Saturday, January 28, 2017

मैनेजमेंट: धंधा चाहे छोटी चीजों का हो पर वह बहुत बड़ा हो

पैलेट तो आप जानते ही होंगे। लकड़ी की चौखट पर लकड़ी की ही पट्‌टयों से बना चपटा-सा ढांचा। मॉल में इस पर सामान लादकर इधर-उधर खिसकाते आपने देखा होगा। उत्पादन स्थल पर भी इनका उपयोग होता है ताकि
सामान को इधर-उधर ले जाने में मानव श्रम घटाया जा सके। फिर लागत तो कम होती ही है समय भी बचता है। लकड़ी की कमी के कारण अब ये प्लास्टिक से भी बनाए जाने लगे हैं। अब तो फोल्ड करने लायक पैलेट भी आने लगे हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। लेकिन Pepperfry.com जैसे अजीब-अजीब आकारों में उत्पादन करने वालों से पूछिए। फर्नीचर बनाने वाली यह कंपनी उत्पादन तो कुछ ही जगहों पर करती है लेकिन, सामान देशभर में भेजती है। कंपनी हमेशा अपने सामान के ट्रांस्पोर्टेशन के लिए पैलेट के अभाव की शिकायत करती रहती है। एकदम छोटी टेबलेट स्ट्रिप या इंजेक्शन एम्प्यूल बनाने वाली फार्मा कंपनियों की भी यही शिकायत होती है। इसे एक अवसर मानकर जुलाई 2013 में लीडिंग एंटरप्राइज इन एडवान्स पूलिंग(एलईएपी) ने इन कंपनियों से संपर्क कर वादा किया कि वे जैसे जितने चाहे उतने पैलेट वह सप्लाई कर सकती है। 
तीन वर्षों में कंपनी के ग्राहकों की सूची में महिन्द्रा, लुकास, टीवीएस, टाटा क्यूमिंस, होंडा, टोयोटा, टाटा मोटर्स, फिएट, एलजी, आदि ब्रांड के साथ बेशक पेपरफ्राय तो थी ही। 54 से ज्यादा शहरों 522 टच पॉइंट्स में 200 से ज्यादा कर्मचारी पैलेट सप्लाई करते हैं। आज वे 6 लाख पैलेट का उत्पादन करते हैं, जिसे अगले साल वे 15 लाख तक पहुंचाने की उम्मीद रखते हैं। जब एलईएपी के संस्थापक सुनु मैथ्यू तीन साल पहले 40 निवेशकों के बाद यह विचार लेकर गए थे तो ज्यादातर ने उसे खारिज कर दिया, क्योंकि सामने कोई ऐसा प्रोडक्ट नहीं था, जिसे बेचा जा सके। किंतु इंस्टिट्‌टूट ऑफ रूरल मैंनेजमेंट से बिज़नेस मैनेजमेंट में गोल्ड मेडलिस्ट मैथ्यू को साफ दिखाई दे रहा था कि जीएसटी के लागू होते ही वेयरहाउस की डिमांड अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ जाएगी, जिनकी कुशलता पैलेट से ही बढ़ सकेगी। 
अपने पर भरोसा रखकर वे कुछ ही निवेशकों के सहारे आगे बढ़े। जब एलईएपी ने ग्रामीण भारत में 40 लाख वर्ग फीट जगह ली और इस साल आमदनी 50 करोड़ रुपए छूने लगी तो निवेशकों की बाढ़ गई। इस सेगमेंट की सबसे बड़ी स्टार्टअप ने 115 करोड़ रुपए का निवेश आकर्षित किया। उसे 60 करोड़ रुपए का कर्ज भी मिल गया। कंपनी ने अगले दो वर्षों में 175 करोड़ रुपए के सेल्स टारगेट के साथ विस्तार किया और 6,200 करोड़ रुपए के भारतीय पैलेट बाजार में और गहराई तक प्रवेश के लिए 150 करोड़ रुपए का और कर्ज जुटाया। चूंकि लकड़ी से पर्यावरण संबंधी चिंता पैदा हो सकती है तो भविष्य के उत्पादन मेंे पोलिमर और मिश्र धातुओं का प्रयोग किया जाएगा। 
हालांकि, इस सेगमेंट में बड़ी कंपनियां भी हैं लेकिन, एलईएपी को असेट और इन्वेंटरी मैनेजमेंट, सामान को पहुंचाने की चुनौतियों से निपटने और उत्पादन से खपत की जगह तक उत्पादक फर्मों की समस्याओं का समाधान देने की अपनी क्षमता पर भरोसा है। प्रत्येक पैलेट की जिंदगी 20 साल होती है लेकिन, 31वें महीने से यह फायदा देने लगते हैं। फिर इस्तेमाल करने लायक पैकेजिंग मटेरियल का बिज़नेस, जिससे पैलेट का संबंध है, विकसित देशों में काफी बढ़ परिपक्व हो गया लेकिन, भारत में यह अभी भी बढ़ता बिज़नेस है। चूंकि एलईएपी ने वैश्विक चलन को सबसे पहले अपना लिया है, इसलिए बाजार में ठहराव आने तक वे लंबा रास्ता तय कर सकते हैं, इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि निवेशक इस बिज़नेस पर दांव लगा रहे हैं।

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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