Thursday, July 27, 2017

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा- प्राइवेसी मौलिक अधिकार, लेकिन 'शर्तें लागू'

प्राइवेसी मौलिक अधिकार है या नहीं, इस पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। नौ जजों की संविधान पीठ के सामने केंद्र सरकार ने कहा कि प्राइवेसी मौलिक अधिकार है, लेकिन इसका हर पहलू मौलिक अधिकार का
हिस्सा नहीं माना जा सकता। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि प्राइवेसी का अधिकार, स्वतंत्रता के अधिकार का ही हिस्सा है। लेकिन इसके अलग-अलग पहलू हैं। यह अलग-अलग हालात पर निर्भर करेगा। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा, 'प्राइवेसी मौलिक अधिकार है, लेकिन यह निर्बाध नहीं है। यह सशर्त है, क्योंकि निजता के अधिकार में विभिन्न पहलू शामिल होते हैं। इसके हर पहलू को मौलिक अधिकार नहीं कह सकते।' अगर इससे कुछ लोगों का प्राइवेसी का अधिकार प्रभावित हो रहा है तो दूसरी तरफ यह बड़ी संख्या में लोगों के जीवन के अधिकार को सुनिश्चित भी कर रहा है। 
इसी बीच, गैर-भाजपा शासित चार राज्य कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, पंजाब और पुडुचेरी भी प्राइवेसी पर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। इनका पक्ष रखते हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि तकनीकी प्रगति देखते हुए आज के दौर में प्राइवेसी के अधिकार और इसकी रुपरेखा पर नए सिरे से गौर करना जरूरी है। उन्होंने कहा, 'प्राइवेसी एक परम अधिकार नहीं हो सकता, लेकिन यह एक मूलभूत अधिकार है। इस न्यायालय को इसमें संतुलन लाना होगा।' अगली सुनवाई गुरुवार को होगी। 
एमरजेंसी के दौरान साल 1975 से 1977 तक बड़े पैमाने पर जबरन की गई नसबंदियों का मामला बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में गूंजा। नौ जजों की संविधान पीठ के अध्यक्ष चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने कहा, 'नसबंदी देश के गरीब लोगों किया गया सबसे बुरा प्रयोग था।' इससे पहले अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि एमरजेंसी के दौरान लोगों के मौलिक अधिकार छीन लिए गए थे। तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री एम करुणानिधि जैसे राजनेताओं तक इसकी आंच पहुंची थी। 
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साभार: भास्कर समाचार 
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