Monday, June 23, 2014

ईराक की हिंसा बढ़ाएगी कई देशों में तेल की कीमतें, छा सकता है बड़ा संकट

इराक में इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड अल-शाम (आईएसआईएस) के आतंकियों द्वारा फैलाई गई अशांति और अस्थिरता के कारण तेल के दाम तेजी से बढ़े हैं। लंबे समय से चले आ रहे इस संघर्ष के बाद अब आतंकियों ने इराक की सबसे बड़ी रिफायनरी को भी निशाना बना लिया है। यहां पर शटडाउन है। इस बीच तेल के बढ़ते दाम भारत सहित पूरी दुनिया के लिए बड़ी चिंता है। यह भारत के लिए और गंभीर इसलिए भी है, क्योंकि हम अपनी जरूरत का 80 फीसदी तेल आयात करते हैं। यदि तेल महंगा होता है तो महंगाई भी बढ़नी तय है। इराक अपने लंबे युद्ध के इतिहास और प्रतिबंधों के बाद पिछले कुछ सालों में तेजी से तेल सप्लाई के मामले में आगे बढ़ रहा था, लेकिन अब इराकी संकट को देखते हुए आने वाले समय में बड़े स्तर पर इंटरनेशनल ऑयल क्राइसिस की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है। ओपेक (ऑर्गेनाइजेशन ऑफ द पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज) देशों में इराक की स्थिति काफी मजबूत है, जो इंटरनेशनल मार्केट को स्टेबल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इराक में दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा तेल भंडार है।

एक नजर इन तथ्यों पर:
  • 2015 तक इरका 44 लाख बैरल तेल का उत्पादन करने लगेगा। यह अनुमान इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी का है। 2020 तक यह आंकड़ा 60 लाख बैरल प्रतिदिन पहुंच जाएगा।
  • इराक प्रतिदिन 3.3 मिलियन बैरल तेल उत्पादित करता है। तेल उत्पादन मामले में ओपेक देशों में इराक दूसरे नंबर पर है।
  • रूस प्रतिदिन 1.1 करोड़ बैरल तेल उत्पादित करता है। रूस सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है। इराक की गिनती सांतवें नंबर पर है, लेकिन इसका निर्यात ज्यादा है। इसलिए इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ सकता है।
  • 10 डॉलर प्रति बैरल तेल महंगा होने से एक अनुमान के अनुसार, ग्लोबल ग्रोथ में 0.2 फीसदी से 0.3 फीसदी तक की कमी आ जाती है। इसलिए तेल के दाम में बढ़ोत्तरी पूरी दुनिया के विकास में बाधक है। 
इराक में तेल के मायने:
सऊदी अरब के बाद इराक दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल एक्सपोर्ट करने वाला देश है। इसलिए इस संकट में इराक का तेल पूरी दुनिया के लिए महत्वपूर्ण है। हालांकि, फिलहाल राहत की बात यह है कि अभी इराक में आतंकियों द्वारा सबसे अधिक उपद्रव उत्तरी इराक में मचाया गया है, जबकि देश में कुल उत्पादन का 75 फीसदी उत्पादन दक्षिण में होता है। रुमैला, ​मजनून और हल्हफाया बेहद महत्वपूर्ण ऑयल फील्ड हैं। ये तीनों दक्षिणी इराक में हैं। इसलिए यह तो कहा जा सकता है कि इस संकट का बहुत ज्यादा असर जल्दी पूरी दुनिया पर नहीं होगा। इराक में अभी दूसरे खाड़ी युद्ध के बाद तेल उत्पादन पूरी तरह सामान्य भी नहीं हुआ था कि इस संकट ने मुश्किलें फिर बढ़ा दी हैं। वैसे भी इराक में विदेशी निवेश काफी कम हो चुका है। यहां पर निवेश मुश्किल है और सरकार का साथ भी कम मिलता है। विदेशी तेल कंपनियां इसलिए भी निवेश करने से कतराती हैं, क्योंकि यहां पर मेंटेनेंस और इन्फ्रास्ट्रक्चर के कारण उत्पादन इतना आसान नहीं है। 
हिंसा क्यों बढ़ा रही है दाम:
कच्चे तेल के दाम पर जिन बातों का सबसे अधिक असर होता है, उनमें से प्रोडक्शन और फ्यूचर ट्रेडिंग बेहद महत्वपूर्ण हैं। इराक में जारी हिंसा के बीच कहीं न कहीं तेल के उत्पादन यानी प्रोडक्शन पर असर तो पड़ेगा ही। वैसे भी ऑयल मार्केट में यह धारणा आम है कि यदि मिडल ईस्ट में कुछ होता है तो इससे कच्चे तेल के दाम बढ़ते ही हैं। ऐसे में, खास बात यह है कि तेल के दाम एपेक्यूलेटिव मार्केट में तय होते हैं। लंदन, सिंगापुर और न्यूयॉर्क वायदा कारोबार के गढ़ हैं। यहां प्रतिदिन कच्चे तेल के दाम निर्धारित होते हैं। इनके द्वारा तय किए गए कच्चे तेल के दाम का असर अंतरराष्ट्रीय मार्केट पर होता है। अब जब इराक में हिंसा जारी है तो इसके दाम ऑटोमेटिक बढ़ेंगे। वैसे, आतंकी भी यह जानते हैं कि इराक की कुल ऊर्जा जरूरतों में से 90 फीसदी तेल से ही पूरी होती है। यह सरकार की आय का महत्वपूर्ण जरिया भी है। ऐसे में, वे तेल को जरूर निशाना बनाएंगे। 
इराक क्यों है महत्वपूर्ण: लीबिया में अस्थिरता के चलते पहले ही देश का तेल उत्पादन दस फीसदी कम हो चुका है। लीबिया में वर्ष 2012 में प्रतिदिन 13 लाख बैरल तेल उत्पादन हो रहा था, जो अब कम हो गया है। इससे इराक पर निर्भरता और बढ़ गई है।
  • ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम से खफा अमेरिका ने उस पर कई प्रतिबंध लगा रखे हैं। अमेरिका के दबाव में भारत और चीन आदि देशों ने ईरान से तेल आयात करना कम कर दिया है। अब इराक के कारण स्थिति और खराब हो जाएगी।
  • सीरिया के सिविल वॉर के कारण यहां पर भी तेल उत्पादन तेजी से घटा है। नाइजीरिया और वेनेजुएला भी तेल के बड़े निर्यातक देश हैं, लेकिन यहां पर भी कुछ समस्याओं के कारण तेल का उत्पादन काफी कम हो रहा है।
  • ऑयल की ग्लोबल डिमांड को पूरा करने के लिए ओपेक देशों को इस साल की दूसरी छमाही में कम से कम 7 लाख मिलियन बैरल प्रति दिन तेल उत्पादन बढ़ाना होगा। इसमें सबसे प्रमुख भूमिका इराक की थी। 
भारत पर असर:
इराक में बढ़ती अस्थिरता के बावजूद सरकार का दावा है कि देश की लॉन्ग टर्म ऑयल सप्लाई स्टेबल है। इसका असर भारत पर नहीं पड़ेगा, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि भारत पर भी इसका असर पड़ना तय है। यही नहीं, तेल के दाम बढ़ने से रुपया भी कमजोर होगा। भारत इराक से करीब 20 अरब डॉलर का तेल आयात करता है। इराक की अस्थिरता के कारण पूरे मध्य पूर्व पर असर होता है तो वो भी ठीक नहीं है, क्योंकि हम 80 फीसदी तेल मध्य पूर्व से ही आयात करते हैं। इससे भारत के कारोबार पर भी प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि हम मध्य पूर्व से कच्चा तेल मंगाते हैं और उन्हें पेट्रोलियम उत्पाद निर्यात करते हैं।


साभार: दैनिक भास्कर समाचार
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