सुप्रीम कोर्ट ने कश्मीरी पंडितों के नरसंहार के मामलों की नए सिरे से जांच कराने और मुकदमा चलाने की मांग सोमवार को खारिज कर दी। कोर्ट ने गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) रूट इन कश्मीर की याचिका पर विचार
करने से इन्कार करते हुए कहा कि 27 साल बाद सुबूत जुटाना मुश्किल होगा। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर 1989-1990, 1997 और 1998 में जम्मू-कश्मीर में 700 कश्मीरी पंडितों की हत्याओं की नए सिरे से जांच कराने की मांग की थी। याचिका में कहा गया था कि इन हत्याओं में 200 से ज्यादा केस दर्ज हुए थे लेकिन आज तक एक भी केस नतीजे पर नहीं पहुंचा। याचिका में अलगाववादी नेता यासीन मलिक, फारूक अहमद डार आदि के खिलाफ कार्रवाई की भी मांग की गई थी। साथ ही इन हत्याओं से जुड़े सारे मामले जम्मू-कश्मीर से बाहर दिल्ली में स्थानांतरित किए जाने की मांग की गई थी। एनजीओ के वकील विकास पडोरा ने कहा कि कोर्ट कश्मीरी पंडितों के नरसंहार की नए सिरे से जांच के आदेश दे। इस पर मामले की सुनवाई कर रही मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पीठ ने सवाल किया कि अभी तक वे कहां थे। कोर्ट ने कहा कि 27 साल बीत चुके हैं। अब मामले में साक्ष्य एकत्र करना मुश्किल होगा। इस पर वकील ने कहा कि कश्मीरी पंडित कश्मीर में अपने घरों को छोड़ कर चले गए थे इसलिए वे जांच में भाग नहीं ले पाए। इतना लंबा समय बीत चुका है लेकिन इस मामले में न तो केंद्र ने और न ही राज्य सरकार ने कुछ किया। न्यायपालिका ने भी मामले पर संज्ञान नहीं लिया। हालांकि पीठ दलीलों से प्रभावित नहीं हुई।
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साभार: जागरण समाचार
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