एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
निजी: 31 वर्षीय अनंत त्रिवेदी कोच पोटेटो हैं यानी ज्यादातर बैठे रहते हैं और रेस्तंरा का बिज़नेस भी उन्हें अधिक क्रियाशील जिंदगी नहीं देता। लेकिन, धीरे-धीरे उन्हें भी जिंदगी में फिट रहने का महत्व समझ में आया
और उन्होंने कई साइकलिंग और मैराथन स्पर्द्धाएं जीत लीं। किंतु ठहरिए, कहानी यह नहीं है। कहानी यह है कि पिछले दो वर्षों में फिटनेस की दुनिया उनमें इतनी गहराई से प्रवेश कर गई है कि सिर्फ उन्होंने एथलेटिक जीवन-शैली वाली कविता बत्रा (28) से विवाह करने का फैसला किया बल्कि 5 फरवरी को अपनी शादी के दिन वे जयपुर में हॉफ मैराथन दौड़ेंगे और फिनिश लाइन पर एक-दूसरे को वरमाला पहनाएंगे। उनके आधे दोस्त उनके साथ दौड़ेंगे, जबकि आधे फिनिश लाइन पर उनका इंतजार करेंगे। यह इस बात का सबूत है कि फिटनेस का फंडा उनकी जिंदगी में कितनी गहराई तक प्रवेश कर चुका है। उसके बाद यह युगल अनंत के गृहनगर कोटा जाएगा, जहां पर दोपहर बाद समारोहपूर्वक विवाह होगा। मैराथन दौड़कर तो वे सिर्फ यह बताना चाहते थे कि शादी के दिन भी कोई चाहे तो मैराथन दौड़ सकता है और इसलिए दैनिक व्यायाम के लिए समय मिलने का बहाना बनाने का किसी को हक नहीं है। इसके पहले वे दिव्यांग बच्चों के लिए पैसा इकट्ठा करने के उद्देश्य से, जहां उनका रेस्तरां हैं उस बेंगलुरू से कोटा तक 2,200 किलोमीटर साइकिल चला चुके हैं। यह तो हुई व्यक्तिगत प्रयासों की बात।
सामाजिक: एकसमय गार्डन सिटी कहलाने वाले बेंगलुरू का पुराना हरित वैभव लौटाने के लिए सेंट जोसेफ कॉलेज के तीन 20 वर्षीय छात्र गा-गाकर कंपोस्ट खाद बनाने, आस-पास के पेड़ अपनाने को लेकर जागरूकता फैला रहे हैं। सामाजिक कार्य के स्नातक स्तर के ये छात्र हरे-भरे, स्वच्छ और बेहतर पर्यावरण के लिए यह सब कर रहे हैं।
ब्रैंडन छेत्री, सतीश और पामसुआनलाल सामते को शाम के समय में एप्रन पहने कभी भी देखा जा सकता है। उनकी जेब में कचरे के सैंपल लटकते रहते हैं और जमीन पर पड़ी चटाई पर कम्पोस्ट खाद देखी जा सकती है। संदेश असरदार तरीके से पहुंचाने के लिए इन युवाअों ने गीत गाकर ध्यान आकर्षित करने का अनूठा तरीका अपनाया है। वे जानते हैं कि नवीनता ही लोगों को आकर्षित करती है फिर संदेश चाहे कितना ही उद्देश्यपूर्ण क्यों हो।
कम्पोस्ट खाद बनाने के लिए इस्तेमाल कम्पोस्टर को 'कम्भा' कहते हैं, जो टेराकोटा से बनी तीन परतों वाली संरचना है। कम्भा किचन से निकले वेस्ट की मदद से कम्पोस्ट बनाने में मदद करता है। इसका उपयोग किचन गार्डन या बाल्कनी के गमलों में किया जा सकता है। इस तीन स्तरीय संरचना को रोटेशन में इस्तेमाल किया जा सकता है। कम्पोस्ट खाद एक माह में माइक्रोब यानी सूक्ष्मजीवियों तथा विशेष पावडर के इस्तेमाल से बनाई जा सकती है, जिन पर महीने में 100 रुपए से ज्यादा खर्च नहीं आता। उनका उद्देश्य प्रोडक्ट बेचना नहीं बल्कि जागरूकता फैलाना है। तीनों शिद्दत से महसूस करते हैं कि यदि शहर का हर रहवासी कम्पोस्टिंग अपना ले तो वे उस जमीन को विषैला बनने से बचा लेंगे, जो भावी पीढ़ी की विरासत है और इस खूबसूरत महानगर का हरियाली का पुराना वैभव भी लौट आएगा।
कॉर्पोरेट: आदिवासीडिज़ाइन रूपांकन, चाहे वे बिहार के मधुबनी के हों या महाराष्ट्र के वारली या झारखंड के जादुपटिया सोहराई हों, हमेशा ताज़गी लिए हुए और बहुत प्रेरक होते हैं। ऊपरी खर्च कम करने और आदिवासियों के लिए मुनाफा बढ़ाने के उद्देश्य से रांची स्थित 35 वर्षीय सुमंगल नाग ने वर्चुअल शॉपिंग का तरीका अपनाया है। इससे भारतीय कला को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा देने और लोकप्रिय बनाने में मदद भी मिलती है। नाग कोलकाता के ग्लोबल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी से प्रशिक्षित हैं और झारक्राफ्ट में उन्हें काफी अनुभव है। वे केवल फेसबुक पर 'ट्राइबल ट्री अोनली' नाम से पिछले दो साल से कंपनी चला रहे हैं। उन्होंने सिर्फ आदिवासी कला फैशन का मिलन करवाया है, बल्कि वे युवाअों को सांस्कृतिक रूप से शिक्षित भी कर रहे हैं, क्योंकि उन्होंने इसे सिर्फ सोशल मीडिया पर सीमित रखा है, जहां युवाओं का ट्रैफिक सबसे ज्यादा है। कंपनी सस्ते प्रोडक्ट की पेशकश नहीं करती लेकिन, भारतीय हो या पश्चिमी हर परिधान को वह एथनिक टच देती है।ग्राहकों को सीधा अनुभव देने के लिए वे विभिन्न प्रदर्शनियों में भाग लेते रहते हैं। इससे मार्केटिंग का खर्च बहुत कम हो गया है और आदिवासियों को अधिकतम लाभ मिलने की गुजाइश पैदा हो गई है।
फंडा यह है कि आजजीवन के हर क्षेत्र में भीड़ और कड़ी प्रतिस्पर्द्धा है और इसलिए इस आधुनिक विश्व में पहचान बनाने के लिए अलग नज़र आना अपरिहार्य है।
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साभार: भास्कर समाचार
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