Wednesday, June 25, 2014

आजाद भारत के काले दिनों की शुरुआत के 39 साल पूरे

देश में आपातकाल के आज 39 साल पूरे हो गए। 25 जून 1975 की आधी रात को आपातकाल की घोषणा कर दी गई थी, जो 21 मार्च 1977 तक लगी रही। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के अनुरोध पर धारा 352 के तहत आपातकाल की घोषणा की थी। इसे आजाद भारत का सबसे विवादास्पद दौर भी माना जाता है। लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने तो इसे भारतीय इतिहास की सबसे ''काली अवधि'' की संज्ञा दी थी। आइए जानते हैं इमरजेंसी के कुछ ख़ास पहलुओं के बारे में:
हाइकोर्ट का फैसला बना आपातकाल की वजह: कहा जाता है कि आपातकाल की नींव 12 जून 1975 को ही रख
दी गई थी। गुजरात में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा था। इसके अगले ही दिन यानी 12 जून 1975 को ही इलाहबाद हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को रायबरेली के चुनाव अभियान में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करने का दोषी पाया था और उनके चुनाव को खारिज कर दिया था। इतना ही नहीं, इंदिरा पर छह साल तक चुनाव लड़ने पर और किसी भी तरह के पद संभालने पर रोक भी लगा दी गई थी। इंदिरा ने हाईकोर्ट का आदेश मानने से इनकार दिया और सुप्रीम कोर्ट में अपील की। इसके बाद ही आपातकाल की स्थितियां बनने लगीं।
विरोध बढ़ा, तो आपातकाल लगा: 1971 के चुनावों में विपक्षी दल कांग्रेस पर धांधली के आरोप लगा थे। इंदिरा और कांग्रेस सरकार के विरोध का नेतृत्व उस वक्त जयप्रकाश नारायण कर रहे थे। उनका छात्र, किसान, मजदूर संघ और आम भारतीय भी समर्थन कर रहे थे। देश भर में हड़तालें चल रही थीं। जय प्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई सहित कुछ नेताओं के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन दिल्ली तक आ पहुंचा। इंदिरा सरकार ने जेपी के आंदोलन को सुरक्षा, पाकिस्तान के साथ युद्ध, सूखा, 1973 के तेल संकट का हवाला देते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया। इंदिरा ने दावा किया कि हड़तालों और विरोध प्रदर्शनों के कारण देश की गति रुक रही है।
सिद्धार्थ शंकर रे ने दी थी सलाह: इस समय इंदिरा लगातार परिस्थितियों पर काबू पाने की कोशिश कर रही थीं। इस बीच पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे ने इंदिरा गांधी को देश में आपातकाल लगाने की सलाह दी। शंकर रे की सलाह पर इंदिरा गांधी के ऑफिस से राष्ट्रपति के लिए पत्र का मसौदा तैयार किया गया जिसमें लिखा गया कि आंतरिक अस्थिरता के कारण देश की सुरक्षा को खतरा है, इसलिए आपातकाल की घोषणा की जाए। कहा जाता है कि राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद खुद आपातकाल लगाए जाने के पक्ष में नहीं थे, लेकिन इंदिरा और सरकार के दबाव में उन्हें आदेश पर हस्ताक्षर करने पड़े।
बड़े नेताओं की गिरफ्तारी: आपातकाल लागू होते ही आंतरिक सुरक्षा कानून (मीसा) के तहत राजनीतिक विरोधियों की गिरफ्तारी की गई, इनमें जयप्रकाश नारायण, जॉर्ज फर्नांडिस और अटल बिहारी वाजपेयी भी शामिल थे। इन सभी बड़े नेताओं को रातों-रात गिरफ्तार कर लिया गया। बताया जाता है कि विपक्ष के बड़े नेताओं की गिरफ्तारी में इंदिरा के बेटे संजय गांधी की बड़ी भूमिका थी। कहा यह भी जाता है कि आपातकाल के दौरान वे सबसे ज्यादा ताकतवर हो गए थे। दूसरी ओर, आपातकाल के दौरान देश के नागरिकों के कई मौलिक अधिकार स्थगित कर दिए गए और प्रेस में भी सेंसरशिप लागू कर दी गई।
इंदिरा की बुरी हार: आपातकाल लागू करने के लगभग दो साल बाद विरोध की लहर तेज़ होती देख प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग कर चुनाव कराने की सिफारिश कर दी। चुनाव में आपातकाल लागू करने का फैसला कांग्रेस के लिए घातक साबित हुआ। ख़ुद इंदिरा गांधी अपने गढ़ रायबरेली से चुनाव हार गईं। संजय गांधी भी हार गए। जनता पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आई और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। संसद में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 350 से घट कर 153 पर सिमट गई और 30 वर्षों के बाद केंद्र में किसी ग़ैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ। कांग्रेस को उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में एक भी सीट नहीं मिली। नई सरकार ने आपातकाल के दौरान लिए गए फैसलों की जांच के लिए शाह आयोग गठित की गई। हालांकि नई सरकार दो साल ही टिक पाई और अंदरूनी अंतर्विरोधों के कारण 1979 में सरकार गिर गई। उप प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने कुछ मंत्रियों की दोहरी सदस्यता का सवाल उठाया जो जनसंघ के भी सदस्य थे। इसी मुद्दे पर चरण सिंह ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया और कांग्रेस के समर्थन से उन्होंने सरकार बनाई लेकिन चली सिर्फ पांच महीने। उनके नाम कभी संसद नहीं जाने वाले प्रधानमंत्री का रिकॉर्ड दर्ज हो गया।
एक दिन की गिरफ्तारी से मिली सहानुभूति: इंदिरा गांधी के सत्ता से हटने के बाद जनता दल के मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। इंदिरा गांधी के लिए ये राजनीतिक अकेलेपन का समय था लेकिन तत्कालीन गृहमंत्री चौधरी चरण सिंह ने उन्हें इमरजेंसी की ज्यादतियों के मामले में गिरफ्तार किए जाने के आदेश दे दिया। एक दिन की इस गिरफ्तारी और तिहाड़ जेल में रखे जाने और उसके बाद मुकदमे से इंदिरा गांधी को जनता की भरपूर सहानुभूति मिली। विभिन्न विपक्षी दलों को मिला कर बना जनता दल, अलग- अलग नेताओं के अहम की लड़ाई में टूट गया। 1979 में तत्कालीन राष्ट्रपति ने संसद भंग कर दी और उसके बाद हुए चुनाव में इंदिरा गांधी फिर से सत्ता पर आने में सफल रहीं। 



























पत्र का मसौदा बना आदेश: उपरोक्त दो पत्र देखें। इसमें एक वो पत्र का मसौदा है, जो इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद का भेजा था, दूसरा वो आदेश है, जो 25 जून, 1975 की रात जारी हुआ था और देश में आपातकाल लगाने की घोषणा की थी। बहुत कम लोगों को पता है कि राष्ट्रपति ने जो आदेश पारित किया था, वो इंदिरा गाँधी द्वारा राष्ट्रपति को आपातकाल लगाने वावत पत्र की अक्षरशः नकल थी, फर्क सिर्फ एक कोष्ठक यानि ब्रैकेट का था।


साभार: डीबी समाचार
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