमन्यु में उन्हें अर्जुन के स्त्री स्वरूप की कोई झलक देखने को मिली। इन महान पात्रों के मनोविज्ञान पर भी शोध की बहुत गुंजाइश है।
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साभार: भास्कर समाचार
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