Monday, January 23, 2017

'झोंपड़ी' में बैंक जो देता है 'फुटपाथ' के बिजनेसमैन को कर्ज

छत्तीसगढ़ के दुर्ग में बस स्टैंड के पास है एक झोपड़ी। छत भी एसबेस्टस शीट की थी। बारिश में टपकने लगी तो ऊपर से बोरी और तिरपाल से ढक दिया। साइनबोर्ड पर नजर जाए तो ऐसा लगेगा जैसे कोई चाय का टपरा हो। लेकिन यह एक कॉ-ऑपरेटिव बैंक का हेडऑफिस है। इसका एक साल का टर्नओवर 22
करोड़ 84 लाख का है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। यह बैंक सिर्फ फुटपाथ कारोबारियों को लोन देता है। बैंक अबतक तीन हजार से ज्यादा लोगों को लाभ दे चुके है। हर साल लोन देने की राशि एक करोड़ रुपए के अनुपात में बढ़ रही है। बैंक में फिलहाल 800 बचत-चालू खाते और 500 लोन खाते हैं। अल्पसंख्यक सहकारी साख समिति के तहत 18 हजार रुपए से 1998 में बैंक की शुरुआत की गई थी। बैंक के अध्यक्ष रऊफ कुरैशी बताते हैं कि बैंक फुटपाथ कारोबारियों को दस्तावेज नहीं होने के कारण लोन नहीं देते। वर्ष 1998 में मैं जिला अल्पकल्याण समिति का सदस्य था। शासन गरीबों को लोन देने की स्कीम लाया, लेकिन बैंकों ने रुचि नहीं दिखाई। सब्जी का व्यापार करने वाले एक कारोबारी युवराज का कहना है कि बैंक मदद नहीं करती थी तो काम करने के लिए हमें साहूकारों के पास जाकर पैसे मांगने पड़ते थे। साहूकार हर दिन 10-15 फीसदी ब्याज के साथ पैसा वसूलते। कभी-कभी पैसे नहीं दे पाता, तो अपशब्द कहते, मारपीट भी करते। रऊफ का कहना है कि ये परेशानियां देखकर ही ऐसा बैंक खोलने का विचार आया जो गरीबों को सस्ती दर पर लोन दे। उसी साल बैकिंग क्रेडिट सोसायटी की शुरुआत की। एड्रेस प्रूफ और तीन गारंटर के आधार पर ही लोन देना शुरू किया। यह सिलसिला आज भी जारी है। बैंक की मदद से कई तो आज बड़े कारोबारी बन गए हैं। रऊफ बताते हैं कि अल्पसंख्यक बैंक सालाना 15 प्रतिशत ब्याज की दर पर लोन देता है। बैंक खुद लोने लेने वाले के पास जाकर हरदिन या महीने के हिसाब से पैसे कलेक्ट करता है। पैसे कलेक्ट करने के बाद लोन का ब्याज बड़े से छोटे व्यापारियों के क्रम में लिया जाता है। 
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साभार: भास्कर समाचार 
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