दुनिया भर में पिछले कुछ सालों में साइबर क्राइम के मामले तेजी से बढ़े हैं और इसे देखते हुए चीन ने एक ऐसा कम्युनिकेशन नेटवर्क बनाया है जिसे हैक करना संभव नहीं होगा। चीन इस नेटवर्क को जल्द लॉन्च करने जा
रहा है। इसे 'अनहैकेबल' नेटवर्क कहा जा रहा है। अगर कोई हैकिंग की कोशिश भी करता है तो यूजर को इसका तुरंत पता चल जाएगा। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इस नई तकनीक को क्वांटम क्रिप्टोग्राफी कहा जा रहा है और पारंपरिक क्रिप्टोग्राफी के तरीकों से इसे पूरी तरह अलग माना जा रहा है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। चीन के सरकारी मीडिया में जिनान प्रांत में इस पर किए जा रहे काम को 'मील का पत्थर' कहा गया है। इस नेटवर्क में सेना, सरकार, वित्तीय संस्थान और बिजली विभाग से जुड़े करीब 200 कर्मचारी सुरक्षित तरीके से मैसेज भेज सकेंगे, यह सुनिश्चित होगा केवल वो ही इन मैसेजों को पढ़ पा रहे हैं। बाद में इसे कमर्शियली लांच किया जाएगा।क्वांटम कम्युनिकेशन में चीन के आगे बढ़ने का मतलब है कि वो ऐसे सॉफ्टवेयर बनाएगा जो इंटरनेट की खामियों को दूर कर उसे मजबूत बनाएंगे। और भविष्य में अन्य देश भी चीन से ऐसे सॉफ्टवेयर खरीद सकते हैं। अगर यूजर को बेहद सुरक्षित मैसेज भेजना है तो वे क्वाटंम कम्युनिकेशन में अलग से इसे खोलने के लिए 'की' (चाभी) भेजेंगे, जो लाइट पार्टिकल के रूप में होगी। यूजर असल मैसेज को एन्क्रिप्ट कर उसे भेज सकते हैं। मैसेज पाने वाले को पहले से मिली चाभी के जरिये मैसेज पढ़ना होगा। क्वांटम 'की' की सबसे बढ़िया बात यह है कि कोई ये पार्टिकल्स पढ़ने की कोशिश करता है तो स्वरूप बदले बिना यह संभव नहीं होगा, हो सकता है कि चाभी बदल जाए या फिर बेकार ही हो जाए। हैकिंग की कोशिश भी होगी तो यूजर्स को पता लग जाएगा। इस तरह ये लगभग 'अनहैकेबल' कहा जा सकता है। इंपीरियल कॉ़लेज लंदन के प्रो. म्यूंगशिक किम कहते हैं,'लोगों को इसकी जरूरत महसूस नहीं हुई। फिलहाल मैसेज एन्क्रिप्ट करने के लिए नंबरों की इतनी शानदार तकनीक है कि किसी ने नई तकनीक के बारे में सोचा ही नहीं।'
क्वांटम कम्युनिकेशन मैसेज को इतना सुरक्षित बनाता है तो चीन इसमें आगे क्यों है? शोध के मुताबिक चीन आगे नहीं है। लेकिन इसके इस्तेमाल में उसे बढ़त है। इस तकनीक पर पहले काम करने वालों में से एक विएना यूनिवर्सिटी में क्वांटम फिजिसिस्ट प्रोफेसर ऐंटोन जेलिंगर कहते हैं, 'उन्होंने 2014 में यूरोपियन यूनियन से इस बारे में बात की थी पर कोई फायदा नहीं हुआ। फिर जिनान नेटवर्क जैसा कार्यक्रम चलाना महंगा काम है। इसके लिए कोई बाजार ढ़ूंढ़ा तो सरकार या निवेशकों से मदद पाना मुश्किल हो सकता है। सिंगापुर नेशनल यूनिवर्सिटी के वैलेरियो स्करानी कहते हैं, यह सही है चीन इसमें निवेश कर रहा है, वो आर्थिक रूप से मजबूत है और उनके पर्याप्त संख्या में लोग भी हैं।
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साभार: भास्कर समाचार
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