Monday, January 23, 2017

सरकारी स्कूलों में दिसंबर तक फर्नीचर उपलब्ध करवाने की 'सीएम' की घोषणा 'फ्लॉप'; अभी कोई उम्मीद भी नहीं, मामला हाई कोर्ट में

सरकार अपने दो साल के कार्यकाल में भी प्रदेश के सरकारी स्कूलों को फर्नीचर उपलब्ध नहीं करवा पाई हैं। ये हाल तो तब है जब खुद सीएम मनोहर लाल खट्टर ने पिछले दिनों घोषणा की थी कि सभी स्कूलों में दिसंबर, 2016 के अंत तक जरूरी फर्नीचर उपलब्ध करवा दिया जाएगा। लेकिन सरकारी स्कूल अभी भी चेयर, टेबल
और ड्युअल डेस्क की कमी से जूझ रहे हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इसकी वजह यह है कि अफसरों ने रेट कांट्रेक्ट करने के लिए पिछले साल जून में टेंडर तो किए थे, लेकिन टेक्नीकल पेंच फंसाकर एक कंपनी को इस प्रक्रिया से बाहर कर दिया। कंपनी इसके खिलाफ हाईकोर्ट चली गई। अब हाईकोर्ट ने सरकार को आदेश दिए हैं कि वह पिटीशनर कंपनी को भी टेंडर प्रक्रिया में शामिल होने का मौका दे। कंपनी की फाइनेंशियल बिड खोली जाए और तब तक किसी भी पार्टी को फर्नीचर सप्लाई का काम दिया जाए। 
करीब 300 करोड़ का खरीदा जाना है फर्नीचर: टेंडर के मुताबिक शिक्षा विभाग ने शीशम की 1 लाख 91 हजार 355 चेयर्स, 63789 शीशम की टेबल, कीकर लकड़ी की 1 लाख 98 हजार 351 छोटी ड्युअल डेस्क और 1 लाख 50 हजार 619 छोटी ड्युअल डेस्क खरीदने के लिए टेंडर किए थे। इनके लिए डायरेक्टर सप्लाई एंड डिस्पोजल के माध्यम से रेट कांट्रेक्ट किया जाना है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद अब इस साल मार्च तक भी स्कूलों को फर्नीचर मिलने की संभावना कम ही लग रही है। 
हुआ यह कि सेकेंडरी एजुकेशन और एलिमेंटरी एजुकेशन डिपार्टमेंट ने फर्नीचर के लिए जून, 2016 में टेंडर किए थे। ये टेंडर दो पार्ट यानी टेक्नीकल और फाइनेंशियल बिड के रूप में जमा कराए जाने थे। इसके लिए 8 कंपनियों ने टेंडर जमा करवाए। डिपार्टमेंट ने 5 जुलाई को सबसे पहले टेक्नीकल बिड खोली। इसमें करनाल की फर्म मैसर्स लग्गर इंडस्ट्रीज लिमिटेड को टेक्नीकल आधार पर बाहर कर दिया गया। डिपार्टमेंट की मुख्य आपत्तियां थीं कि कंपनी का एक डायरेक्टर अशोक कुमार ब्लैकलिस्ट है। कंपनी के पास जरूरत के मुताबिक फर्नीचर बनाने की पूरी कार्यक्षमता नहीं है और उसके पास वैध लाइसेंस भी नहीं है। इन सभी आपत्तियों का कंपनी ने 13 अक्टूबर को लिखित जवाब भी दिया। लेकिन अफसरों ने उस पर कोई फैसला किए बिना ही कंपनी की फाइनेंशियल बिड खोलने से इनकार कर दिया। इस पर कंपनी हाईकोर्ट में चली गई। हाईकोर्ट ने सरकार को आदेश दिए कि वह कंपनी के लिखित प्रतिवेदन पर फैसला करे, उसके बाद टेंडर प्रक्रिया को आगे बढ़ाए। इस पर विभागीय अफसरों ने पुराना राग अलापते हुए ही कंपनी के प्रतिवेदन का निबटारा कर दिया और उसे टेक्नीकल आधार पर ही टेंडर प्रक्रिया में शामिल होने लायक नहीं माना। इसके खिलाफ कंपनी ने फिर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने हाल ही दिए आदेश में सरकार की सभी दलीलों को नामंजूर कर दिया और कंपनी को टेंडर प्रक्रिया में शामिल करने के आदेश दिए हैं।
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साभार: भास्कर समाचार 
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