स्वास्थ्यविभाग के एक छोटे से फैसले ने बच्चों के स्वास्थ्य पर काफी असर डाला है। पिछले एक साल से प्रदेश के सरकारी स्कूलों में आयरन की गोली देने का दिन बदलने से ही यह असर हुआ है। अब आयरन की गोलियां
बुधवार को दी जा रही हैं। इससे स्कूलों में एनीमिक लड़कियों में 37% तक सुधार आया है। अब स्वास्थ्य महकमा अन्य बीमारियों के इलाज का भी स्कूल स्तर पर प्रबंध कर रहा है। इसके लिए बाकायदे स्कूलों में जांच अभियान चलाए जा रहे हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। दरअसल मसला यह है कि पहले बच्चों को आयरन की गोलियां सोमवार को दी जाती थीं। इस दौरान कई जिलों में लड़कियों के बीमार होने की खबरें आईं। कोई लड़की बेहोश हुई तो किसी को स्कूल में ही उल्टी-दस्त लग गए। ऐसे में इन आयरन गोलियों पर सवाल उठने लगे। कहा गया कि स्कूलों में एक्सपायरी डेट की गोलियां खिलाई जा रही हैं। बड़े स्तर पर जांच की गई तो पता चला कि गोलियां तो सही हैं लेकिन ज्यादातर गोलियां खाने वाली छात्राएं सोमवार को व्रत रख रही थीं। वह खाली पेट ही इन आयरन की गोलियों को खा लेती थीं, इस कारण उन्हें उल्टी दस्त लग गए। इसके बाद फिर गोली देेने के दिन में बदलाव कर दिया गया। अब यह गोलियां बुधवार को दी जाने लगीं। हिसार में स्कूल हेल्थ कार्यक्रम को देख रहीं डिप्टी सिविल सर्जन डॉ अर्चना सहगल बताती हैं कि स्कूलों में जांच के दौरान सामने आया कि 65 प्रतिशत लड़कियाें के शरीर में खून की कमी है। ऐसे में उन्हें सोमवार को आयरन की नीली गोलियां दी जाने लगीं थीं। मगर कई लड़कियां सोमवार को व्रत रखती थी। वह यातो गोलियां खाती नहीं थी अगर खाती तो, बिना खाना खाए यानि खाली पेट ही खा लेतीं। इस कारण उन्हें दवा रिएक्शन भी कर जाती। बच्चियों की तबियत बिगड़ने पर यह भ्रांति फैल गई कि यह गोलियां नुकसान करती हैं। ऐसे में इसके कारण पता किए गए, तो मालूम हुआ कि समस्या की जड़ सोमवार का उपवास है। एक साल पहले विभाग ने एक फैसला लिया कि बुधवार को अमूमन कोई व्रत नहीं रखता है, तो गोलियां इसी दिन खिलाई जाएंगी। अब एक साल बाद इसका परिणाम आया है, आंकड़ों पर गौर करें तो खून की कमी ही नहीं बच्चों में दूसरी बीमारियाें में सुधार हुआ है।
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साभार: भास्कर समाचार
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