Saturday, January 28, 2017

जानिए विवादित फिल्म 'पद्मावती' की नायिका चित्तौड़ की रानी पद्मिनी की असली कहानी

रानी पद्मिनी 13वीं शताब्दी में चित्तौड़ के राजा रावल रतन सिंह की पत्नी थीं। राजा रतन सिंह के दरबार में एक संगीतकार राघव चेतन हुआ करता था, जिसके संगीत के अद्भुत हुनर के कारण उसे दरबार में विशेष दर्जा प्राप्त था। परंतु यह संगीतकार चोरी छिपे तंत्रविद्या, टोने-टोटके और जादूगरी जैसे कार्य किया करता था। एक बार उसे बुरी आत्माओं को बुलाने का कुकृत्य करते हुए रंगे हाथ पकड़ लिया गया और उसके बाद उसे मुंह काला कर गधे पर बैठा कर सजा दी गई और राज्य से बाहर निकाल दिया गया। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। उसके बाद वह संगीतकार दिल्ली के आसपास रहने लगा। उसके मन में एक विचार आया कि जिस राजा रतन सिंह ने उसे दरबार से निकाला उससे बदला कैसे लिया जाए। उसने इसके लिए दिल्ली के तत्कालीन सुल्तान अलाउदीन खिलजी के माध्यम से इस काम को सिरे चढाने की ठान ली। बस फिर क्या था, एक दिन सुलतान शिकार खेलने जिस जंगल में आया उसी जंगल में राघव चेतन ने छुप कर बांसुरी बजानी शुरू कर दी। सुल्तान को बांसुरी की धुन बहुत पसंद आई तो उसने सैनिक भेज कर संगीतकार को पकड़वा लिया और अपने दरबार में रख लिया। 
उसके बाद अपनी चाटुकारिता के बूते पर सुलतान से नजदीकियां बढ़ाकर उसने अपनी चाल के अनुसार रानी पद्मिनी की सुंदरता का बखान सुलतान के सामने कर दिया। सुल्तान था पूरा ऐय्याश। उसके मन में वासना का कीड़ा जाग उठा। उसने भी धूर्त चाल चलते हुए चित्तौड़ के राजा रतन सिंह को चिट्ठी भेजी कि मैं आपकी पत्नी रानी पद्मिनी को 'बहन' के रूप में देखता हूँ और उनसे मिलना चाहता हूँ। राजा रतन सिंह ने बिना किसी शक के उसका प्रस्ताव मान लिया, परंतु रानी पद्मिनी को धूर्त अलाउदीन पर शक हुआ तो उन्होंने मना कर दिया। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। राजा के बार बार कहने पर वे इस शर्त पर अलाउदीन को बुलवाने पर राजी हुईं, कि अलाउदीन मुझे सिर्फ दर्पण में ही देख सकता है। आखिकार अलाउदीन चित्तौड़ आया और दर्पण में रानी को देखकर पागल हो गया। उधर उसके साथ आए सैनिकों ने पूरे चित्तौड़गढ़ में घूम कर अपनी रणनीति बना ली और राजा रतन सिंह को अलाउदीन और सैनिक अपहरण कर अपने साथ दिल्ली ले गए, ताकि रानी को वश में करना आसान हो जाए। अब राजा रतन सिंह को छोड़ने के बदले में उसने मांग की कि रानी पद्मिनी हमें सौंप दी जाए। चित्तौड़ राज्य के पदाधिकारियों ने भी गजब की योजना बनाई। उन्होंने अलाउदीन से वादा किया कि रानी अगली सुबह दिल्ली पहुंचा दी जाएगी। और अगले दिन सुबह ही लगभग 150 पालकियों में हथियारबंद राजपूत सैनिक चल दिए दिल्ली की ओर। पालकियों का प्रयोग इसलिए कि देखने में लगे कि रानी को पूरी शान से दिल्ली भेजा गया है। इन सैनिकों ने उस कैंप से राजा को आजाद करवा लिया जहाँ उन्हें बंदी बना कर रखा गया था। इस पर अलाउदीन बौखला गया और उसने चित्तौड़ पर आक्रमण करने की ठान ली। 
आक्रमण हुआ, दोनों तरफ की सेनाएं एक दुसरे का संहार करने लगीं। तभी चित्तौड़ को कमजोर पड़ता देख रानी पद्मिनी ने सोचा कि यदि चित्तौड़ के पुरुष किसी कारण मारे गए तो स्त्रियों के साथ कितना अत्याचार होगा। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। दुष्ट मुग़ल सेना से अपनी और अपने राज्य की स्त्रियों की आबरू लुटने के भयंकर दृश्य को सोचकर रानी ने निर्णय लिया कि अपने पतिव्रता धर्म की रक्षा इन वासना के मारे मुगलों से करनी है तो एक ही उपाय है - जौहर। जौहर का अर्थ है - जलती हुई चिता में कूद कर आत्महत्या कर लेना। और फिर अपने सतीत्व की रक्षार्थ रानी पद्मिनी और राज्य की सभी औरतें जलती हुई चिता में कूद गईं। राजपूत सैनिकों ने भी ठान लिया कि अपने अंतिम श्वास तक पूरी वीरता से लड़ेंगे। और अंत में अलाउदीन खिलजी चित्तौड़ पर कब्ज़ा करने में तो कामयाब रहा परंतु जिस रानी पद्मिनी को पाने के लिए उसने यह कुकृत्य किया वह तो उसे मिली ही नहीं। 
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नोट: सभी तथ्य इन्टरनेट पर उपलब्ध विश्वनीय प्रतीत होने वाले स्रोतों से लिए गए हैं। परंतु फिर भी इन तथ्यों की सत्यता की जिम्मेवारी हम नहीं लेते हैं। 
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