Saturday, July 29, 2017

जीवन: अच्छा दोस्त बनने के लिए बटुए से बड़ा दिल चाहिए

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
अपने गृहनगर मुंबई के बाहर मेरा हर दफ्तर हमेशा 'स्टारबक्स' कैफे जैसी जगहें होती हैं, जहां हर कूपा काफी महंगा है, लेकिन वे कभी इसे खाली करने के लिए नहीं कहते फिर भले ही ज्यादा ऑर्डर भी दिया गया हो। वे
बहुत अच्छा माहौल सेवाएं देते हैं। साथ ही शहर के मध्य तो होते ही हैं। दिल्ली में स्टारबक्स में मेरे नज़दीक की मेज पर चार स्थानीय लड़के जमा थे। सभी के चेहरे पर काफी गुस्सा और तनाव था। बातचीत से पता लगा कि ग्रुप का पांचवां दोस्त गायब था, जो रईस पिता की संतान है। चारों में से एक की शादी होने वाली थी और उसने में विदेश में हनीमून ट्रिप पर जाने के लिए 2 लाख रुपए का लोन देने का वादा किया था लेकिन, फिलहाल वो इन्हें नज़रअंदाज कर रहा था। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। मदद का वादा करने के बाद पिछले आठ दिनों से उसने इनके फोन कॉल लेना बंद कर दिए थे और ही इनके किए सैकड़ों वाट्सएप मैसेज देखे थे। उसके पिता का सेक्रेटरी जो उसका भी सेक्रटरी था बहाने बना रहा था कि वह ऑफिस में नहीं है या फैक्ट्री इंस्पेक्टर के साथ व्यस्त है या अभी एक ट्रिप पर निकले हैं। चारों सिर्फ इस बात से नहीं चिढ़े हुए थे कि उसने पैसे देने से इंकार कर दिया था, बल्कि उनकी नाराजी इसलिए थी कि उसने वादा करने के बाद गच्चा दिया था। अब तो वह उन्हें पूरी तरह नज़रअंदाज भी कर रहा था। अब एक दोस्त को भावी पत्नी के सामने शर्मिंदा होने की नौबत गई थी। उनके लिए यह 'इज्जत का फालूदा' होने के समान था। 
मुझे याद है कॉलेज के दिनों में हम छह दोस्त एक-दूसरे के काफी नज़दीक थे (आज भी हैं) और हममें से एक की बहन की शादी थी। अपने मध्यम वर्गीय परिवार में वह सबसे छोटा बेटा था और उसकी तीन बड़ी बहनें थीं। पिता ही पूरे परिवार की जिम्मेदारी निभाते थे, क्योंकि बेटा तो अभी कॉलेज में ही था। बाकी दो बहनों की शादी हो गई थी। सबसे छोटी बहन ने नौकरी कर ली थी और अभी वह शादी नहीं करना चाहती थी, क्योंकि छोटे बेटे से अभी परिवार को कोई मदद नहीं मिल रही थी। फिर एक बहुत अच्छा रिश्ता आया लेकिन, परिवार की माली हालत देखकर फिलहाल वह तैयार नहीं थी। आखिर नाराज पिता ने एक दिन हमारे दोस्त से अनजाने में कह दिया- अगर तुम काम कर रहे होते तो आज मैं अपनी जिम्मदारी पूरी कर चुका होता। इस बात से वह आहत था और बहन की शादी में तो मदद करना चाहता ही था। वह हर तरह से पैसे बचाने लगा। फिर शादी तय तारीख से 18 महीने पहले ही करने का शानदार प्रस्ताव अा गया। 
जैसे ये लोग बैठे थे हम भी इंडियन कॉफी हाउस में बैठे थे। उन दिनों मिलने-मिलाने की यह सबसे प्रसिद्ध जगह थी। हम सभी की पूरी मदद के बाद भी उसने जितना वादा किया था, उससे 15 हजार रुपए फिर भी कम पड़ रहे थे। हममें से एक ने शानदार आइडिया सामने रखा कि अगर हममें से कोई भी शादी में नहीं जाए तो यात्रा में लगने वाला यह पैसा भी काम जाएगा। इस तरह 3000 रुपए की पूर्ति हो जाएगी। दूसरा अच्छा आइडिया यह था कि हम सभी अपने दो पहिया वाहनों की आरसी गिरवी रख दें। हममें से तीन के पास लूना थी और एक के पास होन्डा। इस तरह बचे हुए 12 हजार जुटाए जा सकते थे। हमने तुरंत ऐसा कर दिया और अगले कुछ महीनों के लिए हमें अपनी छोटी-छोटी खुशियों को छोड़ना पड़ा था। उसकी बहन को यह बात बाद में पता चली। करीब एक साल बाद वो हमसे मिलने आईं और पता किया कि हमें अपने आरसी पेपर फिर मिले हैं या नहीं। कहीं इससे हमारे पेरेंट्स को धक्का लगे। आज भी हम एक-दूसरे की मदद अपने तरीके से करते हैं, जो आर्थिक नहीं होती। 
फंडा यह है कि किसीका सच्चा दोस्त बनने के लिए आपका दिल और कंधे आपके वॉलेट से ज्यादा बड़े होने चाहिए। Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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