Wednesday, July 26, 2017

शिक्षक अवश्य पढ़ें ये ग्राउंड रिपोर्ट: दोराहे पर नीति, चौराहे का परिणाम

हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड के परीक्षा परिणामों पर गौर किया जाए तो सरकारी स्कूलों के मुकाबले निजी स्कूलों में बच्चों की फेल होने की तादाद बहुत ज्यादा है। दसवीं हो या बारहवीं सरकारी स्कूलों को शर्मसार करते नजर आते हैं। सौ फीसद छात्र कई स्कूलों में फेल हुए हैं। आइए कुछ चर्चा कर लें इसी पर:

सरकार बदली। तीन साल में शिक्षा के हालात नहीं बदले। नई सरकार की अपनी दुविधा। हालात यही बताते कि सरकार की ऊहापोह टूटी नहीं है। शिक्षा कभी निजीकरण की राह पकड़ती दिखाई देती तो कभी परंपरा की लीक पर ..। नीति दोराहे पर खड़ी है। नीति की विडंबना से पर्दा हटाते हुए जरा एक नॉन डिटेंशन पॉलिसी पर नजर डालिए। यह पॉलिसी आठवीं तक बच्चों को फेल नहीं होने देती। स्वाभाविक तौर पर नौवीं के बच्चों को बेसिक ज्ञान नहीं होता। नतीजा, दसवीं में फेल विद्यार्थियों की खासी तादाद। 50 फीसद रिजल्ट। यही नहीं, नीति ऐसी कि सेमेस्टर पद्धति से एकदम एनुअल में ले आए। प्रयोग भी कम नहीं। कभी रेशनलाइजेशन के नाम तो कभी ऑनलाइन ट्रांसफर के नाम। समय पर तबादला नहीं होने के कारण प्रक्रिया लंबी खिंच जाती है। शिक्षकों की भर्ती कहीं न्यायालय तो कहीं विभाग में अटकी। नतीजा? चौराहे पर औंधा गिरा परीक्षा परिणाम ..

पेश है, इस यथार्थ का अलग-अलग स्कूलों से चित्रण के साथ दैनिक जागरण के संवाददाता मणिकांत मयंक की ग्राउंड रिपोर्ट:  

संसाधनों की कमी के चलते अँधेरे में भविष्य:

  1. जिला फतेहाबाद का गांव अलावलवास। यह गांव खास है। कारण कि यहां एक पूर्व मुख्यमंत्री स्व. भजनलाल तो दूसरे प्रदेश की दबंग राजनीतिक हस्ती वाले स्व. मनीराम गोदारा की ससुराल है। यहां का राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में अबकी बार परीक्षा परिणाम 6.25 फीसद रहा। मानव संसाधन के प्रति उदासीनता का आलम यह कि यहां माली न स्वीपर ..। एसएस अर्थात सोशल स्टडीज के मास्टर रवि दसवीं कक्षा के विद्यार्थियों को अंग्रेजी पढ़ा रहे हैं। गांव की ही छात्र ज्योति व रेशमा को इंग्लिश के सर नहीं होने का सिरदर्द है तो 10वीं की ही मनप्रीत को मैथ व साइंस के लेक्चरर नहीं होने का। अकेला संत कुमार 9 से 12 तक फिजिकल एजूकेशन पढ़ाते हैं तो 11वीं को पॉलिटिकल साइंस और 8वीं को साइंस। प्रिंसिपल चंद्रपाल सिंह बताते हैं कि पीजीटी के स्वीकृत 11 पदों में से 2 ही कार्यरत हैं।
  2. फतेहाबाद जिले का ही भूना शहर - राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय। अबकी बार यहां से दसवीं के परीक्षा परिणाम की बेसुरी आवाज न तो बच्चों के अभिभावकों और न ही शासन-तंत्र को रास आ रही है। 93 परीक्षार्थियों में से महज 10 ही पास हो सके। कुल परिणाम 10.75 फीसद। अब विद्यालय प्रबंधन लकीर पीट रहा है। बताया गया है कि समय सारिणी में तबदीली, विद्यार्थियों की नियमित उपस्थिति दर्ज करने के साथ-साथ अतिरिक्त कक्षाओं का भी शैडयूल तैयार करने की ठान ली है। हां, असफलता का ठीकरा विद्यार्थियों की लापरवाही पर भी फोड़ा जा रहा है। फलरे पर रहने वाले विद्यार्थियों पर सख्ती बरती जाएगी आदि कई रणनीति भी बनाई जा रही है।
यहाँ जुगाड़ से व्यवस्था कर बदले हालात: 
  1. फतेहाबाद जिले के रतिया ब्लॉक से महज 7-8 किलोमीटर दूर गांव जल्लोपुर। आरोही मॉडल सीनियर सेकंडरी स्कूल। यह वही सरकारी स्कूल है जहां हरियाणा विद्यालय बोर्ड की दसवीं कक्षा की गत परीक्षा का परिणाम 97.73 फीसद रहा। शत-प्रतिशत रिजल्ट से दो कदम दूर लेकिन जुगाड़ के सहारे बेहतर रिजल्ट। स्वस्ति आकार लिये शानदार बिल्डिंग वाले सह-शिक्षा के इस मंदिर में पूरे रतिया खंड के होनहार बच्चों की अच्छी-खासी तादाद है। रतिया शहर से गांव के इस स्कूल में पढ़ने आ रही गरिमा कहती है कि यहां पढ़ाई का अच्छा माहौल है। भरपूर गांव के रोहित, खाई की उषा व लाली गांव की सपना कहती हैं कि स्कूल में अनुशासन है। सारे शिक्षक बढ़िया पढ़ाते हैं। शिक्षाकर्मियों की कमी यहां भी है। लेकिन लेक्चरर नहीं होने पर बायो की क्लास प्रिंसिपल सुरेश कुमार खुद संभाल लेते हैं। प्रिंसिपल बताते हैं कि लेक्चरर की कमी तो यहां भी है मगर वैकल्पिक व्यवस्था कर ली जाती है।
  2. फतेहाबाद के टोहाना खंड का गवर्नमेंट सीनियर सेकंडरी स्कूल पारता। दसवीं की परीक्षा का परिणाम गांव वालों को जश्न के मूड में लिये जाता है। कारण कि इस ग्रामीण विद्यालय ने मानव संसाधन की कमी का रोना नहीं रोते हुए परिणाम 88.89 फीसद तक पहुंचाया है। खुशी इतनी कि सोमवार को स्कूल में एक कार्यक्रम आयोजित कर परीक्षा में अव्वल रहने वाले छात्रों को प्रोत्साहन दिया गया। फिजिक्स, केमिस्ट्री विषयों पर लेक्चरर की पोस्ट खाली है। सुखद पक्ष यह कि यहां ग्राम पंचायत ने जुगाड़ कर प्राइवेट टीचर की नियुक्ति कर रखी है।
शिक्षा को बुनियादी जरूरत समझना होगा: सरकारी कॉलेज से सेवानिवृत्त प्राचार्य एवं प्रखर शिक्षाविद प्रो. हरभगवान चावला कहते हैं कि प्रदेश ही क्यों देशभर में शिक्षा को बुनियादी जरूरत समझने वाले नजरिये की आवश्यकता है। जाहिराना तौर पर इसकी जिम्मेदारी केंद्र व प्रदेश की सरकारों की है। सच तो यही है कि शिक्षा की बेहतरी के लिए सरकार गंभीर नहीं है। विडंबनापूर्ण हकीकत का एक स्वरूप यह भी कि सरकार अपने स्कूलों को खुद ही समाप्त कर देना चाहती है। निजीकरण की ओर ले जाना चाहती है। एक भी स्कूल ऐसा नहीं जहां स्टाफ पूरे हों। मास्टरों को 70 काम सौंप देते हैं। एजुसेट काम नहीं कर रहा। बुनियादी सुविधाएं नदारद हैं। तो गुणवत्ता रह कहां जाती है?
एजुकेशन सिस्टम का बेड़ा गर्क हो गया है। नीति-निर्धारकों की कोई जवाबदेही तय नहीं है। गैरजवाबदेही का ही तकाजा है जो इतने साल बाद भी यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि शिक्षा थ्री-टियर है अथवा टु-टियर। डायरेक्टर लेवल के अधिकारी भी जब तक व्यवस्था को समझाने की कोशिश करते, उनका तबादला हो जाता है। यह नीतिगत खामियाजा का ही परिणाम है कि नौवीं के बच्चों को न तो वर्णमाला का ज्ञान होता और न ही पहाड़े का। परीक्षा परिणाम पर असर पड़ना तो लाजिमी है। सरकार को दुविधा की स्थिति से बाहर निकल ठोस नीति के जतन करने होंगे। - दयानंद दलाल, प्रधान, हरियाणा स्टेट लेरर एसोसिएशन।
शिक्षा और परीक्षाओं के परिणाम के प्रति सरकार बेहद संजीदा है। हरसंभव प्रयास किये जा रहे हैं कि परीक्षा परिणाम बेहतर हों। इस बार जिनसे स्पष्टीकरण मांगा गया है, ये टोटल पास परसेंटेज वाले स्कूल हैं। इन्हें कुछ समय दिया गया है। टाइम अभी पूरे नहीं हुए हैं। इसके साथ ही, जिस सब्जेक्ट विशेष में जीरो से टेन परसेंट रिजल्ट रहे हैं, वहां के स्कूलों और उनके शिक्षकों के नामों की सूची भी तैयार की जा रही है। उनसे भी स्पष्टीकरण मांगा जाएगा। - पीके दास, प्रधान सचिव शिक्षा विभाग, हरियाणा।