Friday, July 21, 2017

गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला सवाल निजता के दायरे में - Supreme Court

निजता के अधिकार के मायने बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निजता और स्वतंत्रता के बीच में गरिमा की अवधारणा आती है। अगर कोई सवाल व्यक्ति की गरिमा और सम्मान को आहत करता है तो वह निजता के
दायरे में आ सकता है। कोर्ट ने ये निजता के अधिकार पर दूसरे दिन चल रही बहस के दौरान उस वक्त की जब वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा कि निजता का अधिकार स्वतंत्रता के अधिकार से जुड़ा है। गुरुवार को याचिकाकर्ताओं की ओर से बहस पूरी कर ली गई अब मंगलवार को सरकार अपना पक्ष रखेगी। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ आजकल निजता के अधिकार पर सुनवाई कर रही है। दूसरे दिन की बहस में याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने देश-विदेश के कानूनों और फैसलों का हवाला देते हुए निजता के अधिकार को व्यक्ति का महत्वपूर्ण अधिकार साबित करने की कोशिश की। उनकी मांग थी कि सुप्रीम कोर्ट इसे मौलिक अधिकार घोषित करे क्योंकि ऐसा होने से ही व्यक्ति की डिजिटल आइडेंटिटी (पहचान) सुरक्षित रह सकती है। गुरुवार को बहस का केंद्र बिन्दु मुख्यता डिजिटल आइडेंटिटी में प्राइवेसी बनाए रखने और उसे दुरुपयोग से संरक्षित करने के इर्द-गिर्द था। वरिष्ठ वकील सजन पूवैया ने कहा कि आज का युग डिजिटल युग है। ऐसे समय में राज्य की जिम्मेदारी सिर्फ व्यक्ति को शारीरिक सुरक्षा देना ही नहीं है बल्कि उसकी डिजिटल आइडेंटिटी को भी सुरक्षित रखना है। कोर्ट निजता को मौलिक अधिकार घोषित करे यह डिजिटल आइडेंटिटी को सुरक्षित करने की दिशा में पहला कदम होगा। अगर कोर्ट ऐसा करता है तो सरकार एकत्रित डाटा के उपयोग को लेकर बहुत सावधान रहेगी और मौलिक अधिकार न घोषित किये जाने पर व्यक्ति के डाटा को किसी भी तरह प्रयोग किया जाने लगेगा।
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: जागरण समाचार 
For getting Job-alerts and Education News, join our Facebook Group “EMPLOYMENT BULLETIN” by clicking HERE. Please like our Facebook Page HARSAMACHAR for other important updates from each and every field.