Wednesday, July 26, 2017

प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो यशपाल का निधन, जानिए उनकी शख्सियत के बारे में

बच्चे जन्म से ही जिज्ञासु होते हैं। दूसरे अर्थ में वे पैदाइशी वैज्ञानिक होते हैं। हमेशा सवाल पूछते हैं और उनके जवाब ढूंढ़ने की कोशिश करते रहते हैं। उनके सवाल भी अनोखे होते हैं।' - प्रोफेसर यशपाल
शिक्षाविद और वैज्ञानिक प्रोफेसर यशपाल का सोमवार रात निधन हो
गया। वे जिंदगी के आखिरी दिनों में लंग कैंसर से जूझ रहे थे। इलाज से ठीक तो हो गए थे। पर कीमोथैरेपी ने कमजोर कर दिया था। उनकी मौत के साथ ही हमारे बीच से वह शख्स चला गया, जिसने वैज्ञानिकों के कठिन साइंस को सरल कर आम लोगों तक पहुंचाया। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। प्रोफेसर यशपाल पार्टिकल फिजिक्स के वैज्ञानिक थे। उन्होंने 1949 में पंजाब यूनिवर्सिटी से फिजिक्स में ग्रेजुएशन किया। इसके बाद मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से फिजिक्स में ही पीएचडी की। वे 1973 में स्पेस एप्लीकेशन सेंटर का पहले डॉयरेक्टर नियुक्त किए गए। पद्मविभूषण से सम्मानित प्रोफेसर यशपाल योजना आयोग के मुख्य सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के अध्यक्ष भी रहे। प्रोफेसर यशपाल को सबसे ज्यादा खुशी इस बात से मिलती थी कि लोग उनसे सवाल करें और उन्होंने इसके लिए अपने फोन, ई-मेल सबके लिए खुले रखे थे। कोई भी उनको सवाल पूछ सकता था और वे सभी को बहुत प्यार से जवाब देते थे, चाहे वो सवाल कितना ही बेतुका क्यों हो। उन्होंने कई किताबें भी लिखी थीं। 
अपने साथ नहीं रखते थे मोबाइल: प्रोफेसर यशपाल को मोबाइल फोन पसंद नहीं था। वे अंतिम दिनों तक अपने पास मोबाइल नहीं रखते थे। जरूरत पड़ने पर पोती के मोबाइल का इस्तेमाल करते थे। हां, लैंडलाइन नंबर पर कॉल करने पर खुद फोन उठाते थे। 
यूनिवर्सिटी कैंपस में साबुन बेचकर जमा किया था फंड: 
यशपाल ने एक बार दिलचस्प किस्सा बताया कि उन्होंने अपने दोस्तों के साथ लिरिल साबुन बनाने वाली कंपनी को पत्र लिखा। कंपनी को सुझाव दिया गया कि वह छात्रों के लिए बने कैंपस के सहकारी स्टोर में कम दाम में साबुन बेचे। उम्मीद के विपरीत कंपनी ने ऐसा ही किया। छात्र सहकारी स्टोर में बचे साबुन बाजार में बेचकर फंड इकट्ठा करते थे। यशपाल ने एक बार बताया था कि उन्होंने फिजिक्स की लैब बनाने के लिए भी साथी प्रोफेसरों के साथ मिलकर फंड जमा किया था। 
नेहरू को दिखाया, ऐसे रिकॉर्ड करते हैं कॉस्मिक रे: प्रोफेसर यशपाल गर्व के साथ बताते थे कि वे टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की शुरुआती टीम में थे। एक दिन पीएम नेहरू वहां गए और कहा कि मैं ये देखने के लिए यहां आया हूं कि आप लोग क्या करते हो। यशपाल, तुरंत पंडित नेहरू को अपनी लैब ले गए और दिखाया कि कॉस्मिक रेज की गतिविधियों को कैसे रिकॉर्ड करते हैं। कॉस्मिक यानी ब्रह्मांडीय किरणें अत्यधिक ऊर्जा वाले कणों का समूह होती हैं, जो बाहरी अंतरिक्ष में पैदा होते हैं और बिखरकर पृथ्वी पर जाते हैं। 
'बोझ के बिना शिक्षा' की सिफारिश: 
प्रोफेसर यशपाल ने भारतीय शिक्षा के बारे में 'लर्निंग विदाउट बर्डन' (बोझ के बिना शिक्षा) रिपोर्ट दी थी। इसमें बच्चों पर पढ़ाई का बोझ कम करने के सुझाव थे। यशपाल चाहते थे कि साइंस सबको पढ़ना चाहिए। वे कहते थे, "हमने विशाल ब्रह्मांड को विज्ञान के जरिए ही जाना है। यह हमें समझने में मदद करता है कि इस ब्रह्मांड में हमारी औकात क्या है। हमारी हैसियत क्या है।' 
दूरदर्शन का 'टर्निंग पॉइंट': 
प्रोफेसर यशपाल ने 1991 में दूरदर्शन पर प्रसारित 'टर्निंग पॉइंट' में एंकरिंग भी की। यह एक साइंस आधारित कार्यक्रम था। इसमें विज्ञान के आश्चर्य और उससे जुड़े तथ्यों से रूबरू कराया जाता था। यह वह दौर था ब डिस्कवरी, नेशनल जियोग्राफिक जैसे साइंस चैनल नहीं हुआ करते थे। गिरीश कर्नाड के साथ आने वाले यशपाल बड़ी सरलता से कठिन से कठिन टर्म को भी समझा देते थे। भारत में सैटेलाइट रिवोल्यूशन लाने में भी इनका अहम योगदान रहा है।  
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साभार: भास्कर समाचार 
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