भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली के छात्र रोहिन कुमार का निष्कासन लगातार सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बना हुआ है। रोहिन ने सोशल मीडिया पर अपने एक प्रोफेसर की सेवाएं समाप्त करने का विरोध किया था। संस्थान का कहना है कि छात्र ने वहां की आचार संहिता का उल्लंघन किया है। पिछले दो वर्षों से यह
देखने में रहा है कि कई केंद्रीय एवं राज्य स्तरीय विश्वविद्यालयों में प्रशासन और छात्रों के बीच विवाद बढ़ते ही जा रहे हैं। इसका मूल कारण यह है कि विश्वविद्यालय आंतरिक राजनीति से बाहर नहीं पा रहे हैं। विश्वविद्यालयों में प्रवेश से लेकर शिक्षकों की नियुक्ति तक की प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी है, इसलिए छात्रों का इसमें भरोसा लगातार कम होता जा रहा है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा निर्धारित नियमों में भी एकरूपता की कमी है। यही कारण है कि पिछले कुछ वर्षों से लगातार नियम बदले जा रहे हैं लेकिन, अधिकतर नियमों का पालन मात्र कागजों तक ही सीमित रह गया है और शोध क्षेत्र की गुणवत्ता में भी कमी आई है। निजी विश्वविद्यालयों में यूजीसी के नियमों की सर्वाधिक अवमानना हो रही है। जहां तक अध्यापन का सवाल है, विश्वविद्यालय के शिक्षकों पर एपीआई (एकेडमिक परफॉर्मेंस इंडीकेटर) स्कोर का इतना दबाव है कि वे सेमिनार और कॉन्फ्रेंस में ही व्यस्त हैं। जिन शिक्षकों से छात्र पढ़ना चाहते हैं वे विश्वविद्यालयीन राजनीति से त्रस्त हो चुके हैं। इन सभी समस्याअों के निदान के लिए यूजीसी को चाहिए कि वह छात्रों से सीधे संवाद स्थापित करे। विश्वविद्यालयों को ग्रेड देने से पूर्व उनका सूक्ष्मता के साथ आकलन किया जाए। विश्वविद्यालय के छात्र ऊर्जा युक्त होते हैं और वे नए विचारों रचनात्मकता से भरपूर होते हैं लेकिन, आंतरिक राजनीति के कारण उनका मनोबल टूट जाता है। किसी तरह की कार्रवाई से कॅरिअर बिगड़ने की आशंका रहती है, अत: वे आलोचना का साहस भी नहीं जुटा पाते हैं। बेहतर शिक्षा छात्रों का अधिकार है और शिक्षा व्यवस्था में बड़े बदलावों के लिए छात्रों को भी स्वतहित से आगे सोचना होगा।
लखन रघुवंशी, 26
पीएचडीस्कॉलर, महात्मा गांधी हिंदी विश्वविद्यालय , वर्धा, महाराष्ट्र
imlakhanraghuvanshi@gmail.com
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साभार: भास्कर समाचार
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