शुक्रवार को जयपुर के जयगढ़ फोर्ट में बॉलीवुड डायरेक्टर संजय लीला भंसाली अपनी टीम के साथ अपनी नई फिल्म "पद्मावती" की शूटिंग कर रहे थे और इसी दौरान राजस्थान के राजपूत संगठन "करणी सेना" के पदाधिकारी सदस्यों ने सेट पर तोड़-फोड़ और भंसाली के साथ मार-पीट की। खबर आप पहले ही पढ़ चुके होंगे। लेकिन बात आती है कि करणी सेना ने आखिर क्यों इतने "मशहूर डायरेक्टर साहब" की धुनाई की। मामला दरअसल यह था कि फिल्म में चित्तौड़गढ़ और वहां
की रानी पद्मावती के इतिहास के साथ अच्छी-खासी छेड़छाड़ करके कहानी बनाई गई है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। रानी पद्मावती की वास्तविक कहानी पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें। जो रानी पद्मावती अपने पतिव्रता धर्म की एक मुग़ल शासक से रक्षा करने के उद्देश्य से जलती अग्नि में कूद गई उसी रानी पद्मावती का मुग़ल सुल्तान अलाउदीन खिलजी के साथ प्रेम-प्रसंग ही चला दिया इस फिल्मकार ने। दरअसल, 13वीं शताब्दी में दिल्ली का सुलतान अलाउदीन खिलजी ने रानी पद्मावती के सौंदर्य और अपनी हवस में अंधा होकर चित्तौड़ पर कब्जा करने के उद्देश्य से चित्तौड़ पर आक्रमण किया था। रानी पद्मावती को जब लगा कि राजपूत सैनिक हार रहे हैं और मुग़ल सुल्तान की सेना चित्तौड़ की महिलाओं की इज्जत के लिए राक्षस बन जाएगी, तो रानी ने अपने राज्य की सारी महिलाओं सहित जलती चिता में कूद कर अपने सतीत्व और पतिव्रता धर्म की रक्षा की थी। और यहाँ, जहाँ तक सुनने और पढ़ने में आया है, 'भंसाली साहब" ने अलाउदीन की प्रेमिका के रूप में ही पेश कर दिया रानी पद्मावती को। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। रानी पद्मावती की वास्तविक कहानी पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें। अब डायरेक्टर साहब ने एक वर्ग या जाति विशेष के लोगों की ही नहीं, या एक धर्म की ही नहीं बल्कि पूरे राष्ट्र की भावनाओं को ठेस पहुंचा कर एक ओछी हरकत की है। भंसाली जी कहते हैं कि फिल्मों में कहानी असलियत से परे रखनी पड़ती है। कोई बात नहीं, सभी फिल्म निर्माता करते हैं ये चीज। हाल ही में "सिया के राम" धारावाहिक में भी काफी ऐसी चीजें आईं जो रामायण इत्यादि ग्रंथों में थी ही नहीं, लेकिन कहानी में बदलाव इतना तो नहीं किया जा सकता, कि सीताजी को रावण की पटरानी ही बना दिया जाए या फिर रावण श्रीराम को बंदी बना ले। मतलब सिर्फ इतना ही है कि कहानी में बदलाव और अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर इतिहास को इतना 'घटिया तरीके से' ही बदल दिया जाए। हम पूरी तरह से भंसाली साहब की इस तोड़-मरोड़ का विरोध करते हैं। क्या आप भी हमारे साथ हैं?
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नोट: सभी तथ्य इन्टरनेट पर उपलब्ध विश्वनीय प्रतीत होने वाले स्रोतों से लिए गए हैं। परंतु फिर भी इन तथ्यों की सत्यता की जिम्मेवारी हम नहीं लेते हैं।
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