Thursday, January 26, 2017

छोटे कार्यों और साधारण प्रश्नों से भी जीवन के बड़े सबक मिल जाते हैं

एन रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
ऐसा कम ही होता है कि आप कोई जोक पढ़ रहे हैं और वही आपके सामने घट जाए। इस रविवार मैं मुंबई एयरपोर्ट से बाहर आते वक्त वॉट्सअप पर जोक पढ़ रहा था। जोक यह था कि कैसे एक व्यक्ति चलते समय
अचानक गिर जाता है और एक डॉक्टर उसे मदद करने की कोशिश करती है। तभी एक महिला आकर डॉक्टर को परे धकेल देती है, क्योंकि उसे पता नहीं है कि वह महिला डॉक्टर है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। वह लोगों से कहती है कि वह सीपीआर (कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन)) में प्रशिक्षित नर्स है। डॉक्टर पीछे हट जाती है और कहती है कि यदि उसे डॉक्टर की जरूरत पड़े तो वे पीछे खड़ी है। नर्स का सिर शर्म से झुक जाता है। 
मैं सब कुछ जानने वाले' लोगों पर कटाक्ष करते इस लतीफे को पढ़कर मुस्कुराया। उस वक्त रात के 11 बजे थे और मैं ट्रॉली ठेल रहा था। अचानक मेरे आगे व्हील चेयर पर जा रहा व्यक्ति चेयर में ही लुढ़क गया। तब वह इंटरनेशनल एयरपोर्ट से बाहर निकल ही रहा था। वह व्यक्ति पूरी तरह शिथिल पड़ गया था और उसकी नब्ज़ तो जैसे चली ही गई थी। कई अन्य यात्रियों की तरह प्रवेश द्वार की ओर बढ़ रही है एक युवती तुरंत हरकत में गई। बाद में पता चला कि वे डॉ. गायत्री पाटनकर हैं और स्थानीय अस्पताल में एनेस्थेसियोलॉजिस्ट हैं। 
एयरपोर्ट का इमरजेंसी किट गया। उन्होंने पहले डिफाइब्रिलेटर का इस्तेमाल कर उस व्यक्ति की नब्ज़ लौटाने के लिए छाती पर शॉक दिया। लगातार दो प्रयासों में वह नाकाम रहीं। अचानक वहां पर गहरा मौन छा गया जो किसी बुरी खबर का अहसास देता था। डॉ. गायत्री ने प्रयास नहीं छोड़े। उन्होंने उस व्यक्ति को सांस लेने में मदद देने के लिए इमरजेंसी लैरिंगोस्कोप किया। तीसरे प्रयास में वे उन्हें होश में ले आईं। जैसे ही उस व्यक्ति ने सांस लेना शुरू किया डॉ. गायत्री ने एड्रनलिन का इंजेक्शन दिया। एम्बुलेंस आने तक तो व्यक्ति इस हालत में था कि व्हील चेयर को एम्बुलेंस के भीतर ले जाया गया। सबकुछ उसी तेजी जैसे हुआ जैसा किसी मूवी में होता है। 
कई अनजाने चेहरों की ओर से डॉ. गायत्री को धन्यवाद मिला और सेना के एक जवान ने तो 'जय हिंद' के साथ सलाम ठोक दिया। डॉक्टर एम्बुलेंस के साथ चली गईं। बाद में मैं टैक्सी वाले इलाके में जवान से मिला तो मैं पूछा, 'आपने जय हिंद क्यों कहा?' उसने कहा कि इस नारे पर उन्हें बहुत गर्व है और फौज के सारे लोग एक-दूसरे को सलाम करके जय हिंद ही कहते हैं। जवान ने आगे कहा, 'इस सलामी को अपनाने की कई कहानियां हैं लेकिन, सेना में जो मानी गई है वह कुछ इस तरह है। इस नारे को आजाद हिंद फौज के मेजर आबिद हसन सफ्रानी ने 'जय हिंदुस्तान की' के लघु रूप के बतौर गढ़ा था। चूंकि आज़ाद हिंद फौज में कई धर्मों संस्कृतियों के जवान थे तो सलामी का यह जुमला एकदम ठीक था। आज़ाद हिंद रेडियो पर अपने एक लोकप्रिय भाषण में नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने मशहूर कर दिया। बाद में यह ख्यात देशभक्ति गीत में भी आया, 'ए मेरे वतन के लोगों', जिसके अंतिम पद में स्वर ऊंचा होते-होते जय हिंद, जय हिंद की सेना, जय हिंद…कहा जाता है। 
यह गीत 27 जनवरी 1963 को लता मंगेशकर ने दिल्ली में युद्ध में शहीद हुई विधवाओं के लिए धन इकट्‌ठा करने के लिए आयोजित कार्यक्रम में गाया था। यह 20 अक्टूबर से 21 नवंबर 1962 तक चले भारत-चीन युद्ध खत्म होने के दो महीने बाद की बात है। गीत बहुत लोकप्रिय हुआ, क्योंकि आकाशवाणी के विविध भारती स्टेशन पर सेना के जवानों के लिए शुरू किए कार्यक्रम 'जयमाला' में जवानों के अनुरोध पर इसे बार-बार बजाया जाता था। जल्दी ही यह फौज के कार्यक्रमों में गाया जाने वाला और मार्चिंग का गीत बन गया। जवान ने बात पूरी करते हुए कहा, 'उसी 1963 के वर्ष में भारतीय सेना अपने आकार को तेजी से बढ़ाने पर मजबूर हुई। नई बटालियनें गठित हुई, जो पूरी तरह से जाट या मराठा जैसे जातीय चरित्र की नहीं थी। ऐसे में 'जय हिंद' फौज में सलामी का आम नारा हो गया।' 
फंडा यह है कि कुछ साधारण सांसारिक प्रश्न और विनम्रता से हमें जीवन के सबसे बड़े सबक मिलते हैं, जिनकी हमें अपेक्षा नहीं होती। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
For getting Job-alerts and Education News, join our Facebook Group “EMPLOYMENT BULLETIN” by clicking HERE. Please like our Facebook Page HARSAMACHAR for other important updates from each and every field.