Sunday, July 23, 2017

रेवाड़ी के 5 गांव नशामुक्त; दुकानों पर भी धूम्रपान-नशा सामग्री नहीं बिकती, बेटियां ससुराल में और बहुएं मायके में छुड़ा रहीं लत

रेवाड़ी जिले के गांव टीकला, तिहाड़ा, शाहपुर, झाबुआ, रसियावास। आसपास सटे इन गांवों में नशे को सबसे बड़ी बुराई माना जाता है। यहां के लोग धूम्रपान तक से दूर रहते हैं। गांवों में आने वाले लोगों से भी नशा करने को
कहा जाता है। बेटियां शादी होने के बाद ससुराल में और यहां आने वाली बहुएं अपने मायके में नशे की लत छुड़ा रही हैं। इसकी वजह से गांवों में लड़ाई-झगड़े के मामले ना के बराबर हैं। यहां की पहचान विकास कार्यों के बजाय धूम्रपान करने की वजह से ज्यादा है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। टीकला की सरपंच बिमलेश, तिहाड़ा के सरपंच रविंद्र, शाहपुर के सरपंच रतन, झाबुआ के सरपंच भीम कुमार और रसियावास के सरपंच रनबीर बताते हैं, '250 साल पहले ग्रामीणों ने संत गुरु बाबा भगवानदास से नशे से दूर रहने का पाठ सीखा था। उसे मान्यता के तौर पर आज तक सभी निभा रहे हैं। यहां नशा करने पर कार्रवाई या जुर्माने का कोई कानून नहीं है। इसके बावजूद धूम्रपान करना तो दूर इसकी चर्चा करना भी गलत माना जाता है। दुकानों पर धूम्रपान-नशा संबंधी सामग्री नहीं बिकती। आबकारी एवं कराधान विभाग के अधिकारी भी जानते हैं कि यहां ठेका खोलना आफत मोल लेना है। इसलिए उनके रिकाॅर्ड में गांवों का नाम तक नहीं होता।' बिमलेश बताती हैं, 'पांचों गांवों में लड़का-लड़की का रिश्ता तय करते वक्त धूम्रपान करने की शर्त रखी जाती है। लड़की की बारात आती है तो कोई भी बाराती चाहकर भी धूम्रपान नहीं कर सकता। ऐसे ही जब गांव से लड़के की बारात जाती है तो लड़कीवालों की तरफ से इस नियम का पालन किया जाता है। ज्यादातर बहुओं ने अपने मायके में भी नशे की लत छुड़ा दी है। इसके लिए वह परिजनों को ससुराल में बुलाती हैं और बाबा भगवानदास के बाग में धूम्रपान करने का संकल्प कराती हैं।' 
टीकला के 80 वर्षीय महंत अमर सिंह बताते हैं, 'मेरे याददाश्त में 5 साल पहले एक बार जरूर किसी ने गांव के बाहर शराब ठेका खोला था, लेकिन कुछ दिन बाद खुद ही बंद करना पड़ा। इससे पहले गांव में कभी ठेका नहीं खुला। यहां के लोग नशे से नफरत करते हैं, इसलिए यहां ठेका खोलने का क्या फायदा।' 
टीकला की बबीता बताती हैं, 2012 में मेरी शादी डोहकी गांव में हुई। घरवालों ने मेरे ससुरालवालों को बता दिया था कि गांव में धूम्रपान, शराब या अन्य किसी भी तरह का नशा करना मना है। शादी में सभी बारातियों ने हमारी बात का मान रखा। जब ससुराल गई तो घर में हुक्का-बीड़ी का चलन था। मैंने पति से घर में धूम्रपान होने देने की मांग की। सास ने इसमें पूरा साथ दिया। अब 5 साल हो गए हैं, परिवार में कोई भी किसी तरह का नशा नहीं करता।' इसी तरह कविता, निर्मला समेत कई लड़कियां शादी के बाद ससुराल में नशे की लत को छुड़वा चुकी हैं। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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